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कांग्रेस का बस चले तो असम को फिर से आग का गोला बना दे: योगी आदित्यनाथ

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सिलचर। यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने असम के सिलचर में एक जनसभा संबोधित करने के दौरान विपक्षी दलों खासतौर से कांग्रेस पर जमकर निशाना साधा। सीएम योगी ने कहा कि भारतीय जनता पार्टी, असम को विकास के पथ पर आगे ले जाने हेतु प्रतिबद्ध है किंतु AIUDF और कम्युनिस्टों के साथ कांग्रेस का समझौता इस बात को प्रदर्शित करता है कि कांग्रेस असम को अलगाव और अराजकता की ओर पुनः ढकेलना चाहती है। लेकिन असमवासी कांग्रेस की इस कुचेष्टा को सफल नहीं होने देंगे। भारतीय जनता पार्टी जब विकास की बात करती है तो ‘सबके’ विकास की बात करती है। लोक कल्याण की बात करती है तो उसे इंप्लीमेंट भी करती है। विगत पांच वर्षों में असम की प्रगति इस बात को प्रदर्शित कर रही है। कांग्रेस को यही बात बेचैन किए है, उसे असम का विकास रास नहीं आ रहा है।

सीएम योगी ने कहा कि पांच वर्ष पूर्व असम को क्षेत्र के आधार पर बांटकर आपस में लड़ाया जाता था। कहीं बोडोलैंड की समस्या थी तो कहीं घुसपैठ तो कहीं सत्ता प्रायोजित अलगाववाद था। विगत 5 वर्षों में असम, विकास की नई ऊंचाइयों को छू रहा है। यह सब आदरणीय प्रधानमंत्री जी की दूरदर्शिता के कारण संभव हुआ है।यह विधान सभा चुनाव मात्र सत्ता प्राप्त करने का माध्यम नहीं है। यह चुनाव हमारी पहचान को बनाए रखने का चुनाव है। यह चुनाव, हमारी अस्मिता को बनाए रखने का चुनाव है। आने वाली पीढ़ी के लिए हम विकास का कैसा मॉडल प्रस्तुत करना चाहते हैं उसको प्रदर्शित करने का यह चुनाव है।अगर कांग्रेस का बस चले तो असम की शांति, सौहार्दपूर्ण और आध्यात्मिक धरती को फिर से आग का गोला बना दे।

उन्होंने कहा कि जो भारतीय, शांति, सौहार्द और विकास का पक्षधर होगा, वह कांग्रेस का कभी समर्थन नहीं करेगा।जब असम के अंदर बाढ़ आती है तो भाजपा के कार्यकर्ता सहयोग करते हैं। जब कोरोना काल में भाजपा के कार्यकर्ता ‘सेवा ही संगठन’ के रूप में कोरोना वॉरियर बनकर जनता की सेवा कर रहे थे, तब कांग्रेस के नेता और कार्यकर्ता कहां थे?भाइयों-बहनों मैं आप सभी का आह्वान करता हूँ कि जब विपत्ति के समय कांग्रेस आपकी सहयोगी नहीं बन सकती तो फिर चुनाव के समय भी उनको महत्व देने की कोई आवश्यकता नहीं है। इतनी सत्ता-लोलुपता कि संकट के समय गायब रहने वाले कांग्रेस के नेताओं को चुनाव आते ही असम याद आने लगता है?

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दूसरे चरण में धार्मिक ध्रुवीकरण के समीकरण का चक्रव्यूह भेद पाएंगे मोदी!

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सच्चिदा नन्द द्विवेदी एडिटर-इन-चीफ

लखनऊ। राजस्थान में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पूर्व पीएम डॉ. मनमोहन सिंह के बयान का जिक्र करते हुए कहा कि अगर कांग्रेस केंद्र में सत्ता में आती है, तो वह लोगों की संपत्ति लेकर मुसलमानों को बांट देगी. इसके बाद ही विकास की रफ्तार पर चलने वाला चुनाव दूसरे चरण के पहले हिन्दू मुस्लिम के बीच बंट गया है। दरअसल मोदी का ये बयान यूं ही नहीं आया है, दूसरे चरण में जहां जहां मतदान होना है वहाँ की बहुतायत सीटों पर मुस्लिम मतदाता निर्णायक स्थिति में है… इसमें राहुल गांधी की वायनाड सीट भी है जहां मुस्लिम वोटर करीब 50 फीसदी है।

26 अप्रैल को लोकसभा चुनाव के दूसरे चरण का मतदान होना है। पहले चरण का मतदान 19 अप्रैल को हो चुका है जिसमें कम मतदान प्रतिशत ने सत्तारूढ़ बीजेपी के केन्द्रीय नेतृत्व को चिंता में डाल दिया है। दूसरे चरण में 88 लोकसभा सीटों पर वोटिंग हैं। केरल की सभी 20 लोकसभा सीटों पर इसी चरण में मतदान हो जाएगा। कर्नाटक की 14 और राजस्थान की 13 लोकसभा सीटों पर भी मतदान होगा।

इसके पहले कि मोदी के बयान के गूढ़ार्थ को समझा जाए एक बार दूसरे चरण की सीटों का गणित समझना जरूरी हो जाता है। इसमें सबसे ज्यादा जरूरी है केरल राज्य जहां पर चल रहे लव जिहाद के किस्से और धार्मिक ध्रुवीकरण के समीकरण का चक्रव्यूह आज तक बीजेपी नहीं भेद पाई है। केरल में हिन्दू आबादी करीब 54 फीसदी है तो मुस्लिम आबादी करीब 26 फीसदी तो ईसाई वहां 18 फीसदी हैं। जबकि सिख बौद्ध और जैन महज 1 फीसदी हैं। यही वो धार्मिक समीकरण का तिलिस्म हैं जिसे बीजेपी इस बार तोड़ने का प्रयास कर रही हैं।

इतना ही नहीं केरल में करीब 15 लोकसभा सीट ऐसी हैं मुस्लिम बहुतायत में हैं। वहीं वायनाड में तो मुस्लिम आबादी करीब 50 फीसदी है जहां से राहुल गांधी पिछले बार जीत कर सांसद चुने गए थे और इस बार भी वायनाड़ के रास्ते दिल्ली पहुंचना चाहते हैं। राज्यवार नजर डालें तो पिक्चर काफी हद तक साफ हो जाती है। आखिर शब्दों पर संयम रखने वाले मोदी ने चुनावी फिजा बदलने वाला ये बयान क्यों दिया? इसके लिए इन सीटों पर नजर डालिए।

इन सीटों पर दूसरे चरण में मतदान

असम: दर्रांग-उदालगुरी, डिफू, करीमगंज, सिलचर और नौगांव।
बिहार: किशनगंज, कटिहार, पूर्णिया, भागलपुर और बांका।
छत्तीसगढ़: राजनांदगांव, महासमुंद और कांकेर।
जम्मू-कश्मीर: जम्मू लोकसभा ।
कर्नाटक: उडुपी-चिकमगलूर, हासन, दक्षिण कन्नड़, चित्रदुर्ग, तुमकुर, मांड्या, मैसूर, चामराजनगर, बेंगलुरु ग्रामीण, बेंगलुरु उत्तर, बेंगलुरु केंद्रीय, बेंगलुरु दक्षिण,चिकबल्लापुर और कोलार।
केरल: कासरगोड, कन्नूर, वडकरा, वायनाड, कोझिकोड, मलप्पुरम, पोन्नानी, पलक्कड़, अलाथुर, त्रिशूर, चलाकुडी, एर्णाकुलम, इडुक्की, कोट्टायम, अलाप्पुझा, मवेलिक्कारा, पथानमथिट्टा, कोल्लम, अट्टिंगल और तिरुअनंतपुरम।
मध्य प्रदेश: टीकमगढ़, दमोह, खजुराहो, सतना, रीवा और होशंगाबाद।
महाराष्ट्र: बुलढाणा, अकोला, अमरावती, वर्धा, यवतमाल- वाशिम, हिंगोली, नांदेड़ और परभणी।
राजस्थान: टोंक-सवाई माधोपुर, अजमेर, पाली, जोधपुर, बाड़मेर, जालोर, उदयपुर, बांसवाड़ा, चित्तौड़गढ़, राजसमंद, भीलवाड़ा, कोटा और झालावाड़-बारा।
त्रिपुरा: त्रिपुरा पूर्व।
उत्तर प्रदेश: अमरोहा, मेरठ, बागपत, गाजियाबाद, गौतमबुद्ध नगर, बुलंदशहर, अलीगढ़ और मथुरा।
पश्चिम बंगाल: दार्जिलिंग, रायगंज और बालूरघाट।

दरअसल देश की 543 लोकसभा सीटों में से 65 सीटें ऐसी हैं जहां मुस्लिम वोटर जीत और हार में बड़ी भूमिका निभाते हैं। ये वो सीटें हैं जहां मुस्लिम वोटरों की संख्या 30 फीसदी से लेकर 80 फीसदी तक है। वहीं, करीब 35-40 लोकसभा सीटें ऐसी हैं जहां इनकी मुस्लिम समुदाय के वोटरों की अच्छी खासी संख्या है। यानि करीब 100 लोकसभा सीट ऐसी हैं जहां अगर वोटों का ध्रुवीकरण हो गया तो भाजपा के लिए उसके लक्ष्य 400 के आंकड़े को हासिल करना आसान हो जाएगा। ऐसे में एक बार फिर ये साफ हो गया विपक्षी कितनी भी कोशिश कर लें वो चुनाव बीजेपी की पिच पर ही लड़ने को मजबूर हैं।

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