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तमिलनाडु : पलनीस्वामी ने ली मुख्यमंत्री पद की शपथ
चेन्नई। ऑल इंडिया अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कडग़म (एआईएडीएमके) की महासचिव वी.के. शशिकला के विश्वासपात्र ई.पलनीस्वामी द्वारा गुरुवार को राज्य के मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के साथ ही राज्य में सत्ता को लेकर चल रहे संघर्ष का पटाक्षेप हो गया।
सरकार गठन करने का न्योता देने के कुछ घंटों बाद राज्यपाल सी. विद्यासागर राव ने राजभवन में पलनीस्वामी और उनके मंत्रियों को पद व गोपनीयता की शपथ दिलाई। सबसे पहले पलनीस्वामी (63) ने तमिल भाषा में शपथ ली। उनके बाद उनके मंत्रिमंडल के 30 मंत्रियों ने शपथ ली। मुख्यमंत्री को 15 दिनों के अंदर विधानसभा में बहुमत साबित करना होगा।
विधानसभा की बैठक हालांकि शनिवार को आहूत की गई है और शशिकला खेमे ने कहा है कि 234 सदस्यीय सदन में उसके पास कम से कम 117 विधायकों का समर्थन है। एक विधायक वी.एन.वीरूगई रवि ने कहा, “हमारे पास 125 विधायकों का समर्थन है और हम बहुमत साबित कर देंगे।” पलनीस्वामी ने अति महत्वपूर्ण वित्त मंत्रालय को अपने पास रखा है। ओ.पन्नीरसेल्वम की सरकार में भी यह मंत्रालय उन्हीं के पास था।
पेशे से किसान पलनीस्वामी ने अपने पास लोक निर्माण, राजमार्ग एवं छोटे बंदरगाह विभाग भी अपने पास ही रखे हैं। पन्नीरसेल्वम की सरकार में ये विभाग भी उन्हीं के पास थे। राजभवन ने एक बयान में कहा कि पार्टी के वरिष्ठ नेता सी. श्रीनिवासन तथा के.ए. सेनगोट्टैयन को वन मंत्रालय, स्कूली शिक्षा व खेल तथा युवा कल्याण मंत्रालय सौंपा गया है। दोनों ही मंत्रिमंडल के नए चेहरे हैं।
पी.थंगमणि को विद्युत, मद्य निषेध व आबकारी मंत्रालय सौंपा गया है। अन्य मंत्रियों में के.राजू, एस.पी.वेलुमणि, डी.जयकुमार, सी.वी. शणमुगम, के.पी.अनबलगन, वी.सरोजा, एम.सी. संपत, के.सी. करुप्पनन, आर. कामराज, के.राधाकृष्णन, सी. विजय भास्कर, आर.दोराईक्कानू, कादंबर राजू, आर.बी.उदयकुमार, एन.नटराजन, के.सी.वीरमणि, के.टी.राजेंद्र भालाजी, पी.बेंजामिन, नीलोफर काफिल, एम.आर.विजयभास्कर, एम.मानिकंदन, वी.एम.राजलक्ष्मी, जी.भास्करण, एस.रामचंद्रण, एस.वालारमती, पी.बालकृष्ण रेड्डी शामिल हैं।
कैबिनेट में पन्नीरसेल्वम तथा पूर्व स्कूली शिक्षा मंत्री के.पंडियाराजन को जगह नहीं दी गई है। पन्नीरसेल्वम ने पांच दिसंबर को मुख्यमंत्री जे.जयललिता के निधन के बाद मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी। उन्होंने कहा कि लोग इस बात से नाराज हैं कि नई सरकार का गठन उन विधायकों के समर्थन से किया गया है, जिन्होंने खुद को यहां एक बीच रिसॉर्ट में कैद करके रखने के आरोप लगाए थे।
पन्नीरसेल्वम खेमे के एक विधायक ने कहा है कि वे दिल्ली में निर्वाचन आयोग के अधिकारियों से मुलाकात करेंगे और शिकायत करेंगे कि एआईएडीएमके महासचिव का निर्वाचन एक चुनाव के दौरान पार्टी के कार्यकर्ता करते हैं, जबकि शशिकला का निर्वाचन जनरल काउंसिल की एक बैठक में किया गया।
शशिकला को पहले एआईएडीएमके का महासचिव और उसके बाद विधायक दल का नेता चुना गया, ताकि वह पन्नीरसेल्वम की जगह खुद मुख्यमंत्री पद की कमान संभाल सकें। लेकिन, पन्नीरसेल्वम ने शशिकला से बगावत कर दी, जिसके बाद पार्टी दो गुटों में बंट गई।
वहीं, द्रविड़ मुनेत्र कडग़म (डीएमके) के कार्यकारी अध्यक्ष एम.के.स्टालिन ने कहा कि एआईएडीएमके के ई.के.पलनीस्वामी को सदन में बहुमत साबित करने के लिए 15 दिनों का वक्त दिए जाने से विधायकों की खरीद-फरोख्त होगी। मुख्यमंत्री के शपथ ग्रहण के तुरंत बाद नए मुख्यमंत्री के समर्थकों ने पन्नीरसेल्वम के घर पर पथराव किया।
नए मुख्यमंत्री के शपथ ग्रहण से एक दिन पहले पार्टी की महासचिव शशिकला ने निचली अदालत के समक्ष समर्पण कर दिया, जिसके बाद उन्हें बेंगलुरू केंद्रीय कारा में बंद कर दिया गया। एआईडीएमके के शशिकला गुट के नेता ओ.एस.मानियन ने संवाददाताओं से कहा, “पन्नीरसेल्वम तथा स्कूली शिक्षा मंत्री के.पांडियाराजन को छोडक़र पन्नीरसेल्वम गुट में शामिल सभी विधायकों का हम स्वागत करते हैं।”
सेलम जिले के नेदुनगुलाम गांव के निवासी पलनीस्वामी गौंडार समुदाय से ताल्लुक रखते हैं। पलनीस्वामी 1980 में एआईएडीएमके में शामिल हुई थीं और पहली बार सन् 1989 में इडापडी विधानसभा क्षेत्र से विधायक बने थे। शशिकला को सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दोषी ठहराने के बाद पलनीस्वामी को विधायक दल का नेता चुना गया था।
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लोकसभा के शोले और रहीम चाचा की खामोशी
सच्चिदा नन्द द्विवेदी एडिटर-इन-चीफ
हिन्दी सिनेमा की कालजई फिल्म शोले के रहीम चाचा का किरदार आपको जरूर याद होगा। उनका एक डायलॉग था जिसमें वो कहते है “इतना सन्नाटा क्यूँ है भाई” उस वक्त पूरे रामगढ़ में किसी के पास इसका जवाब नहीं था, कमोवेश ठीक वैसे ही हालात इस वक्त लोकसभा चुनाव में नजर आ रहे हैं। लोकसभा के चुनाव के दो चरण पूरे हो चुके हैं पर पूरे देश में कहीं भी ऐसा नजर नहीं आता कि हम अगले पाँच साल के लिए अपने नुमाइंदे चुनने जा रहे हैं। एक अजीब खामोशी नुमायाँ है। गांव, कस्बों और शहरों तक में होर्डिंग और पोस्टर नजर नहीं आ रहे हैं और न ही कानफोडू लाऊडस्पीकर पर वोट मांगने वालों का शोर सुनाई दे रहा है, चाय की टपरी और पान के खोखों पर जमा होने वाली भीड़ अपने होंठों को सिले हुए है।
एक वक्त था जब हम लोग चाय की टपरी, पान की दुकान और रास्तों के ढाबों से देश का मूड भांप लेते थे। मतदाताओं के मन में क्या चल रहा है इसका अंदाज लगाना आसान था। लेकिन आज स्थिति उलट है इन जगहों पर खड़ा आम आदमी आपसे ही उल्टा पूछ लेता है ‘और क्या चल रहा है’ इंसान-इंसान के बीच अविश्वास की खाई इतनी गहरी हो गई है कि वो पब्लिक प्लेस पर अब राजनीतिक बात करने से गुरेज करने लगा है। वोटर अपने मन की बात जुबान पर नहीं लाना चाहता हैं क्यूंकी अब वो रेडियो पर ‘मोदी जी’ के मन की बात सुन रहा है और अपने मन की बात अपने मन में रखे हुए है। उसे डर है और ये डर मिश्रित चुप्पी स्वस्थ लोकतंत्र के लिए अच्छा लक्षण नहीं है।
लोकसभा चुनाव के पहले चरण की तरह दूसरे चरण में भी वोटिंग 2019 के मुकाबले कम हुई है। पहले चरण में 21 राज्यों की 102 लोकसभा सीटों पर 64 प्रतिशत वोटिंग हुई थी। जबकि पिछले लोकसभा चुनाव में उन सीटों पर भी 70 प्रतिशत से ज्यादा मतदान हुआ था। ऐसे ही इस बार दूसरे चरण में 13 राज्यों की 88 लोकसभा सीटों पर करीब 63 फीसदी वोट पड़े। यह 2019 के लोकसभा चुनाव में 70.09% मतदान के मुकाबले काफी कम था। यूपी, बिहार, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश और राजस्थान जैसे बड़े राज्यों में वोटिंग उम्मीद से काफी कम रही। यूपी में 54.85%, बिहार में 55.08% , महाराष्ट्र में 57.83% , एमपी में 57.88 % वोटिंग हुई। सबसे अधिक वोट त्रिपुरा, मणिपुर, छत्तीसगढ़ और पश्चिम बंगाल में पड़े। लोकसभा चुनाव के तीसरे चरण में सात मई को वोटिंग है। इसमें 12 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों की 95 सीट पर मतदान होगा, जिसके लिए 1351 उम्मीदवार चुनाव मैदान में हैं।
जब 7 मई, 13 मई, 20 मई, 25 मई और 1 जून को तीसरे, चौथे, पांचवे, छठे और सातवें चरण का मतदान होगा तो इस दौरान देश के अधिकतर हिस्सों में गर्मी के साथ लू का असर दिखाई देगा। भारतीय मौसम विज्ञान विभाग के आंकड़ों से पता चलता है कि लोकसभा चुनाव के लिए प्रचार के दौरान लगभग 72% निर्वाचन क्षेत्रों में अधिकतम तापमान 35°C या इससे अधिक हो सकता है। विशेष रूप से, 59 सीटों पर 40-42 डिग्री सेल्सियस के बीच तापमान का सामना करना पड़ सकता है। जबकि 194 सीटों पर 37.5-से 40 डिग्री सेल्सियस के बीच तापमान देखा जा सकता है। लेकिन इस गर्मी के बीच क्षेत्रीय दलों के नेता काफी तेजी से अपने इलाके के मतदाताओं पर पकड़ बना रहे हैं और उन सवालों को उठा रहे हैं जिनसे देश का किसान, मजदूर और नौजवान चिंतित है। इसलिए उनके प्रति आम जनता की अपेक्षाएं बढ़ी हैं इसलिए विपक्षी गठबंधन के नेताओं की रैलियों में भारी भीड़ आ रही है। जबकि भाजपा की रैलियों का रंग उसके मुकाबले फीका नजर या रहा है।
हालांकि रैली में आने वाली भीड़ जीत का पैमाना नहीं होती इसलिए कुछ कहा नहीं जा सकता। हर दल का अपना एक समर्पित काडर होता है। जबकि आज काडर के नाम पर ज्यादातर दलों के पास सत्ता के छत्ते से चिपकी रहने वाली मधुमक्खी ही ज्यादा नजर या रहीं है ये वो लोग हैं जिन्हें सत्ता की दलाली करने के अवसरों की तलाश होती है। राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ जिसके पास काडर है कार्यकर्ता हैं वो भी खामोश नजर आ रहा है। बहरहाल लगातार कम होते मतदान ने नेताओं की धुकधुकी बढ़ा रखी है। सत्ता पक्ष मतदान प्रतिशत बढ़ाने के लिए परेशान है तो विपक्ष कम प्रतिशत को अपने पक्ष में मानकर मुंगेरीलाल के सपने बुनने में मगन है।
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