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आध्यात्म

सिर्फ मानवदेह मिल जाने से कुछ नहीं होगा

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kripalu ji maharaj

मुण्‍डकोपनिषद् कहता है कि फिर यहां आकर, देवयोनि गई, तो मानवयोनि भी नहीं मिलेगी, हीन योनियों में हम डाल दिये जायेंगे। शंकराचार्य ने भी माना-

दुर्लभं त्रयमेवैतत् दैवानुग्रहकारकम् ।

(विवेकचूड़ामणि)

भगवान् की कृपा। ऐंऽ कृपा मानने लगे? ये तो ब्रह्म को अकर्ता मानते थे जो अरे वो दोनों मानते हैं, बेवकूफों को और बेवकूफ बनाने के लिये, उन्‍होंने वो सब भाष्‍य लिखा है। वो कहते हैं। ‘दैवानुग्रहकारकम् ।‘ भगवान् की कृपा से तीन चीजें मिलती हैं-

मनुष्‍यत्‍वं मुमुक्षुत्‍वं महापुरुषसम्‍भवः ।

(विवेकचूड़ामणि, शंकराचार्य)

मानवदेह, अरे देवता लोग जब चाहते हैं। तो ऐसे दुर्लभ शरीर को भगवत्‍कृपा के द्वारा ही प्राप्‍त समझना चाहिये। नम्‍बर दो- खाली मानवदेह मिल जाय तो काम नहीं बनेगा। क्‍यों? इसलिये कि ये, ‘मैं’ कौन?, ‘मेरा’ कौन?, ये दो प्रश्‍न ऐसे हैं कि मानवदेह अनन्‍त बार मिल चुका और फिर भी ये प्रश्‍न हल नहीं हुये। तो खाली मानवदेह मिल जाने से क्‍या होगा? हम भौतिकवाद की ओर भागेंगे, बड़े-बड़े भौतिक ऐश्‍वर्य पायेंगे और उसी चौरासी लाख का चक्‍कर लगायेंगे। न दुःख निवृत्ति होगी, न आनन्‍द प्राप्‍त होगी। इसलिये नम्‍बर दो- इस संसार से वैराग्‍य हो। यहाँ सुख नहीं है, ये डिसीजन हो, पक्‍का विश्‍वास हो, ये मुमुक्षुत्‍व है। और ये भी हो जाय तो करें क्‍या? कि यहाँ सुख नहीं है, हो गया ज्ञान। कहाँ है? ये तो बताओ। कौन बतावे? पड़ोसी? वो कहेगा अरे क्‍या चक्‍कर में पड़े हो, वो तो इधर ही है। जरा और आगे जाओ।

हिरन होता है हिरन, तो रेगिस्‍तान में जब बालू के कण उड़ते हैं, हवा से तो सूर्य की किरण में वो दूर से लगता है पानी है। तो वो हिरन भागता है कि वहाँ पानी पीने को मिल जायगा। वो पानी नहीं है, वो तो धूलि के कण हैं। फिर वहाँ से देखता है, अरे इधर है। उसी में दौड़-दौड़ कर मर जाता है। ऐसे ही हम लोग कर रहे हैं अनादिकाल से कि एक लाख मिल जाय, एक करोड़ मिल जाय, एक अरब मिल जाय, ये भी मिल जाय, वो भी मिल जाय। सब मिलता भी गया किसी-किसी को। मामूली मामूली लेबरों के बच्‍चे, उसी जन्‍म में अरबपति हो जाते हैं, प्राइम मिनिस्‍टर हो जाते हैं। हाँ कहाँ थे हम, हमारे पिताजी क्‍या करते थे? और हम आज कहाँ पहुँच गये? लेकिन वो नहीं मिला, वो ‘मैं’ कौन? ‘मेरा’ कौन?

आध्यात्म

आज पूरा देश मना रहा रामनवमी, जानिए इसके पीछे की पूरी पौराणिक कहानी

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नई दिल्ली। आज पूरे देश में रामनवमी का त्यौहार बड़ी धूम धाम से मनाया जा रहा है। पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक इस दिन भगवान राम का जन्म हुआ था। जो विष्णु का सातवां अवतार थे। रामनवमी का त्यौहार चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी को मनाया जाता है। आइये जानते हैं इसके पीछे की पौराणिक कहानी।

पौराणिक कथाओं के मुताबिक भगवान राम ने भी मां दुर्गा की पूजा की थी, जिससे कि उन्हें युद्ध के समय विजय मिली थी। साथ ही माना जाता है इस दिन गोस्वामी तुलसीदास जी ने रामचरित मानस की रचना का आरंभ किया। राम नवमी का व्रत जो भी करता है वह व्यक्ति पापों से मुक्त होता है और साथ ही उसे शुभ फल प्रदान होता है

रामनवमी का इतिहास-

महाकाव्य रामायण के अनुसार अयोध्या के राजा दशरथ की तीन पत्नियां थी। कौशल्या, सुमित्रा और कैकयी। शादी को काफी समय बीत जाने के बाद भी राजा दशरथ के घर किसी बालक की किलकारी नहीं गूंजी थी। इसके उपचार के लिए ऋषि वशिष्ट ने राजा दशरथ से पुत्र प्राप्ति के लिए कमेश्टी यज्ञ कराने के लिए कहा। जिसे सुनकर दशरथ खुश हो गए और उन्होंने महर्षि रुशया शरुंगा से यज्ञ करने की विन्नती की। महर्षि ने दशरथ की विन्नती स्वीकार कर ली। यज्ञ के दौरान महर्षि ने तीनों रानियों को प्रसाद के रूप में खाने के लिए खीर दी। इसके कुछ दिनों बाद ही तीनों रानियां गर्भवती हो गईं।

नौ माह बाद चैत्र मास में राजा दशरथ की बड़ी रानी कौशल्या ने भगवान राम को जन्म दिया, कैकयी ने भरत को और सुमित्रा ने दो जुड़वा बच्चे लक्ष्मण और शत्रुघन को जन्म दिया। भगवान विष्णु ने श्री राम के रूप में धरती पर जन्म इसलिए लिया ताकि वे दुष्ट प्राणियों का नरसंहार कर सके।

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