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आध्यात्म

जो जीव उनकी शरण में जाता है, वह सदा को आनन्‍दमय हो जाता है

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जो जीव उनकी शरण में जाता है, वह सदा को आनन्‍दमय हो जाता है

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जो जीव उनकी शरण में जाता है, वह सदा को आनन्‍दमय हो जाता है

kripalu ji maharaj

जहाँ भी संसारी स्‍वार्थ पूर्ति होती है वहीं प्‍यार करता है। स्‍वार्थ समाप्‍त, तो प्‍यार भी समाप्‍त। अतः धनादि वैभव की प्राप्ति द्वारा आनन्‍द प्राप्ति मानने वाले अज्ञानी व्‍यक्ति, वैभव वालों की चम्‍चागीरी  करते रहते हैं। किंतु उस सेठ के दिवालिया होते ही ऐसे रफूचक्‍कर हो जाते हैं, वैसे वृक्ष के फल समाप्‍त होते ही‍ पक्षीगण उड़ जाते हैं। किंतु भगवान् तो परिपूर्ण हैं। आत्‍माराम हैं। साथ ही अकारण करुण भी हैं। अतः जो जीव उनकी शरण में जाता है, वह सदा को आनन्‍दमय हो जाता है। किंतु वैभवयुक्‍त व्‍यक्ति जा ही नहीं सकता। वैभव का मद उसे स्‍वयं भगवान् बना देता है। इसी से कुंती ने संसार का अभाव वरदान स्‍वरूप माँगा था। अतः वैभवों से दूर रहना चाहिये।

राधे राधे राधे राधे राधे राधे 

’मैँ’ ‘मेरा’, दोनोँ बहे, ज्ञानिन ज्ञान मझार। 

‘मैँ’ ‘मेरा’, दोनोँ रहे, प्रेमिन के दरबार।। 40।। 

भावार्थ- ज्ञानमार्ग में ‘मैं’ एवं ‘मेरा’, को मिटा देना ही अभीष्‍ट है। किंतु भक्ति-मार्ग में ‘मैं’ एवं ‘मेरा’ हठात् सदा-सदा को बनाये रखना लक्ष्‍य है। (मैं दास, मेरा स्‍वामी श्रीकृष्‍ण) ।

व्‍याख्‍या- ज्ञानी ब्रह्म से ऐक्‍य चाहता है। अतः वह मैं एवं मेरा नहीं रहने देना चाहता। अपने अंतःकरण को ही समाप्‍त करना लक्ष्‍य रखता है। अतः पहले तो ध्‍याता ध्‍येय ध्‍यान यह त्रिपुटी रहती है। पश्‍ चात् एकत्‍व हो जाता है। किंतु भक्‍त दिव्‍य द्वैत प्रेमानन्‍द चाहता है। अतः कभी यदि मन प्रेम में निर्विकल्‍प भी हो जाता है, तो भक्‍त को बुरा लगता है वह यह भाव सदा बनाये रखता है मैं दास हूँ एवं मेरा स्‍वामी श्रीकृष्‍ण है। वस्‍तुतः भक्‍त अपने स्‍वामी की सेवा चाहता है अतः अद्वैत को दूर से नमस्‍कार करता है। एकत्‍व को तो भक्‍तों ने पिशाचिनी कहा है। भागवत कहती है। यथा-

न पारमेष्‍ठ् यं न महेन्‍द्रधिष्‍ण्‍यं 

न सार्वभौमं न रसाधिपत्‍यम् । 

न योगसिद्धीरपुनर्भवं वा 

मय्यार्पितात्‍मेच्‍छति मद् विनान्‍यत् ।। 

(भाग. 11-14-14) 

फिर एकत्‍व प्राप्ति का लक्ष्‍य इसीलिये तो ज्ञानी बनाता है कि संसारी द्वैत से तंग आ गये। किंतु दिव्‍य द्वैत के रस से वंचित हो जाता है। अतः हनुमान जी कहते हैं। यथा-

भवबंधच्छिदे तस्‍मै स्‍पृहयामि न मुक्‍तये। 

भवान्‍प्रभुरहं दास इति यत्र विलुप्‍यते।। (वा. रा.) 

राधे राधे राधे राधे राधे राधे

आध्यात्म

आज पूरा देश मना रहा रामनवमी, जानिए इसके पीछे की पूरी पौराणिक कहानी

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नई दिल्ली। आज पूरे देश में रामनवमी का त्यौहार बड़ी धूम धाम से मनाया जा रहा है। पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक इस दिन भगवान राम का जन्म हुआ था। जो विष्णु का सातवां अवतार थे। रामनवमी का त्यौहार चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी को मनाया जाता है। आइये जानते हैं इसके पीछे की पौराणिक कहानी।

पौराणिक कथाओं के मुताबिक भगवान राम ने भी मां दुर्गा की पूजा की थी, जिससे कि उन्हें युद्ध के समय विजय मिली थी। साथ ही माना जाता है इस दिन गोस्वामी तुलसीदास जी ने रामचरित मानस की रचना का आरंभ किया। राम नवमी का व्रत जो भी करता है वह व्यक्ति पापों से मुक्त होता है और साथ ही उसे शुभ फल प्रदान होता है

रामनवमी का इतिहास-

महाकाव्य रामायण के अनुसार अयोध्या के राजा दशरथ की तीन पत्नियां थी। कौशल्या, सुमित्रा और कैकयी। शादी को काफी समय बीत जाने के बाद भी राजा दशरथ के घर किसी बालक की किलकारी नहीं गूंजी थी। इसके उपचार के लिए ऋषि वशिष्ट ने राजा दशरथ से पुत्र प्राप्ति के लिए कमेश्टी यज्ञ कराने के लिए कहा। जिसे सुनकर दशरथ खुश हो गए और उन्होंने महर्षि रुशया शरुंगा से यज्ञ करने की विन्नती की। महर्षि ने दशरथ की विन्नती स्वीकार कर ली। यज्ञ के दौरान महर्षि ने तीनों रानियों को प्रसाद के रूप में खाने के लिए खीर दी। इसके कुछ दिनों बाद ही तीनों रानियां गर्भवती हो गईं।

नौ माह बाद चैत्र मास में राजा दशरथ की बड़ी रानी कौशल्या ने भगवान राम को जन्म दिया, कैकयी ने भरत को और सुमित्रा ने दो जुड़वा बच्चे लक्ष्मण और शत्रुघन को जन्म दिया। भगवान विष्णु ने श्री राम के रूप में धरती पर जन्म इसलिए लिया ताकि वे दुष्ट प्राणियों का नरसंहार कर सके।

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