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आध्यात्म

तीसरा स्‍वरूप भगवान् का है

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kripalu ji maharajइन तीनों में ब्रह्म तो अव्‍यक्‍त शक्तिक है। अर्थात् समस्‍त शक्तियाँ तो है, किन्‍तु उनका विकास नहीं होता। फिर भी ब्रह्म के अस्तित्‍व के हेतु तो शक्ति का विकास है ही। दूसरा स्‍वरूप परमात्‍मा का है। यह सगुण साकार स्‍वरूप है। इसमें रूप, गुण, नामादि भी हैं। किंतु शक्तियों का विकास अल्‍प मात्रा में ही होता है। तीसरा स्‍वरूप भगवान् का है। यह सगुण साकार भी है। नाम रूप गुणादि भी है। साथ ही परिकर एवं लीलायें भी हैं। इस स्‍वरूप में समस्‍त शक्तियों का पूर्ण विकास होता है। अतः श्रीकृष्‍ण को ही वेदों ने पूर्ण परब्रह्म कहा है। यथा-

योऽसौ परं ब्रह्म गोपालः।

चैतन्‍य-  स्‍वयं भगवान् कृष्‍ण कृष्‍ण परतत्‍व।

पूर्ण ज्ञान पूर्णानंद परम महत्‍व।

इसी पराशक्ति से श्रीकृष्‍ण, ब्रह्म की प्रतिष्‍ठा हैं। यथा वेद-

यदा पश्‍यः पश्‍यते रुक्‍मवर्णं कर्तारमीशं पुरुषं ब्रह्मयोनिम् ।

तदा विद्वान् पुएयपापे विधूय निरञ् जनः परमं साम्‍यमुपैति।।

(मुण्‍डको. 3-1-3)

गीता-  ब्रह्मणो हि प्रतिष्‍ठाहममृतस्‍याव्‍ययस्‍य च।

(गीता 14-27)

इसी शक्ति से ब्रह्म श्रीकृष्‍ण एक रूप होते हुए भी बहु रूप हैं। यथा वेद-

एकोपि सन् यो बहुधा विभाति।

(गोपालतापनीयोप. पू-31)

आध्यात्म

आज पूरा देश मना रहा रामनवमी, जानिए इसके पीछे की पूरी पौराणिक कहानी

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नई दिल्ली। आज पूरे देश में रामनवमी का त्यौहार बड़ी धूम धाम से मनाया जा रहा है। पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक इस दिन भगवान राम का जन्म हुआ था। जो विष्णु का सातवां अवतार थे। रामनवमी का त्यौहार चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी को मनाया जाता है। आइये जानते हैं इसके पीछे की पौराणिक कहानी।

पौराणिक कथाओं के मुताबिक भगवान राम ने भी मां दुर्गा की पूजा की थी, जिससे कि उन्हें युद्ध के समय विजय मिली थी। साथ ही माना जाता है इस दिन गोस्वामी तुलसीदास जी ने रामचरित मानस की रचना का आरंभ किया। राम नवमी का व्रत जो भी करता है वह व्यक्ति पापों से मुक्त होता है और साथ ही उसे शुभ फल प्रदान होता है

रामनवमी का इतिहास-

महाकाव्य रामायण के अनुसार अयोध्या के राजा दशरथ की तीन पत्नियां थी। कौशल्या, सुमित्रा और कैकयी। शादी को काफी समय बीत जाने के बाद भी राजा दशरथ के घर किसी बालक की किलकारी नहीं गूंजी थी। इसके उपचार के लिए ऋषि वशिष्ट ने राजा दशरथ से पुत्र प्राप्ति के लिए कमेश्टी यज्ञ कराने के लिए कहा। जिसे सुनकर दशरथ खुश हो गए और उन्होंने महर्षि रुशया शरुंगा से यज्ञ करने की विन्नती की। महर्षि ने दशरथ की विन्नती स्वीकार कर ली। यज्ञ के दौरान महर्षि ने तीनों रानियों को प्रसाद के रूप में खाने के लिए खीर दी। इसके कुछ दिनों बाद ही तीनों रानियां गर्भवती हो गईं।

नौ माह बाद चैत्र मास में राजा दशरथ की बड़ी रानी कौशल्या ने भगवान राम को जन्म दिया, कैकयी ने भरत को और सुमित्रा ने दो जुड़वा बच्चे लक्ष्मण और शत्रुघन को जन्म दिया। भगवान विष्णु ने श्री राम के रूप में धरती पर जन्म इसलिए लिया ताकि वे दुष्ट प्राणियों का नरसंहार कर सके।

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