आध्यात्म
वृन्दावन के प्रेम मंदिर में हुआ विशाल भंडारे का आयोजन, जेकेपी ने साधुओं को कराया भोज
वृन्दावन। जगद्गुरु कृपालु परिषत् (जेकेपी) की ओर से बीते कई सालों से निःस्वार्थ भाव से समाज सेवा के सराहनीय कार्य किए जा रहे हैं। इसी क्रम में सोमवार को वृन्दावन के प्रेम मंदिर में हर वर्ष की तरह इस वर्ष भी साधुओं को भोज कराया गया।
आपको बता दें कि जगद्गुरू कृपालु जी महाराज ने साधु-विधवा भोज की शुरुआत आज से दस वर्ष पहले की थी। जगद्गुरु कृपालु जी महाराज की बनाई गई नीति के चलते सोमवार को विशाल भण्डारे में कृपालु जी महाराज के अनुयाइयों ने 5 हजार साधुओं को आदर सहित प्रवेश देकर प्राचीन संस्कृति के अनुसार उनके चरण धोकर एवं कोमल वस्त्र से चरण साफ कर भोज कराया।
जगद्गुरू कृपालु महाराज की पुत्रियां डॉ विशाखा त्रिपाठी, डॉ श्यामा त्रिपाठी और डॉ कृष्णा त्रिपाठी ने साधुओं को दैनिक उपयोग में आने वाली वस्तुओं के साथ पांच-पांच सौ रूपये दक्षिणा देकर स्वागत किया। कृपालु महाराज के अनुयायी साधुओं के चरण छूकर उनका आशीर्वाद लेते रहे। मंगलवार को प्रेम मन्दिर में चार हजार विधवाओं को भी भोज दिया जाएगा।
इस मौके पर जगद्गुरू कृपालु परिषद की अध्यक्षा सुश्री डॉ विशाखा त्रिपाठी ने कहा कि सनातन धर्म में साधु सेवा सबसे सर्वोपरि बताई गई है। उन्होंने कहा कि यह संस्कार उन्हें जगद्गुरू कृपालु महाराज से मिले हैं। उन्ही संस्कारों को लेकर जगद्गुरू कृपालु परिषद अपना दायित्व समझकर महाराज श्री के बताए मार्ग पर चल रहा है।
आध्यात्म
आज पूरा देश मना रहा रामनवमी, जानिए इसके पीछे की पूरी पौराणिक कहानी
नई दिल्ली। आज पूरे देश में रामनवमी का त्यौहार बड़ी धूम धाम से मनाया जा रहा है। पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक इस दिन भगवान राम का जन्म हुआ था। जो विष्णु का सातवां अवतार थे। रामनवमी का त्यौहार चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी को मनाया जाता है। आइये जानते हैं इसके पीछे की पौराणिक कहानी।
पौराणिक कथाओं के मुताबिक भगवान राम ने भी मां दुर्गा की पूजा की थी, जिससे कि उन्हें युद्ध के समय विजय मिली थी। साथ ही माना जाता है इस दिन गोस्वामी तुलसीदास जी ने रामचरित मानस की रचना का आरंभ किया। राम नवमी का व्रत जो भी करता है वह व्यक्ति पापों से मुक्त होता है और साथ ही उसे शुभ फल प्रदान होता है
रामनवमी का इतिहास-
महाकाव्य रामायण के अनुसार अयोध्या के राजा दशरथ की तीन पत्नियां थी। कौशल्या, सुमित्रा और कैकयी। शादी को काफी समय बीत जाने के बाद भी राजा दशरथ के घर किसी बालक की किलकारी नहीं गूंजी थी। इसके उपचार के लिए ऋषि वशिष्ट ने राजा दशरथ से पुत्र प्राप्ति के लिए कमेश्टी यज्ञ कराने के लिए कहा। जिसे सुनकर दशरथ खुश हो गए और उन्होंने महर्षि रुशया शरुंगा से यज्ञ करने की विन्नती की। महर्षि ने दशरथ की विन्नती स्वीकार कर ली। यज्ञ के दौरान महर्षि ने तीनों रानियों को प्रसाद के रूप में खाने के लिए खीर दी। इसके कुछ दिनों बाद ही तीनों रानियां गर्भवती हो गईं।
नौ माह बाद चैत्र मास में राजा दशरथ की बड़ी रानी कौशल्या ने भगवान राम को जन्म दिया, कैकयी ने भरत को और सुमित्रा ने दो जुड़वा बच्चे लक्ष्मण और शत्रुघन को जन्म दिया। भगवान विष्णु ने श्री राम के रूप में धरती पर जन्म इसलिए लिया ताकि वे दुष्ट प्राणियों का नरसंहार कर सके।
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