आध्यात्म
भगवान का अंत कोई नहीं जानता
ब्रह्मा कह रहा है, मैं भी नहीं जानता उसका, शंकर जी भी नहीं जानते और कौन जानेगा? मेरे बच्चे वच्चे हैं जो, सनकादिक वगैरह, कोई नहीं जानता। शंकर जी भी बोले-
नाहं विरिञ् चो न कुमारनारदौ न ब्रह्मपुत्रा मुनयः सुरेशाः।
(भाग. 6-17-32)
मैं भी नहीं जानता, ब्रह्मा भी नहीं जानता और कौन जानेगा? फिर ब्रह्मा कहता है-
जानन्त एव जानन्तु किं बहूक्त्या न मे प्रभे।
मनसो वपुषो वाचो वैभवं तव गोचरः।।
(भाग. 10-14-38)
जो कहता है कि मैं जानता हूँ, ठीक है बोले। बोलने को क्या है, कुछ भी बोल सकता है कोई आदमी लेकिन मैं तो नहीं जानता। क्यों नहीं जानते जी तुम? अरे मैं कैसे जानूँगा वो तो जबसे था, जब था, मैं भी नहीं था। मैं तो एक दिन पैदा हुआ न-
क इह नु वेद बतावर जन्मलयोऽग्रसरं
यत उदगादूषिर्यमनु देवगणा उभये।
(भाग. 10-87-24)
अरे ब्रह्मा तो एससे उत्पन्न हुआ है? उसको उसके पहले का क्या हाल मालूम है? ‘य मनु देवगणा उभये।‘ ये देवता वगैरह तो और बाद में हुये सरस्वती, बृहस्पति वगैरह। उसको कोई नहीं जानता-
द्युपतय एव ते न ययुरन्मनन्ततया त्वमपि।
(भाग. 10-87-41)
अरे ब्रह्मादिक नहीं जानते सो नहीं जानते, हे ठाकुर जी! तुम भी अपना अन्त नहीं पा सकते क्योंकि अनन्त हो। अनन्त का अन्त नहीं होता। अनन्त माइनस अनन्त बराबर अनन्त। क्या बढि़या गणित है। अरे कोई सान्त हो, लिमिटेड हो और एक खरब, एक और आगे हो, तो कुछ निकल जाय एक भी उतना कम हो जाय। लेकिन अनन्त से कितने ही निकालते जाओ-
पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते।
(बृहदा. 5-1-1)
आध्यात्म
आज पूरा देश मना रहा रामनवमी, जानिए इसके पीछे की पूरी पौराणिक कहानी
नई दिल्ली। आज पूरे देश में रामनवमी का त्यौहार बड़ी धूम धाम से मनाया जा रहा है। पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक इस दिन भगवान राम का जन्म हुआ था। जो विष्णु का सातवां अवतार थे। रामनवमी का त्यौहार चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी को मनाया जाता है। आइये जानते हैं इसके पीछे की पौराणिक कहानी।
पौराणिक कथाओं के मुताबिक भगवान राम ने भी मां दुर्गा की पूजा की थी, जिससे कि उन्हें युद्ध के समय विजय मिली थी। साथ ही माना जाता है इस दिन गोस्वामी तुलसीदास जी ने रामचरित मानस की रचना का आरंभ किया। राम नवमी का व्रत जो भी करता है वह व्यक्ति पापों से मुक्त होता है और साथ ही उसे शुभ फल प्रदान होता है
रामनवमी का इतिहास-
महाकाव्य रामायण के अनुसार अयोध्या के राजा दशरथ की तीन पत्नियां थी। कौशल्या, सुमित्रा और कैकयी। शादी को काफी समय बीत जाने के बाद भी राजा दशरथ के घर किसी बालक की किलकारी नहीं गूंजी थी। इसके उपचार के लिए ऋषि वशिष्ट ने राजा दशरथ से पुत्र प्राप्ति के लिए कमेश्टी यज्ञ कराने के लिए कहा। जिसे सुनकर दशरथ खुश हो गए और उन्होंने महर्षि रुशया शरुंगा से यज्ञ करने की विन्नती की। महर्षि ने दशरथ की विन्नती स्वीकार कर ली। यज्ञ के दौरान महर्षि ने तीनों रानियों को प्रसाद के रूप में खाने के लिए खीर दी। इसके कुछ दिनों बाद ही तीनों रानियां गर्भवती हो गईं।
नौ माह बाद चैत्र मास में राजा दशरथ की बड़ी रानी कौशल्या ने भगवान राम को जन्म दिया, कैकयी ने भरत को और सुमित्रा ने दो जुड़वा बच्चे लक्ष्मण और शत्रुघन को जन्म दिया। भगवान विष्णु ने श्री राम के रूप में धरती पर जन्म इसलिए लिया ताकि वे दुष्ट प्राणियों का नरसंहार कर सके।
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