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दूसरी हरित क्रांति के साथ कृषि औजार बैंक की भी सख्त जरूरत : राधा मोहन सिंह

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दूसरी हरित क्रांति के साथ कृषि औजार बैंक की भी सख्त जरूरत : राधा मोहन सिंह

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दूसरी हरित क्रांति के साथ कृषि औजार बैंक की भी सख्त जरूरत : राधा मोहन सिंह

रीतू तोमर 

नई दिल्ली| सरकार ने किसानों की हालत में सुधार के लिए कई कारगर परियोजनाएं शुरू की हैं। इस दिशा में कुछ और त्वरित कदम उठाए जाने हैं,जिनमें औजार बैंक प्रमुख हैं। केंद्रीय कृषि मंत्री राधा मोहन सिंह कहते हैं कि देश में ऐसे किसानों की संख्या बहुत अधिक है, जो बड़े औजार नहीं खरीद सकते। उन्हें छोटे-छोटे औजारों से काम चलाना पड़ता है। उनके लिए औजार बैंकों की स्थापना होनी चाहिए ताकि उन्हें जरूरत के हिसाब से औजार उपलब्ध हो सके।

साल 2016-17 के बजट में कृषि के लिए आवंटित राशि बढ़ाई गई है। किसानों को प्राथमिकता देते हुए फसल बीमा योजना, कृषि सिंचाई योजना और मृदा स्वास्थ्य कार्ड पर खासा ध्यान दिया गया है। जैविक कृषि के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है। इस दिशा में सिक्किम को पहला पूर्ण जैविक राज्य बनने का गौरव हासिल है।

राधा मोहन सिंह ने आईएएनएस को दिए साक्षात्कार में सूखे, किसानों की हालत, कृषि क्षेत्र में सुधार और बजट 2016-17 में कृषि के लिए आवंटित राशि पर चर्चा की।

सिंह ने बताया कि इस बार के बजट से यह सिद्ध भी हो गया है कि सरकार कृषि की हालत सुधारने को लेकर कितनी गंभीर है और बजट में इसे प्राथमिकता दी गई है। बजट में कृषि के लिए आवंटित राशि में भारी वृद्धि की गई है, जिससे चार प्रतिशत कृषि विकास दर हासिल करने में मदद मिलेगी। किसानों की आय को पांच साल में दोगुना किया जाएगा। जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए एक परिषद बनाई गई है, जो इससे निपटने के उपायों पर काम कर रही है। इसमें आधुनिक कृषि, मृदा स्वास्थ्य कार्ड, उन्नत बीज, सिंचाई प्रबंधन आदि शामिल हैं। कृषि सिंचाई योजना को मिशन कोड में शामिल किया जा रहा है।

किसानों के लिए मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना काफी कारगर सिद्ध हो रही है। कृषि क्षेत्र में मृदा की सेहत में सुधार के लिए मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना अहम है। इसका उद्देश्य उत्पादकता बढ़ाना है। देश में खराब मौसम, बाढ़ व अन्य कई कारणों से फसलों की बर्बादी से किसानों को काफी नुकसान उठाना पड़ता है। इसे देखते हुए किसानों के लिए फसल बीमा योजना पेश की गई। मार्च तक इससे 14 करोड़ किसान जुड़ जाएंगे।

वह कहते हैं कि देश में कृषि क्षेत्र में डेयरी विकास की महत्वपूर्ण भूमिका रही है, जिसमें महिलाओं की भागीदारी प्रमुख है लेकिन राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड की अध्यक्ष अमृता पटेल का उल्लेख किए बिना यह अधूरा है। उन्होंने डेयरी विकास क्षेत्र में उम्मीद से बेहतर काम किया है। भारत विश्व का सबसे बड़ा दूध उत्पादक देश ऐसे ही नहीं बन गया है।

उन्होंने आईएएनएस को बताया कि देसी गाय की नस्ल में सुधारने की जरूरत है। इसके लिए उपयुक्त राशि भी बजट में आवंटित की गई है। देशभर में नेशनल ब्रीडिंग सेंटर खोलना प्राथमिकता है। आगामी पांच वर्ष में नस्ल सुधार रिसर्च, कृत्रिम गर्भाधान सहित कई योजनाएं अमल में लाई जाएंगी, जिससे देसी नस्ल की गाय की मांग बढ़ेगी।

प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के तहत पुरानी सभी योजनाओं की तुलना में किसानों को कम प्रीमियम भरना होगा। फसलों के लिए खरीफ में ज्यादा से ज्यादा दो प्रतिशत और रबी में अधिक से अधिक 1.5 प्रतिशत बीमा दर रखी गई है।

नेशनल

लोकसभा के शोले और रहीम चाचा की खामोशी

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सच्चिदा नन्द द्विवेदी एडिटर-इन-चीफ

हिन्दी सिनेमा की कालजई फिल्म शोले के रहीम चाचा का किरदार आपको जरूर याद होगा। उनका एक डायलॉग था जिसमें वो कहते है “इतना सन्नाटा क्यूँ है भाई” उस वक्त पूरे रामगढ़ में किसी के पास इसका जवाब नहीं था, कमोवेश ठीक वैसे ही हालात इस वक्त लोकसभा चुनाव में नजर आ रहे हैं। लोकसभा के चुनाव के दो चरण पूरे हो चुके हैं पर पूरे देश में कहीं भी ऐसा नजर नहीं आता कि हम अगले पाँच साल के लिए अपने नुमाइंदे चुनने जा रहे हैं। एक अजीब खामोशी नुमायाँ है। गांव, कस्बों और शहरों तक में होर्डिंग और पोस्टर नजर नहीं आ रहे हैं और न ही कानफोडू लाऊडस्पीकर पर वोट मांगने वालों का शोर सुनाई दे रहा है, चाय की टपरी और पान के खोखों पर जमा होने वाली भीड़ अपने होंठों को सिले हुए है।

एक वक्त था जब हम लोग चाय की टपरी, पान की दुकान और रास्तों के ढाबों से देश का मूड भांप लेते थे। मतदाताओं के मन में क्या चल रहा है इसका अंदाज लगाना आसान था। लेकिन आज स्थिति उलट है इन जगहों पर खड़ा आम आदमी आपसे ही उल्टा पूछ लेता है ‘और क्या चल रहा है’ इंसान-इंसान के बीच अविश्वास की खाई इतनी गहरी हो गई है कि वो पब्लिक प्लेस पर अब राजनीतिक बात करने से गुरेज करने लगा है। वोटर अपने मन की बात जुबान पर नहीं लाना चाहता हैं क्यूंकी अब वो रेडियो पर ‘मोदी जी’ के मन की बात सुन रहा है और अपने मन की बात अपने मन में रखे हुए है। उसे डर है और ये डर मिश्रित चुप्पी स्वस्थ लोकतंत्र के लिए अच्छा लक्षण नहीं है।

लोकसभा चुनाव के पहले चरण की तरह दूसरे चरण में भी वोटिंग 2019 के मुकाबले कम हुई है। पहले चरण में 21 राज्यों की 102 लोकसभा सीटों पर 64 प्रतिशत वोटिंग हुई थी। जबकि पिछले लोकसभा चुनाव में उन सीटों पर भी 70 प्रतिशत से ज्यादा मतदान हुआ था। ऐसे ही इस बार दूसरे चरण में 13 राज्यों की 88 लोकसभा सीटों पर करीब 63 फीसदी वोट पड़े। यह 2019 के लोकसभा चुनाव में 70.09% मतदान के मुकाबले काफी कम था। यूपी, बिहार, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश और राजस्थान जैसे बड़े राज्यों में वोटिंग उम्मीद से काफी कम रही। यूपी में 54.85%, बिहार में 55.08% , महाराष्ट्र में 57.83% , एमपी में 57.88 % वोटिंग हुई। सबसे अधिक वोट त्रिपुरा, मणिपुर, छत्तीसगढ़ और पश्चिम बंगाल में पड़े। लोकसभा चुनाव के तीसरे चरण में सात मई को वोटिंग है। इसमें 12 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों की 95 सीट पर मतदान होगा, जिसके लिए 1351 उम्मीदवार चुनाव मैदान में हैं।

जब 7 मई, 13 मई, 20 मई, 25 मई और 1 जून को तीसरे, चौथे, पांचवे, छठे और सातवें चरण का मतदान होगा तो इस दौरान देश के अधिकतर हिस्सों में गर्मी के साथ लू का असर दिखाई देगा। भारतीय मौसम विज्ञान विभाग के आंकड़ों से पता चलता है कि लोकसभा चुनाव के लिए प्रचार के दौरान लगभग 72% निर्वाचन क्षेत्रों में अधिकतम तापमान 35°C या इससे अधिक हो सकता है। विशेष रूप से, 59 सीटों पर 40-42 डिग्री सेल्सियस के बीच तापमान का सामना करना पड़ सकता है। जबकि 194 सीटों पर 37.5-से 40 डिग्री सेल्सियस के बीच तापमान देखा जा सकता है। लेकिन इस गर्मी के बीच क्षेत्रीय दलों के नेता काफी तेजी से अपने इलाके के मतदाताओं पर पकड़ बना रहे हैं और उन सवालों को उठा रहे हैं जिनसे देश का किसान, मजदूर और नौजवान चिंतित है। इसलिए उनके प्रति आम जनता की अपेक्षाएं बढ़ी हैं इसलिए विपक्षी गठबंधन के नेताओं की रैलियों में भारी भीड़ आ रही है। जबकि भाजपा की रैलियों का रंग उसके मुकाबले फीका नजर या रहा है।

हालांकि रैली में आने वाली भीड़ जीत का पैमाना नहीं होती इसलिए कुछ कहा नहीं जा सकता। हर दल का अपना एक समर्पित काडर होता है। जबकि आज काडर के नाम पर ज्यादातर दलों के पास सत्ता के छत्ते से चिपकी रहने वाली मधुमक्खी ही ज्यादा नजर या रहीं है ये वो लोग हैं जिन्हें सत्ता की दलाली करने के अवसरों की तलाश होती है। राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ जिसके पास काडर है कार्यकर्ता हैं वो भी खामोश नजर आ रहा है। बहरहाल लगातार कम होते मतदान ने नेताओं की धुकधुकी बढ़ा रखी है। सत्ता पक्ष मतदान प्रतिशत बढ़ाने के लिए परेशान है तो विपक्ष कम प्रतिशत को अपने पक्ष में मानकर मुंगेरीलाल के सपने बुनने में मगन है।

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