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शाही इमाम के बेटे की दस्तारबंदी रोकने से न्यायालय का इंकार

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नई दिल्ली| दिल्ली उच्च न्यायालय ने जामा मस्जिद के शाही इमाम के बेटे को नायब इमाम बनाए जाने के लिए प्रस्तावित दस्तारबंदी समारोह पर रोक लगाने से शुक्रवार को इंकार कर दिया। मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति जी.रोहिणी और न्यायमूर्ति आर.एस.एन्डलॉ की खंडपीठ ने कहा कि दस्तारबंदी कार्यक्रम की कोई कानूनी स्थिति नहीं है, जिस तरह की सूचना केंद्र और वक्फ बोर्ड ने दी है, इसलिए न्यायालय इस कार्यक्रम पर रोक नहीं लगा सकती।

केंद्र सरकार और वक्फ बोर्ड ने गुरुवार को न्यायालय को बताया था कि नायब इमाम की ताजपोशी अवैध है और इसे कोई कानूनी मान्यता नहीं है।

न्यायालय ने इस संबंध में दिल्ली वक्फ बोर्ड और जामा मस्जिद के शाही इमाम मौलाना सैयद अहमद बुखारी, भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण (एएसआई), दिल्ली विकास प्राधिकरण और दिल्ली नगर निगम को 28 जनवरी तक जवाब देने के लिए नोटिस जारी किया है।

न्यायालय ने तीन जनहित याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए यह नोटिस भेजा है। याचिकाओं में कहा गया है कि जामा मस्जिद दिल्ली वक्फ बोर्ड की संपत्ति है और बुखारी अपने बेटे को नायब इमाम के रूप में नियुक्त नहीं कर सकते।

भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) और केंद्र सरकार के वकील ने न्यायालय को बताया कि जामा मस्जिद एक ऐतिहासिक स्मारक है और मस्जिद के उच्च पदस्थ व्यक्ति नए इमाम या मुख्य इमाम की नियुक्ति कर सकते हैं या नहीं, यह अभी तय नहीं है।

याचिकाओं के अनुसार, “यह जानते हुए कि इमाम वक्फ बोर्ड के कर्मचारी हैं और इमाम की नियुक्ति का अधिकारी बोर्ड के पास है, बुखारी ने अपने 19 वर्षीय बेटे को नायब इमाम बना दिया और इसके लिए दस्तारबंदी कार्यक्रम का आयोजन किया जा रहा है, जो कि पूरी तरह गैर इस्लामिक है।”

जामा मस्जिद का निर्माण मुगल काल में किया गया था।

इसके अतिरिक्त जनहित याचिकाओं में बुखारी की शाही इमाम के रूप में नियुक्ति को भी रद्द करने की मांग की गई है।

याचिकाओं में कहा गया है कि यह शाही इमाम की अराजकता और पद का दुरुपयोग है। याचिकाओं में केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) से जांच कराए जाने की भी मांग की गई है।

बुखारी ने हाल ही में अपने उस घोषणा से विवाद पैदा कर दिया था, जब उन्होंने कहा था कि दस्तारबंदी कार्यक्रम में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को आमंत्रित किया गया है, लेकिन उन्होंने भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को न्योता देना जरूरी नहीं समझा।

नेशनल

जानिए कौन हैं वो चार लोग, जिन्हें पीएम मोदी ने नामांकन के लिए अपना प्रस्तावक चुना

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वाराणसी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वाराणसी के काल भैरव मंदिर में दर्शन करने के बाद अपना नामांकन दाखिल कर दिया। पीएम मोदी ने वाराणसी से तीसरी बार अपना नामांकन दाखिल किया है। पीएम मोदी के नामांकन में गृह मंत्री अमित शाह और राजनाथ सिंह समेत 20 केंद्रीय मंत्री मौजूद रहे। इसके अलावा 12 राज्यों के सीएम भी शामिल हुए। पीएम मोदी के नामांकन के दौरान उनके साथ चार प्रस्तावक भी कलेक्ट्रेट में मौजूद रहे।

इनमें एक पुजारी, दो ओबीसी और एक दलित समुदाय के व्यक्ति का नाम है। दरअसल पीएम मोदी के नामांकन के दौरान चार प्रस्तावक मौजूद रहे। इनमें पहला नाम आचार्य गणेश्वर शास्त्री का है, जो कि पुजारी हैं। इसके बाद बैजनाथ पटेल पीएम मोदी के नामांकन के दौरान प्रस्तावक बने, जो ओबीसी समुदाय से आते हैं। वहीं लालचंद कुशवाहा भी पीएम के नामांकन में प्रस्तावक के तौर पर शामिल हुए। ये भी ओबीसी समाज से आते हैं। पीएम मोदी के प्रस्तावकों में आखिरी नाम संजय सोनकर का भी है, जो कि दलित समुदाय से हैं।

चुनाव में प्रस्तावक की भूमिका अहम होती है। ये ही वे लोग होते हैं, जो किसी उम्मीदवार के नाम का प्रस्ताव रखते हैं। निर्वाचन आयोग के मुताबिक, प्रस्तावक वे स्‍थानीय लोग होते हैं, जो किसी उम्मीदवार को चुनाव लड़ने के लिए अपनी ओर से प्रस्तावित करते हैं। आमतौर पर नामांकन के लिए किसी महत्वपूर्ण दल के वीआईपी कैंडिडेट के लिए पांच और आम उम्मीदवार के लिए दस प्रस्तावकों की जरूरत होती है।

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