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आध्यात्म

उस्ताद अमजद अली खान के सरोद वादन ने सभी का मन मोहा

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नई दिल्ली, 14 जनवरी (आईएएनएस)| स्वामी हरिदास-तानसेन संगीत-नृत्य महोत्सव 2018 के आखिरी दिन रविवार को सरोद वादक उस्ताद अमजद अली खान ने सभी का मन मोह लिया।

इसके अलावा जाने माने शास्त्रीय संगीत गायक पंडित उल्हास एन कशालकर की प्रस्तुति अद्भुत रही। भारतीय संगीत सदन और श्री राम सेंटर फॉर परफॉर्मिंग आर्ट्स की ओर से आयोजित दिल्ली के श्री शंकरलाल हॉल मॉडर्न स्कूल बाराखम्बा रोड नई दिल्ली में स्वामी हरिदास-तानसेन – संगीत-नृत्य महोत्सव 2018 का रविवार को समापन हो गया।

कार्यक्रम के पहले दिन की शुरुआत प्रसिद्ध नृत्यांगना पदम भूषण उमा शर्मा की कत्थक प्रस्तुति से हुई जिसमें उन्होंने अपने गुरु शम्भू महाराज (बिरजू महाराज के चाचाथे) लखनऊ घराना की प्रस्तुति दी और सभी को गुरु शिष्य परंपरा के बारे में बता दिया। उसके बाद शास्त्रीय संगीत गायिका कौशिकी चक्रबर्ती के विभिन्न रगों पर आधारित बंदिशों ने दर्शकों को ताली बजाने पर मजबूर किया। पहला दिन पंडित हरिप्रसाद चौरसिया के बांसुरी वादन का भी साक्षी बना।

कार्यक्रम के दूसरे दिन पंडित चुनीलाल मिश्रा का गायन व विश्वमोहन भट्ट का मोहन वीणा वादन मुख्य रहे। आजा सो बना.. राग पुरिया कल्याण पर हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत के प्रसिद्ध गायक पंडित छन्नू लाल मिश्र ने पारंपरिक शास्त्रीय संगीत को जीवित रखने के उद्देश्य से अपनी प्रस्तुति से दर्शकों का दिल जीता। इसके बाद मध्य लय में बहुत दिन बीते के साथ बनारस की ठुमरी, कजरी और झूला जैसी कई मनमोहक प्रस्तुति पर अपने गायन से सभागार में मौजूद सभी लोगों को मंत्रमुग्ध कर दिया।

सरोद वादक अयान अली बंगश ने राग देश पर अपनी प्रस्तुति दी। सरोद के तारों पर अयान की सधी हुई उंगलियों के बीच से निकलने वाली धुनों ने दिल्लीवालों के दिलों को छू लिया।

दूसरे दिन की अंतिम प्रस्तुति पंडित विश्व मोहन भट्ट और मांगणियार ग्रुप की रही। विश्व मोहन भट्ट ने जहां मोहनवीणा वादन किया वहीं मांगणियार ग्रुप ने राजस्थानी फोक पर अपनी ‘डेजर्ट स्लाइड’ नामक अपनी प्रस्तुति से महोत्सव की शाम को रंगीन बना दिया। कई बार मोहनवीणा और खड़ताल की जुगलबंदी ने दर्शकों को अपना दिवाना बना दिया।

कार्यक्रम के तीसरे दिन भारत की जानी मानी गायिका शुभा मुद्गल ने अपनी प्रस्तुति से सभी का मन मोह लिया। इसके अलावा उस्ताद इमदादखानी घराना के व जाने माने सितार वादक उस्ताद शुजात खान की प्रस्तुति भी अपने आप में अनूठी रही।

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आध्यात्म

आज पूरा देश मना रहा रामनवमी, जानिए इसके पीछे की पूरी पौराणिक कहानी

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नई दिल्ली। आज पूरे देश में रामनवमी का त्यौहार बड़ी धूम धाम से मनाया जा रहा है। पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक इस दिन भगवान राम का जन्म हुआ था। जो विष्णु का सातवां अवतार थे। रामनवमी का त्यौहार चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी को मनाया जाता है। आइये जानते हैं इसके पीछे की पौराणिक कहानी।

पौराणिक कथाओं के मुताबिक भगवान राम ने भी मां दुर्गा की पूजा की थी, जिससे कि उन्हें युद्ध के समय विजय मिली थी। साथ ही माना जाता है इस दिन गोस्वामी तुलसीदास जी ने रामचरित मानस की रचना का आरंभ किया। राम नवमी का व्रत जो भी करता है वह व्यक्ति पापों से मुक्त होता है और साथ ही उसे शुभ फल प्रदान होता है

रामनवमी का इतिहास-

महाकाव्य रामायण के अनुसार अयोध्या के राजा दशरथ की तीन पत्नियां थी। कौशल्या, सुमित्रा और कैकयी। शादी को काफी समय बीत जाने के बाद भी राजा दशरथ के घर किसी बालक की किलकारी नहीं गूंजी थी। इसके उपचार के लिए ऋषि वशिष्ट ने राजा दशरथ से पुत्र प्राप्ति के लिए कमेश्टी यज्ञ कराने के लिए कहा। जिसे सुनकर दशरथ खुश हो गए और उन्होंने महर्षि रुशया शरुंगा से यज्ञ करने की विन्नती की। महर्षि ने दशरथ की विन्नती स्वीकार कर ली। यज्ञ के दौरान महर्षि ने तीनों रानियों को प्रसाद के रूप में खाने के लिए खीर दी। इसके कुछ दिनों बाद ही तीनों रानियां गर्भवती हो गईं।

नौ माह बाद चैत्र मास में राजा दशरथ की बड़ी रानी कौशल्या ने भगवान राम को जन्म दिया, कैकयी ने भरत को और सुमित्रा ने दो जुड़वा बच्चे लक्ष्मण और शत्रुघन को जन्म दिया। भगवान विष्णु ने श्री राम के रूप में धरती पर जन्म इसलिए लिया ताकि वे दुष्ट प्राणियों का नरसंहार कर सके।

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