मुख्य समाचार
‘तलाक’ यानी 3 शब्दों का करारा प्रहार!
ममता अग्रवाल
नई दिल्ली | तलाक तलाक तलाक! ये तीन शब्द किसी भी महिला के भविष्य को हिला देने की क्षमता रखते हैं। हिंदू विवाह कानून के विपरीत मुस्लिम निकाह की कानूनी मंजूरी न होने के कारण ‘शादी की मजबूती’ पर हमेशा एक बड़ा प्रश्नचिह्न् लगा रहता है।
कुरान की व्यापक रूप से स्वीकार्य व्याख्या के अनुसार, विवाह में पति को ही जब चाहे और जैसे चाहे विवाह खत्म करने का अधिकार है और केवल ये तीन शब्द बोलकर ही शादी को खत्म किया जा सकता है।
इस प्रथा के खिलाफ अब लेकिन विरोध के स्वर सुनाई देने लगे हैं। जहां, ऑल इंडिया पर्सनल लॉ बोर्ड ने इस मुद्दे को लेकर सर्वोच्च न्यायालय में चल रहे मामले में हलफनामा देकर कह दिया है कि सामाजिक सुधार के नाम पर पर्सनल लॉ को बदला नहीं जा सकता, वहीं तीन तलाक को लेकर देश में छिड़ी बहस के बीच ऑल इंडिया शिया पर्सनल लॉ बोर्ड ने हाल ही में मॉडर्न निकाहनामा पेश किया। इसमें महिलाओं को समान अधिकार के अलावा पत्नी को भी तलाक देने का हक देने की बात की गई है।
कई महिला कार्यकर्ताओं ने भी तीन तलाक को असंवैधानिक करार देने की मांग की है। हाल ही में राष्ट्रीय महिला आयोग (एनसीडब्ल्यू) ने भी सर्वोच्च न्यायालय में दाखिल अपने हलफनामे में तीन तलाक या तलाक-ए-बिदत और बहुविवाह पर पाबंदी लगाने की मांग की है।
पिछले दिनों कुछ मुस्लिम महिला संगठनों ने पर्सनल लॉ बोर्ड के बारे में कहा था कि इसका रुख इस्लाम और महिला विरोधी है। कई महिला अधिकार कार्यकर्ताओं ने तीन तलाक और बहुविवाह जैसी रवायतों पर रोक लगाने की मांग की थी। सर्वोच्च न्यायालय ने इस मामले को खुद ही संज्ञान में लेते हुए तीन तलाक और बहुविवाह को गैरकानूनी बताया है।
यहां यह जानना जरूरी है कि मुस्लिम विवाह में दो तरह के तलाक होते हैं, एक तलाक और तीन तलाक। एक तलाक के तहत पति एक बार तलाक बोलने के बाद तीन महीने की अवधि के भीतर उसे वापस ले सकता है। लेकिन, इसके विपरीत तीन तलाक के तहत पति एक बार ‘तलाक तलाक तलाक’ कह दे तो उसे वापस नहीं लिया जा सकता।
भारतीय मुस्लिम महिला आंदोलन (बीएमएमए) की संस्थापक जाकिया सोमान खुद घरेलू हिंसा, मानसिक यातना और तलाक तक का सामना कर चुकी हैं।
तीन तलाक के मुद्दे पर जाकिया का कहना है, “तीन तलाक के मुद्दे पर सरकार द्वारा दायर किया गया हलफनामा संवैधानिक रूप से सही है। हमारे समाज को कुरान की सही व्याख्या समझने की जरूरत है और पर्सनल लॉ बोर्ड द्वारा समर्थित किए जा रहे तीन तलाक और निकाह हलाला जैसी गलत व्याख्याओं को अस्वीकार करने की जरूरत है।”
जाकिया का कहना है, “कुरान पुरुषों और महिलाओं को तलाक लेने का समान अधिकार देता है। हालांकि यह जब भी हो, जायज और निष्पक्ष होना चाहिए। कुरान में कहा गया है कि मतभेद की स्थिति में कम से कम 90 दिनों की अवधि तक मध्यस्थता और सुलह की कोशिश की जानी चाहिए। अगर 90 दिनों के बाद भी मध्यस्थता न हो, तभी तलाक लिया जा सकता है।”
वह कहती हैं, “मेरा मानना है कि आज 70 प्रतिशत से अधिक मुसलमान तीन तलाक की प्रथा पर प्रतिबंध चाहते हैं। हमें हर रोज कई फोन कॉल्स, ईमेल्स मिलते हैं, जिनमें इन पर प्रतिबंध लगाने की मांग की जाती है। इनमें बड़ी संख्या में महिलाएं शामिल हैं। आम मुसलमान पर्सनल लॉ बोर्ड के आधिपत्य से छुटकारा चाहते हैं।”
बीएमएमए द्वारा तीन तलाक का दंश झेल चुकीं 117 महिलाओं को लेकर एक केस स्टडी की। इसकी रिपोर्ट के अनुसार, 92.1 प्रतिशत महिलाएं चाहती हैं कि तीन तलाक की पक्षपाती प्रथा बंद हो जाए।
अध्ययन में पता चला कि जिन महिलाओं को तलाक दिया गया उनमें से 59 प्रतिशत को उनके पति ने एकतरफा तलाक दिया था। स्टडी में शामिल महिलाओं में से एक प्रतिशत को उनकी अनुपस्थिति में ही तलाक दे दिया गया, वहीं एक प्रतिशत महिलाओं को महज एसएमएस के एक संदेश के जरिए, एक प्रतिशत को ईमेल के जरिए और आठ प्रतिशत महिलाओं को काजी ने पत्र भेजकर तलाक दे दिया।
50 प्रतिशत से अधिक महिलाओं को मेहर की रकम नहीं दी गई। कुछ महिलाओं को जिन्हें मेहर दिया गया, उन्हें यह तलाक के बाद दिया गया।
जाकिया कहती हैं, “तीन तलाक बांग्लादेश, पाकस्तिान, मिस्र, तुर्की, ट्यूनीशिया, मोरक्को, इंडोनेशिया जैसे अधिकांश मुस्लिम देशों में वैध नहीं है। इतना ही नहीं, सभी मुस्लिम देशों में विवाह, तलाक, संपत्ति आदि को लेकर संहिताबद्ध निजी कानून हैं। हमें हिंदू विवाह अधिनियम 1955 या 2010 में संशोधित ईसाई विवाह और तलाक अधिनियम की तरह ही भारत में भी संहिताबद्ध कानून की जरूरत है।”
इस मुद्दे पर राजनीतिक पार्टियों से लेकर मुस्लिम धर्म गुरुओं और न्याय तंत्र सभी के समर्थन की जरूरत है। इस बारे में जाकिया को सर्वोच्च न्यायालय से ही उम्मीद है।
वह कहती हैं, “सर्वोच्च न्यायालय ही हमें न्याय देगा। लेकिन साथ ही लोगों को कुरान की सीख और व्याख्याओं के बारे में जानकारी देना भी जरूरी है जिनमें लैंगिक न्याय को मूलभूत सिद्धांत माना गया है। हम मानते हैं कि जो भी न्याय और समानता का समर्थन करते हैं उन्हें तीन तलाक पर प्रतिबंध का समर्थन करना चाहिए।”
जाकिया का कहना है, “तीन तलाक से लेकर खतना जैसी प्रथाएं गैर इस्लामी हैं और ये महिलाओं पर हिंसा को बढ़ावा देती हैं। इन सभी पर तत्काल अंकुश लगाया जाना चाहिए।”
भारतीय मुस्लिम महिला आंदोलन की सह संस्थापक डॉक्टर नूरजहां साफिया नियाज का इस मामले में कहना है, “तीन तलाक को कानूनी रूप से समाप्त कर दिया जाना चाहिए, क्योंकि यह महिलाओं के जीवन को बर्बाद कर रहा है और इसके कारण पूरा परिवार प्रभावित हो जाता है।”
नूरजहां कहती हैं कि कुरान में खतना और तीन तलाक जैसी प्रथाओं का कोई जिक्र नहीं है। ये पूर्व इस्लामी और स्थानीय सांस्कृतिक प्रथाएं हैं जो इस्लाम में घुस आई हैं। तीन तलाक पर 22 देशों में कानूनी रूप से प्रतिबंध लग चुका है। लेकिन भारत में अभी भी तीन तलाक की प्रथा जारी है।
इन प्रथाओं के खिलाफ विरोध के स्वर भले ही उठने लगे हों, लेकिन इन पर अंकुश लगाना आसान नहीं है। फिर इसे पूरी तरह खत्म करने के लिए क्या किया जा सकता है? इस बारे में नूरजहां ने कहा, “चाहे खतने की प्रथा हो या तीन तलाक की ऐसी प्रथाओं को खत्म करने के लिए कानूनी दखल जरूरी है। इन प्रथाओं के खिलाफ कड़े कानूनों से ही बदलाव लाया जा सकता है।”
नूरजहां ने बताया कि तीन तलाक के खिलाफ हमारे अभियान ने समुदाय के कई पुरुषों और महिलाओं को इस प्रथा के खिलाफ खुलकर बोलने को प्रेरित किया है। पीड़ित खुद भी बिना झिझक इसके खिलाफ आगे आ रहे हैं।
आम मुसलमानों से जुड़े इस महत्वपूर्ण मुद्दे पर आम लोगों के विचार सबसे अहम हैं। इस बारे में जानने के लिए भारतीय मुस्लिम महिला आंदोलन ने एक सर्वेक्षण किया था।
नूरजहां के मुताबिक, यह अपनी तरह का पहला अध्ययन था, जिसमें पर्सनल लॉ के प्रत्येक पहलू पर मुस्लिम महिलाओं के विचार जानने का प्रयास किया गया था।
नूरजहां ने बताया, “हमने मुस्लिम कानून पर विचार जानने के लिए देश के 10 राज्यों में 4,700 महिलाओं को लेकर एक सर्वेक्षण किया। सर्वेक्षण में विवाह की उम्र, तलाक, रखरखाव, बच्चों की अभिरक्षा, बहुविवाह, संपत्ति के स्वामित्व जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों से संबंधित सवाल पूछे गए। सर्वेक्षण में शामिल 92 प्रतिशत महिलाओं ने तीन तलाक की प्रथा के उन्मूलन की इच्छा जताई। वहीं, लगभग 88 प्रतिशत मुस्लिम संहिताबद्ध कानून चाहते हैं।”
फिल्मकार और महिलाओं के खतने की प्रथा के खिलाफ अभियान चला रहे संगठन साहियो की सदस्य इंसिया दरिवाला का इस बारे में कहना है, “कोई भी प्रथा जो किसी महिला से गरिमा के साथ जीने का अधिकार छीनती हो, उस पर निश्चित रूप से प्रतिबंध लगा दिया जाना चाहिए।
नेशनल
जेपी नड्डा का ममता पर हमला, कहा- संदेशखाली में जनता की रक्षा के लिए एनएसजी कमांडो को भी उतरना पड़ा
नई दिल्ली। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने मुख्यमंत्री ममता बनर्जी पर तगड़ा हमला बोला है। उन्होंने कहा कि ममता दीदी ने बंगाल को क्या बना दिया है। जेपी नड्डा ने कहा कि संदेशखाली, ममता बनर्जी की निर्ममता और बर्बरता का संदेश चीख-चीख कर दे रहा है। ममता दीदी ने बंगाल को क्या बना दिया है? जहां रवींद्र संगीत गूंजना चाहिए था, वहां बम-पिस्तौल मिल रहे हैं।
संदेशखाली में जनता की रक्षा के लिए एनएसजी कमांडो को भी उतरना पड़ा। इसी से समझ सकते हैं कि पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी की सरकार ने किस तरह अराजकता फैला रखी है। मैं बंगाल के सभी भाजपा कार्यकर्ताओं और जनता से अपील करता हूं कि आप सभी संदेशखाली पर ममता बनर्जी से जवाब मांगे।
प्रधानमंत्री मोदी ने संदेशखाली की पीड़िता को पार्टी का टिकट देकर भाजपा महिला सशक्तिकरण के संदेश को मजबूती दी है। इसके साथ ही पीएम मोदी ने ममता बनर्जी को जवाब दिया है कि ये महिलाएं अकेली नहीं है उनके साथ पूरा समाज, पूरा देश खड़ा है। संदेशखाली में महिलाओं की इज्जत-आबरू और उनकी जमीनें बचाने के लिए वहां गई जांच एजेंसियों के अधिकारियों पर भी घातक हमला किया गया।
जेपी नड्डा ने आगे कहा, “मैं आज समाचार पढ़ रहा था कि संदेशखाली में तलाशी के दौरान सीबीआई ने तीन विदेशी रिवॉल्वर, पुलिस द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली एक रिवॉल्वर, बंदूकें, कई गोलियां और कारतूस बरामद किए हैं।” इसी से समझा जा सकता है कि ममता सरकार ने राज्य में किस तरह अराजकता फैला रखी है। उन्होंने पूछा कि क्या ममता बनर्जी जनता को डराकर, उनकी जान लेकर चुनाव जीतेंगी। क्या नेताजी सुभाष चंद्र बोस, रवीन्द्रनाथ टैगोर, स्वामी विवेकानंद और महर्षि अरबिंदो जैसे मनीषियों ने ऐसे बंगाल की कल्पना की थी।
संदेशखाली में जनता की रक्षा के लिए एनएसजी कमांडो को भी उतरना पड़ा। ममता दीदी, यदि आपको ऐसा लगता है कि आप ऐसा करके चुनाव जीत जाएंगी तो ये आपकी भूल है। जनता आपको इसका करारा जवाब देगी। उन्होंने कहा कि हमने देखा कि ममता सरकार में तृणमूल कांग्रेस के शाहजहां शेख जैसे असामाजिक तत्व संदेशखाली में महिलाओं के अस्तित्व पर खतरा बने हुए हैं। महिलाओं के साथ जिस तरह का सलूक हो रहा है वह सच में बहुत ही संवेदनशील और कष्टदायी है।
-
ऑटोमोबाइल3 days ago
इन आसान उपायों से आप आसानी से बढ़ा सकते हैं अपनी बाइक का माइलेज
-
नेशनल3 days ago
पश्चिम बंगाल सरकार ने राज्य में युवाओं के विकास के सभी रास्ते बंद कर दिए हैं: पीएम मोदी
-
नेशनल3 days ago
असदुद्दीन ओवैसी ने मुख्तार अंसारी को बताया शहीद, बोले- उन्हें जहर देकर मारा गया
-
नेशनल3 days ago
लोकसभा चुनाव : दूसरे चरण की 88 सीटों पर वोटिंग जारी, पीएम मोदी ने की रिकार्ड मतदान की अपील
-
बिजनेस3 days ago
Whatsapp ने दी भारत छोड़ने की धमकी, कहा- अगर सरकार ने मजबूर किया तो
-
नेशनल3 days ago
जम्मू-कश्मीर में सुरक्षाबलों को बड़ी कामयाबी, मुठभेड़ में दो आतंकियों को किया ढेर
-
नेशनल3 days ago
सुप्रीम कोर्ट का विपक्ष को झटका- नहीं लौटेगा बैलेट पेपर, न EVM और VVPAT का 100 फीसदी मिलान
-
प्रादेशिक3 days ago
बिहार: दरभंगा में शादी में आतिशबाजी से घर में लगी आग, एक ही परिवार के 6 लोगों की मौत