मुख्य समाचार
टकराव की मानसिकता बदलें
इलाहाबाद में दरोगा के हाथों वकील की हत्या के बाद पूरे प्रदेश में अधिवक्ता समुदाय आंदोलित है। जगह-जगह खाकी और काले कोट वालों के बीच टकराव भी देखने को मिल रहा है। राज्य सरकार भी इस पूरे मामले में फूंक-फूंककर कदम रख रही है। उसने मामले की जांच सीबीआई के सुपुर्द करने का निर्णय लिया है। अब यह निर्णय सीबीआई को करना है कि वह जांच अपने हाथ में लेती है या नहीं। पहले भी राज्य सरकार ने मोहनलालगंज हत्याकांड की जांच सीबीआई से कराने की संस्तुति की थी लेकिन ब्यूरो ने उसे स्वीकार नहीं किया। अब गेंद सीबीआई के पाले में है। कहीं न कहीं इसके पीछे मंशा यह है कि प्रदेश सरकार न तो पुलिस बल से बुराई मोल लेना चाहती है और न ही वकीलों को नाराज करना चाहती है। घटना के बाद डीजीपी ने किसी पुलिस अधिकारी का ट्रांस्फर भी नहीं किया। इसके पीछे पुलिस का मनोबल बचाए रखने को वजह बताई जा रही है।
इस मामले में जिस तरह वकील की हत्या हुई, उसे किसी भी तरह ठीक नहीं ठहराया जा सकता लेकिन इसके लिए बहुत हद तक वकील भी जिम्मेदार हैं। कुछ महीनों पहले व्यापारी नेता बनवारी लाल कंछल की वकीलों ने सरेआम बेरहमी से पिटाई की थी वह किसी से छिपा नहीं है। आए दिन होने वाले प्रदर्शनों के दौरान वकील आम जनता से बदसलूकी से भी नहीं हिचकते। राजधानी लखनऊ भी इससे अछूती नहीं है। वकीलों की बड़ी तादाद और कानून की जानकारी रखना उन्हें कानून से खिलवाड़ करने की इजाजत नहीं देता। छोटी-मोटी घटनाओं में भी वकीलों द्वारा मारपीट करना, सड़क जाम कर प्रदर्शन करना बेहद साधारण बात है। इस मामले में पकड़े गए आरोपी दरोगा शैलेंद्र सिंह ने भी अपने अफसरों के सामने चौंकाने वाला बयान दिया है। उसने कहा कि वह 11 मार्च को अदालत में वकीलों से घिर चुका था और सभी उसे बुरी तरह पीटने लगे थे। उसने बचने की कोशिश की लेकिन कामयाब नहीं हो सका। उसने रिवाल्वर निकाल ली, इसके बावजूद उसके साथ मारपीट की जाती रही। अगर वह गोली न चलाता तो वकील ही उसे मार डालते। उसने सेल्फ डिफेंस में गोली चलाने की बात कही। इसमें कितनी सच्चाई है, यह जांच का विषय है लेकिन वकीलों को अपनी टकराव की मानसिकता में सुधार लाना होगा। ज्यादा संख्या के दम पर गुंडागर्दी करना और फिर उसे न्यायोचित ठहराना ठीक नहीं।
दोषी पुलिस बल पर लगाम कसना भी बेहद जरूरी है। खाकी वर्दी जिस तरह खुलेआम गुंडागर्दी करती है, यह हर कोई जानता है। पुलिस का इकबाल जनता में किस कदर है, इसका अंदाजा इसी से लगता है कि एक साधारण आदमी पुलिस चौकी या थाने में फरियाद करने जाने से भी बचता है। बहुत हिम्मत जुटा ली तो पुलिसिया रवैया बेहद असहयोगात्मक रहता है।
इस मामले में राज्य सरकार को भी बिना किसी पक्षपात के दोषियों पर कार्रवाई करनी होगी। ऐसा होने पर लोगों में एक संदेश जाएगा। लोगों में शासन के प्रति एक विश्वास कायम होगा। सरकार ने कुछ कोर्ट की सुरक्षा अर्धसैनिक बलों के हवाले की है। कई संवेदनशील जगहों पर ये कदम उठाए जाएंगे, तो बेहतर परिणाम सामने आ सकते हैं।
नेशनल
इंदौर से कांग्रेस प्रत्याशी अक्षय कांति ने वापस लिया नामांकन, बीजेपी में होंगे शामिल
इंदौर। लोकसभा चुनाव से पहले ही इंदौर से कांग्रेस उम्मीदवार अक्षय कांति बम ने अपना नामांकन वापस ले लिया है। अक्षय कांति के इस फैसले फैसले से कांग्रेस को बड़ा झटका लगा है। कलेक्टर कार्यालय में जाकर बीजेपी के उम्मीदवार शंकर लालवानी के सामने उन्होंने अपना पर्चा वापस लिया। इस दौरान बीजेपी के नेता रमेश मेंदोला भी साथ थे। इसके बाद में कैबिनेट मंत्री कैलाश विजयवर्गीय और विधायक मेंदोला के साथ भाजपा कार्यालय के लिए रवाना हो गए। माना जा रहा है कि बम भाजपा की सदस्यता लेंगे।
इंदौर कैलाश विजयवर्गीय का गढ़ माना जाता है। विजयवर्गीय इंदौर 1 से विधायक हैं। उन्होंने एक्स पर अक्षय कांति बम की तस्वीर के साथ लिखा, ”इंदौर से कांग्रेस के लोकसभा प्रत्याशी अक्षय कांति बम जी का माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा, मुख्यमंत्री मोहन यादव और प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा के नेतृत्व में बीजेपी में स्वागत है।”
इसके बाद इंदौर सीट पर अब भाजपा के लिए मैदान लगभग साफ हो गया है, उसके सामने निर्दलीय और अन्य दलों के अलावा कोई प्रत्याशी नहीं बचा। नामांकन वापस लेने के बाद अक्षय कांति बम ने कहा कि जब से उन्होंने नामांकन जमा किया था, तब से ही कांग्रेस की ओर से उन्हें कोई सपोर्ट नहीं मिल रहा था। हालांकि, राजनीतिक गलियारों में यह भी कयास लगाए जा रहे हैं कि फॉर्म भरने के बाद से ही कांग्रेस अक्षय कांति पर दबाव बना रही थी।
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