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आध्यात्म

भक्ति धाम-मनगढ़ में भक्ति के रंग में रंगा होली का उत्सव

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मनगढ़ (प्रतापगढ़ उप्र)। जगद्गुरु कृपालु परिषत्-भक्ति धाम, मनगढ़ में भक्तों ने भगवान् की भक्ति के रंगों में सराबोर होकर होली का उत्सव मनाया। भक्तियोग रसावतार जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज की अवतार स्थली भक्ति धाम-मनगढ़ में भक्ति महादेवी का साक्षात् निवास है, इसी से इस धाम का नाम ही है भक्ति धाम अर्थात् भक्ति जहाँ साक्षात् रूप से रहती है, वह है।

वैसे तो होली स्वयं ही भक्ति का पर्व है, होली भक्त और भगवान् के प्रेम का पर्व है। होली का पर्व एक ओर तो भक्त प्रह्लाद के अपने प्रभु के प्रति पूर्ण समर्पण और दृढ़ विश्वास का प्रतीक है, वहीं दूसरी ओर इस बात का पक्का प्रमाण है कि भगवान् सर्वव्यापक हैं।

जब हिरण्यकश्‍यप ने भक्त प्रह्लाद को मरवाने के हर संभव प्रयास कर लिये, परन्तु भक्त प्रह्लाद सुरक्षित रहे, तब अंत में हारकर उसने अपनी बहन होलिका, जिसे यह वरदान प्राप्त था कि अग्नि उसे जला नहीं सकती, प्रह्लाद को अपनी गोद में लेकर जलती हुयी अग्नि में बैठने की आज्ञा दी। लेकिन भक्त प्रह्लाद के इस विश्वास ने कि मेरे प्रभु जड़-चेतन सबमें व्याप्त हैं, होलिका के वरदान को हरा दिया; वह अग्नि की लपटें भक्त प्रह्लाद के लिये शीतल सुखदायी बन गयीं और होलिका जलकर भस्म हो गयी।

अतः होली का पर्व हमें भगवान् के प्रति अपने विश्वास को दृढ़ करने की प्रेरणा देता है। जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज ने अपने अनेक प्रवचनों में होली के पर्व पर प्रकाश डालते हुये कहा है कि अधिकतर लोग होली का अर्थ रंग-गुलाल से खेलना, हुड़दंगबाजी करना यही समझते हैं।

यह पर्व निष्काम प्रेम का पर्व है। होली का पर्व दिव्य प्रेम प्राप्ति हेतु नवधा भक्ति के अभ्यास के लिये प्रेरित भक्ति के इस पर्व की इसी महिमा का ध्यान रखते हुये जगद्गुरु कृपालु परिषत द्वारा भक्ति धाम-मनगढ़ में पिछले लगभग पचास वर्षों से एक सप्ताह से अधिक का साधना शिविर आयोजित किया जाता है, जहाँ भक्तजन अपने दैनिक जीवन से कुछ समय निकालकर गुरु धाम में आकर भक्तियोग की क्रियात्मक साधना का अभ्यास करते हैं।

जगद्गुरूत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा रचित नाम संकीर्तन, पद संकीर्तन आदि के मध्य साधना कार्यक्रम सम्पन्न हुआ। दिनांक 5 मार्च को अहर्निश भगवन्नाम संकीर्तन द्वारा राधावतार श्री चैतन्य महाप्रभु का प्राकट्योत्सव मनाया गया। दिनांक 6 मार्च को भक्तों ने हरि-गुरु चरणों में पुष्प समर्पित करते हुये होली का पर्व मनाया। जगद्गुरु कृपालु परिषत् की अध्यक्षा सुश्री डा. विशाखा त्रिपाठी , सुश्री डा. श्यामा त्रिपाठी एवं सुश्री डा. कृष्णा त्रिपाठी ने भगवान् का समर्पित किये हुये पीले रंग के चंदन से भक्तों को होली का टीका लगाया। इस प्रकार भक्ति धाम-मनगढ़ में सम्पन्न हुआ, भक्ति का यह महान पर्व और भक्ति के अनेक रंगों में रंगकर भक्तजन भक्तिमय हुये। भक्ति धाम-मनगढ़, भक्ति के रंग, रंगा, होली का उत्सव, जगद्गुरु कृपालु परिषत्, भक्तियोग रसावतार जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज

आध्यात्म

आज पूरा देश मना रहा रामनवमी, जानिए इसके पीछे की पूरी पौराणिक कहानी

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नई दिल्ली। आज पूरे देश में रामनवमी का त्यौहार बड़ी धूम धाम से मनाया जा रहा है। पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक इस दिन भगवान राम का जन्म हुआ था। जो विष्णु का सातवां अवतार थे। रामनवमी का त्यौहार चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी को मनाया जाता है। आइये जानते हैं इसके पीछे की पौराणिक कहानी।

पौराणिक कथाओं के मुताबिक भगवान राम ने भी मां दुर्गा की पूजा की थी, जिससे कि उन्हें युद्ध के समय विजय मिली थी। साथ ही माना जाता है इस दिन गोस्वामी तुलसीदास जी ने रामचरित मानस की रचना का आरंभ किया। राम नवमी का व्रत जो भी करता है वह व्यक्ति पापों से मुक्त होता है और साथ ही उसे शुभ फल प्रदान होता है

रामनवमी का इतिहास-

महाकाव्य रामायण के अनुसार अयोध्या के राजा दशरथ की तीन पत्नियां थी। कौशल्या, सुमित्रा और कैकयी। शादी को काफी समय बीत जाने के बाद भी राजा दशरथ के घर किसी बालक की किलकारी नहीं गूंजी थी। इसके उपचार के लिए ऋषि वशिष्ट ने राजा दशरथ से पुत्र प्राप्ति के लिए कमेश्टी यज्ञ कराने के लिए कहा। जिसे सुनकर दशरथ खुश हो गए और उन्होंने महर्षि रुशया शरुंगा से यज्ञ करने की विन्नती की। महर्षि ने दशरथ की विन्नती स्वीकार कर ली। यज्ञ के दौरान महर्षि ने तीनों रानियों को प्रसाद के रूप में खाने के लिए खीर दी। इसके कुछ दिनों बाद ही तीनों रानियां गर्भवती हो गईं।

नौ माह बाद चैत्र मास में राजा दशरथ की बड़ी रानी कौशल्या ने भगवान राम को जन्म दिया, कैकयी ने भरत को और सुमित्रा ने दो जुड़वा बच्चे लक्ष्मण और शत्रुघन को जन्म दिया। भगवान विष्णु ने श्री राम के रूप में धरती पर जन्म इसलिए लिया ताकि वे दुष्ट प्राणियों का नरसंहार कर सके।

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