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मोबाइल टावर लगाने की अनुमति दें सभी अस्पताल : पीएमओ

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नई दिल्ली। प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) से जारी एक निर्देश में राजधानी के स्थानीय प्राधिकरणों से कहा गया है कि कॉल ड्रॉप की समस्या दूर करने के लिए वे दूरसंचार कंपनियों को जरूरी अवसंरचना लगाने में मदद करें, खास तौर से अस्पतालों में।

पीएमओ से दूरसंचार विभाग को भेजे गए एक पत्र में कहा गया है, “कार्यालय को पता चला है कि अस्पताल आने वाले मरीजों और अन्य लोगों को, खासकर दिल्ली में, मोबाइल संपर्क स्थापित करने में दिक्कतें होती हैं।” इस पर विभाग द्वारा जारी किए गए निर्देश में अस्पतालों से दूरसंचार सेवा प्रदाताओं (टीएसपी) को टावर तथा अन्य अवसंरचना लगाने की अनुमति देने और कुछ शुल्क भी वसूलने की अनुमति दी। हालांकि यह शुल्क आय अर्जित करने के लिए नहीं होना चाहिए।

विभाग द्वारा जारी निर्देश में कहा गया है, “अस्पताल अधिकारियों को टीएसपी को समान रूप से अस्पताल में जरूरी दूरसंचार उपकरण लगाने की अनुमति देना चाहिए।” सेल्युलर ऑपरेटर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (सीओएआई) के महानिदेशक राजन एस मैथ्यूज ने आईएएनएस से इस घटनाक्रम पर अपनी प्रतिक्रिया में कहा कि कॉल ड्रॉप से निजात पाने का एक मात्र समाधान यही है कि राज्य सरकार कहे कि अस्पताल के पास टावर लगाए जा सकते हैं।

विभाग ने अपने निर्देश में कहा, “अस्पताल परिसर आम तौर पर काफी बड़ा होता है और भवन की संरचना जटिल होती है, इसलिए भवन के अंदर मोबाइल नेटवर्क जरूरी है। अस्पताल भवनों के अंदर इन-बिल्डिंग समाधान (आईबीएस) इसका सबसे प्रभावी समाधान है।” इसमें यह भी कहा गया है, “अस्पतालों को मामूली/वाजिब शुल्क पर जरूरी अवसंरचना उपलब्ध कराना चाहिए।” निर्देश में हालांकि इससे कमाई करने से मना किया गया है। मैथ्यूज ने कहा कि कुछ सरकारी विभागों ने टावर से निकलने वाली तरंगों के स्वास्थ्य प्रभाव को लेकर चिंता जताई है। उन्होंने साथ ही कहा कि विश्व स्वास्थ्य संगठन जैसे विशेषज्ञ संगठनों ने इस चिंता को दूर कर दिया है। उन्होंने साथ ही कहा कि भारत के मानक 10 गुना अधिक सख्त हैं।

मैथ्यूज ने कहा कि हमारे लिए सबसे बड़ा प्रोत्साहन यही है कि बिना किसी चुनौती का सामना किए हम टावर लगा पाएं। विभिन्न राज्यों में टावर लगाने की अनुमति लेना सबसे बड़ी चुनौती है।

नेशनल

लोकसभा के शोले और रहीम चाचा की खामोशी

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सच्चिदा नन्द द्विवेदी एडिटर-इन-चीफ

हिन्दी सिनेमा की कालजई फिल्म शोले के रहीम चाचा का किरदार आपको जरूर याद होगा। उनका एक डायलॉग था जिसमें वो कहते है “इतना सन्नाटा क्यूँ है भाई” उस वक्त पूरे रामगढ़ में किसी के पास इसका जवाब नहीं था, कमोवेश ठीक वैसे ही हालात इस वक्त लोकसभा चुनाव में नजर आ रहे हैं। लोकसभा के चुनाव के दो चरण पूरे हो चुके हैं पर पूरे देश में कहीं भी ऐसा नजर नहीं आता कि हम अगले पाँच साल के लिए अपने नुमाइंदे चुनने जा रहे हैं। एक अजीब खामोशी नुमायाँ है। गांव, कस्बों और शहरों तक में होर्डिंग और पोस्टर नजर नहीं आ रहे हैं और न ही कानफोडू लाऊडस्पीकर पर वोट मांगने वालों का शोर सुनाई दे रहा है, चाय की टपरी और पान के खोखों पर जमा होने वाली भीड़ अपने होंठों को सिले हुए है।

एक वक्त था जब हम लोग चाय की टपरी, पान की दुकान और रास्तों के ढाबों से देश का मूड भांप लेते थे। मतदाताओं के मन में क्या चल रहा है इसका अंदाज लगाना आसान था। लेकिन आज स्थिति उलट है इन जगहों पर खड़ा आम आदमी आपसे ही उल्टा पूछ लेता है ‘और क्या चल रहा है’ इंसान-इंसान के बीच अविश्वास की खाई इतनी गहरी हो गई है कि वो पब्लिक प्लेस पर अब राजनीतिक बात करने से गुरेज करने लगा है। वोटर अपने मन की बात जुबान पर नहीं लाना चाहता हैं क्यूंकी अब वो रेडियो पर ‘मोदी जी’ के मन की बात सुन रहा है और अपने मन की बात अपने मन में रखे हुए है। उसे डर है और ये डर मिश्रित चुप्पी स्वस्थ लोकतंत्र के लिए अच्छा लक्षण नहीं है।

लोकसभा चुनाव के पहले चरण की तरह दूसरे चरण में भी वोटिंग 2019 के मुकाबले कम हुई है। पहले चरण में 21 राज्यों की 102 लोकसभा सीटों पर 64 प्रतिशत वोटिंग हुई थी। जबकि पिछले लोकसभा चुनाव में उन सीटों पर भी 70 प्रतिशत से ज्यादा मतदान हुआ था। ऐसे ही इस बार दूसरे चरण में 13 राज्यों की 88 लोकसभा सीटों पर करीब 63 फीसदी वोट पड़े। यह 2019 के लोकसभा चुनाव में 70.09% मतदान के मुकाबले काफी कम था। यूपी, बिहार, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश और राजस्थान जैसे बड़े राज्यों में वोटिंग उम्मीद से काफी कम रही। यूपी में 54.85%, बिहार में 55.08% , महाराष्ट्र में 57.83% , एमपी में 57.88 % वोटिंग हुई। सबसे अधिक वोट त्रिपुरा, मणिपुर, छत्तीसगढ़ और पश्चिम बंगाल में पड़े। लोकसभा चुनाव के तीसरे चरण में सात मई को वोटिंग है। इसमें 12 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों की 95 सीट पर मतदान होगा, जिसके लिए 1351 उम्मीदवार चुनाव मैदान में हैं।

जब 7 मई, 13 मई, 20 मई, 25 मई और 1 जून को तीसरे, चौथे, पांचवे, छठे और सातवें चरण का मतदान होगा तो इस दौरान देश के अधिकतर हिस्सों में गर्मी के साथ लू का असर दिखाई देगा। भारतीय मौसम विज्ञान विभाग के आंकड़ों से पता चलता है कि लोकसभा चुनाव के लिए प्रचार के दौरान लगभग 72% निर्वाचन क्षेत्रों में अधिकतम तापमान 35°C या इससे अधिक हो सकता है। विशेष रूप से, 59 सीटों पर 40-42 डिग्री सेल्सियस के बीच तापमान का सामना करना पड़ सकता है। जबकि 194 सीटों पर 37.5-से 40 डिग्री सेल्सियस के बीच तापमान देखा जा सकता है। लेकिन इस गर्मी के बीच क्षेत्रीय दलों के नेता काफी तेजी से अपने इलाके के मतदाताओं पर पकड़ बना रहे हैं और उन सवालों को उठा रहे हैं जिनसे देश का किसान, मजदूर और नौजवान चिंतित है। इसलिए उनके प्रति आम जनता की अपेक्षाएं बढ़ी हैं इसलिए विपक्षी गठबंधन के नेताओं की रैलियों में भारी भीड़ आ रही है। जबकि भाजपा की रैलियों का रंग उसके मुकाबले फीका नजर या रहा है।

हालांकि रैली में आने वाली भीड़ जीत का पैमाना नहीं होती इसलिए कुछ कहा नहीं जा सकता। हर दल का अपना एक समर्पित काडर होता है। जबकि आज काडर के नाम पर ज्यादातर दलों के पास सत्ता के छत्ते से चिपकी रहने वाली मधुमक्खी ही ज्यादा नजर या रहीं है ये वो लोग हैं जिन्हें सत्ता की दलाली करने के अवसरों की तलाश होती है। राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ जिसके पास काडर है कार्यकर्ता हैं वो भी खामोश नजर आ रहा है। बहरहाल लगातार कम होते मतदान ने नेताओं की धुकधुकी बढ़ा रखी है। सत्ता पक्ष मतदान प्रतिशत बढ़ाने के लिए परेशान है तो विपक्ष कम प्रतिशत को अपने पक्ष में मानकर मुंगेरीलाल के सपने बुनने में मगन है।

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