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लोकपाल मामले को लंबा लटकाने पर केंद्र की खिंचाई
नई दिल्ली | संसद में सबसे बड़ी पार्टी के नेता को विपक्ष के नेता के रूप में मान्यता देने के लिए लोकपाल अधिनियम में संशोधन नहीं करने पर सर्वोच्च न्यायालय ने बुधवार को सरकार की खिंचाई की। प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति टी. एस. ठाकुर, न्यायमूर्ति डी.वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति एल. नागेश्वर राव की पीठ ने पूछा,
“गत ढाई साल से विपक्ष का कोई नेता नहीं है। अगले ढाई साल तक भी यही स्थिति बने रहने की संभावना है। विपक्ष का कोई नेता नहीं होगा। तो, क्या आप (लोकपाल) कानून को बेकार होने देंगे, केवल इसलिए कि विपक्ष का कोई नेता नहीं है?”
कानून के तहत लोकपाल की नियुक्ति करने वाली सर्च कमेटी में नेता विपक्ष का होना जरूरी है। चूंकि इस वक्त कोई नेता विपक्ष नहीं है, इसलिए इस कानून में संशोधन कर सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी के नेता को समिति में शामिल किया जाना है ताकि लोकपाल की नियुक्ति हो सके। यह संशोधन नहीं होने पर शीर्ष अदालत ने सवाल उठाए हैं।
लोकपाल कानून में संशोधन के मामले को सरकार द्वारा लंबा खींचने की तरफ इशारा करते हुए पीठ ने कहा, “यह एक ऐसी संस्था है जिसका उद्देश्य सार्वजनिक जीवन में ईमानदारी लाना है। इसलिए इसे जरूर काम करना चाहिए। हम ऐसी स्थिति की अनुमति नहीं देंगे जहां संस्था बेकार हो जाए।”
याचिकाकर्ता की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता शांतिभूषण ने कहा कि यह मामला राजनीतिक पार्टियों पर नहीं छोड़ा जा सकता है और अदालत को इसमें हस्तक्षेप करना चाहिए। लेकिन, महान्यायवादी मुकुल रोहतगी ने इसका प्रतिरोध किया।
प्रधान न्यायाधीश ठाकुर ने मामले की देरी की तरफ संकेत करते हुए कहा, “कानून की अधिसूचना जनवरी, 2014 में जारी हुई थी और अब हम जनवरी, 2017 में प्रवेश करने जा रहे हैं।”
उन्होंने सरकार से कहा, “आप अन्य कानूनों को बनाने के लिए जो कर रहे हैं, वही आप लोकपाल कानून के लिए नहीं कर रहे हैं।”
याचिकाकर्ता गैर सरकारी संगठन ‘कॉमन कॉज’ की ओर से शांतिभूषण पेश हुए थे, जिसने याचिका के जरिए लोकपाल सर्च कमेटी के गठन के नियमों को चुनौती दी है।
रोहतगी ने यह कहते हुए शांतिभूषण की सलाह का विरोध किया कि ‘हमने लोकपाल कानून में संशोधन विधेयक पेश किया है। न्यायपालिका संसद को निर्देश नहीं दे सकती है। इसे न्यायिक कानून माना जाएगा।’
इस पर प्रधान न्यायाधीश ने कहा, “आप लोकपाल के लिए प्रतिबद्ध हैं और आप यह भी कहते हैं कि सबसे बड़ी पार्टी के नेता को विपक्ष के नेता माना जाना चाहिए। आपको अदालत के किसी भी फैसले का स्वागत करना चाहिए जिसमें वह लोकपाल कानून के उद्देश्य के लिए यह कहे कि सबसे बड़ी पार्टी के नेता विपक्ष के नेता माने जाएंगे।”
जब रोहतगी ने इस पर असहमति के संकेत दिए तो पीठ ने कहा कि इसका मतलब यह है कि अदालत निर्देश ही नहीं दे सकती। आप कानून बनाएंगे। तो फिर कैसे होगा श्रीमान महान्यायवादी।
नेशनल
असदुद्दीन ओवैसी ने मुख्तार अंसारी को बताया शहीद, बोले- उन्हें जहर देकर मारा गया
वाराणसी। वाराणसी में एक जनसभा को सम्बोधित करते हुए AIMIM के प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने बड़ा बयान दिया है। ओवैसी ने कहा है कि मुख्तार अंसारी को जेल में जहर देकर मारा गया है। वो मरे नहीं, बल्कि शहीद हुए हैं। पीडीएम की रैली को संबोधित करते हुए असदुद्दीन ओवैसी मुख्तार अंसारी के बारे में बोलते हुए कहा कि वह एक इंसान था जो पुलिस कस्टडी में था। उसको मार दिया गया वह शहीद हुए हैं। शहीदों के बारे में कहा जाता है कि वह मरते नहीं हैं। उनको बचाने की जिम्मेदारी बीजेपी की थी जो नाकाम हुए।
असदुद्दीन ओवैसी ने मोदी के गारंटी पर सवाल खड़ा करते हुए कहा कि मोदी की एक ही गारंटी है वो है मुसलमानों से नफरत। मोदी की दूसरी गारंटी भारत के संविधान को बदलना है। मोदी की तीसरी गारंटी दलित समाज से आरक्षण को खत्म कर दिया जाए। मोदी पसमांदा समाज की बात करते हैं, लेकिन उनके काम बंद हो रहे हैं।
ओवैसी ने अखिलेश यादव पर निशाना साधते हुए कहा कि जो (मुसलमान) सपा के लिए जान दे रहा है उसी के पैर में गोलियां (एनकाउंटर) मारी जा रही हैं। हमें (मुसलमानों) ही जेल में जहर दिया जा रहा है। हमारे ही घर को बुलडोजर से तोड़ा जा रहा है। पूर्व सांसद (अतीक) जो 10 सुरक्षाकर्मियों के साथ चल रहा है उसे कोई भी नजदीक से जाकर गोली मार देता है लेकिन इन सबपर अखिलेश की जुबान से आवाज नहीं निकलती। समाजवादी पार्टी यह चाहती है कि आप भैया के लिए जान कुर्बान करो और दरी बिछाओ। एक वक्त ऐसा आएगा जब अखिलेश यादव खुद दरी बिछाएंगे और आपके लिए जान भी देंगे।
ओवैसी ने मंच से कहा- मुख्तार का नाम लेकर कह रहा हूं मैं किसी के बाप से डरने वाला नहीं हूं। मुख्तार अंसारी एक इंसान था, ज्यूडिशल कस्टडी में था, उसे जहर देकर मार दिया. वह शहीद है और शहीदों के बारे में कहा गया है कि शहीदों को मुर्दा कभी मत कहो वह जिंदा है। लेकिन उनको बचाने की जिम्मेदारी बीजेपी की सरकार की थी और उसमें वह नाकाम साबित हुए हैं।
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