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आध्यात्म

भगवान् कर्म करने की शक्ति मात्र देता है

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kripalu ji maharaj

kripalu ji maharaj

किंतु यह भ्रम नहीं होना चाहिये कि भगवान् ही हमारे कर्मों का कर्ता है। भगवान् कर्म करने की शक्ति मात्र देता है किंतु कर्म करने का अधिकार जीवों को दे रखा है। तभी तो वेदादि का उपदेश सार्थक होगा। कर्मफलभोग सार्थक होगा। अतः भगवान् ऐसा ही समझना चाहिये, जैसा पॉवर हाउस का घर में पॉवर देना। किंतु उस बिजली के पॉवर का सदुपयोग या दुरुपयोग करना यह काम आप का है। यह ठीक है कि यदि भगवान् (पॉवर हाउस) शक्ति न देता तो हम कुछ साधन न कर पाते। अतः कर्ता जीव ही है। भोक्‍ता भी जीव ही है।

राधे राधे राधे राधे राधे राधे

लखत रहत नित भक्ति मुख, कर्म, योग, अरु ज्ञान।

अति स्‍वतंत्र है भक्ति पथ, वेद पुरान बखान।। 44।।

भावार्थ- कर्म, योग, ज्ञानादि को भक्ति की अपेक्षा है। किंतु भक्ति को किसी की भी अपेक्षा नहीं है। भक्ति स्‍वतंत्र है।

व्‍याख्‍या- वेदों शास्‍त्रों एवं पुराणों ने बताया है कि कर्म वेदविहित होने पर भी स्‍वर्ग ही दे सकता है। जो कि नश्‍ वर है। योग एवं ज्ञान भी केवल स्‍वस्‍वरूप का ही ज्ञान करा सकता है ब्रह्मज्ञान नहीं करा सकता। ब्रह्मज्ञान के लिये श्रीकृष्‍ण भक्ति परमावश्‍यक है। बिना भक्ति किये श्रीकृष्‍ण की कृपा ही न होगी, बिना कृपा के न माया निवृत्ति होगी, न तो ब्रह्मज्ञान ही होगा।

आध्यात्म

आज पूरा देश मना रहा रामनवमी, जानिए इसके पीछे की पूरी पौराणिक कहानी

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नई दिल्ली। आज पूरे देश में रामनवमी का त्यौहार बड़ी धूम धाम से मनाया जा रहा है। पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक इस दिन भगवान राम का जन्म हुआ था। जो विष्णु का सातवां अवतार थे। रामनवमी का त्यौहार चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी को मनाया जाता है। आइये जानते हैं इसके पीछे की पौराणिक कहानी।

पौराणिक कथाओं के मुताबिक भगवान राम ने भी मां दुर्गा की पूजा की थी, जिससे कि उन्हें युद्ध के समय विजय मिली थी। साथ ही माना जाता है इस दिन गोस्वामी तुलसीदास जी ने रामचरित मानस की रचना का आरंभ किया। राम नवमी का व्रत जो भी करता है वह व्यक्ति पापों से मुक्त होता है और साथ ही उसे शुभ फल प्रदान होता है

रामनवमी का इतिहास-

महाकाव्य रामायण के अनुसार अयोध्या के राजा दशरथ की तीन पत्नियां थी। कौशल्या, सुमित्रा और कैकयी। शादी को काफी समय बीत जाने के बाद भी राजा दशरथ के घर किसी बालक की किलकारी नहीं गूंजी थी। इसके उपचार के लिए ऋषि वशिष्ट ने राजा दशरथ से पुत्र प्राप्ति के लिए कमेश्टी यज्ञ कराने के लिए कहा। जिसे सुनकर दशरथ खुश हो गए और उन्होंने महर्षि रुशया शरुंगा से यज्ञ करने की विन्नती की। महर्षि ने दशरथ की विन्नती स्वीकार कर ली। यज्ञ के दौरान महर्षि ने तीनों रानियों को प्रसाद के रूप में खाने के लिए खीर दी। इसके कुछ दिनों बाद ही तीनों रानियां गर्भवती हो गईं।

नौ माह बाद चैत्र मास में राजा दशरथ की बड़ी रानी कौशल्या ने भगवान राम को जन्म दिया, कैकयी ने भरत को और सुमित्रा ने दो जुड़वा बच्चे लक्ष्मण और शत्रुघन को जन्म दिया। भगवान विष्णु ने श्री राम के रूप में धरती पर जन्म इसलिए लिया ताकि वे दुष्ट प्राणियों का नरसंहार कर सके।

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