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वक्त की नज़ाकत है ‘बुआ’ और ‘बबुआ’ की दोस्ती!

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देश में नरेन्द्र मोदी एवं यूपी में योगी का अश्मेध रथ रोकने के लिए गैर भाजपावाद का शंखनांद हो चुका है। इशारे साफ हैं कि भाजपा से लडऩे के लिए ‘बुआ’ यानी मायावती और ‘बबुआ’ यानी अखिलेश को एक नाव की सवारी करने से गुरेज नहीं है।

सूबे में एक-दूसरे का मुखर विरोध करने वाली सपा एवं बसपा अब भाजपा के खिलाफ गठबंधन पर तैयार दिख रहे हैं। अंबेडकर जयंती पर बसपा मुखिया मायावती ने भाजपा विरोधी पार्टियों से हाथ मिलाने की सहमति दे दी है। वहीं शनिवार को सपा मुखिया अखिलेश यादव ने भी भाजपा के विरोध में किसी के भी साथ गठबंधन करने की बात कही है।

2014 के लोकसभा एवं 2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा की प्रचण्ड जीत देख विरोधी आश्चर्यचकित है। इन दोनों ही चुनाव में गैर भाजपा दलों का खासा नुकसान हुआ है। ऐसे वक्त की नब्ज को भांप भाजपा के खिलाफ सभी दल एकजुट होना चाहते हैं। इस गठबंधन के सहारे भाजपा को 2019 के चुनाव में रोकने की कवायद की जा रही है। इस गठबंधन में तृणमूल कांग्रेस, जनता दल (यू), राजद, वाम दल, अन्ना द्रमुक सहित कई दलों की भागीदारी सुनिश्चित करने की कवायद चल रही है।

इस गठबंधन में कांग्रेस की भूमिका पर सवाल उठ रहे हैं, क्योंकि वह खामोश है। जबकि कांग्रेस का सभी राज्यों में एक मजबूत संगठन है। इसलिए उसे भाजपा विरोधी इस गठबंधन की अगुवाई करनी चाहिए। राजनीतिज्ञों का मानना है कि यदि क्षेत्रीय अलग-अलग चुनाव लड़े तो भाजपा को रोकना मुश्किल होगा। इसलिए 1977 एवं 1989 की तरह सभी को भाजपा के खिलाफ एकजुट होना पडेगा। तभी भाजपा का कारवा रोका जा सकता है।

सवाल यह है कि हर चुनाव में यूपी मे तीसरा मोर्चा बनाने की कवायद होती है लेकिन वह बनने से पहले ही बिखर जाता है। कुछ वर्ष पूर्व बिहार में भाजपा के खिलाफ महागठबंधन बना था। इसमें सपा संरक्षक मुलायम सिंह यादव को नेता भी चुना गया। लेकिन ऐन चुनाव के वक्त मुलायम सिंह यादव ने इस गठबंधन से अपना हाथ खींच लिया। नतीजा यह हुआ कि बिहार में सपा चुनाव ही नहीं लड़ी।

भाजपा विरोधी गठबंधन पर सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने कहा कि आने वाले समय में देश में जो भी गठबंधन बनेगा, समाजवादी पार्टी उसमें अहम भूमिका निभाएगी। उन्होंने यह भी कहा कि “हमारी पार्टी किसी के भी साथ गठबंधन करने के लिए तैयार है।”

बसपा मुखिया मायावती ने भी अम्बेडकर जयंती पर कहा था कि भाजपा विरोधी पार्टियों से हाथ मिलाने में परहेज नहीं है। उधर जद(यू) अध्यक्ष नीतीश कुमार लगातार भाजपा विरोधी गठबंधन बनाने की वकालत कर रहे हैं।

बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी भी भाजपा विरोधी गठबंधन बनाने को लेकर पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव से मुलाकात कर चुकी हैं। इसी तरह वाम दल एवं राजद सहित भाजपा विरोधी सभी दल एकजुट होने पर सहमति जता चुके हैं।

नेशनल

लोकसभा के शोले और रहीम चाचा की खामोशी

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सच्चिदा नन्द द्विवेदी एडिटर-इन-चीफ

हिन्दी सिनेमा की कालजई फिल्म शोले के रहीम चाचा का किरदार आपको जरूर याद होगा। उनका एक डायलॉग था जिसमें वो कहते है “इतना सन्नाटा क्यूँ है भाई” उस वक्त पूरे रामगढ़ में किसी के पास इसका जवाब नहीं था, कमोवेश ठीक वैसे ही हालात इस वक्त लोकसभा चुनाव में नजर आ रहे हैं। लोकसभा के चुनाव के दो चरण पूरे हो चुके हैं पर पूरे देश में कहीं भी ऐसा नजर नहीं आता कि हम अगले पाँच साल के लिए अपने नुमाइंदे चुनने जा रहे हैं। एक अजीब खामोशी नुमायाँ है। गांव, कस्बों और शहरों तक में होर्डिंग और पोस्टर नजर नहीं आ रहे हैं और न ही कानफोडू लाऊडस्पीकर पर वोट मांगने वालों का शोर सुनाई दे रहा है, चाय की टपरी और पान के खोखों पर जमा होने वाली भीड़ अपने होंठों को सिले हुए है।

एक वक्त था जब हम लोग चाय की टपरी, पान की दुकान और रास्तों के ढाबों से देश का मूड भांप लेते थे। मतदाताओं के मन में क्या चल रहा है इसका अंदाज लगाना आसान था। लेकिन आज स्थिति उलट है इन जगहों पर खड़ा आम आदमी आपसे ही उल्टा पूछ लेता है ‘और क्या चल रहा है’ इंसान-इंसान के बीच अविश्वास की खाई इतनी गहरी हो गई है कि वो पब्लिक प्लेस पर अब राजनीतिक बात करने से गुरेज करने लगा है। वोटर अपने मन की बात जुबान पर नहीं लाना चाहता हैं क्यूंकी अब वो रेडियो पर ‘मोदी जी’ के मन की बात सुन रहा है और अपने मन की बात अपने मन में रखे हुए है। उसे डर है और ये डर मिश्रित चुप्पी स्वस्थ लोकतंत्र के लिए अच्छा लक्षण नहीं है।

लोकसभा चुनाव के पहले चरण की तरह दूसरे चरण में भी वोटिंग 2019 के मुकाबले कम हुई है। पहले चरण में 21 राज्यों की 102 लोकसभा सीटों पर 64 प्रतिशत वोटिंग हुई थी। जबकि पिछले लोकसभा चुनाव में उन सीटों पर भी 70 प्रतिशत से ज्यादा मतदान हुआ था। ऐसे ही इस बार दूसरे चरण में 13 राज्यों की 88 लोकसभा सीटों पर करीब 63 फीसदी वोट पड़े। यह 2019 के लोकसभा चुनाव में 70.09% मतदान के मुकाबले काफी कम था। यूपी, बिहार, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश और राजस्थान जैसे बड़े राज्यों में वोटिंग उम्मीद से काफी कम रही। यूपी में 54.85%, बिहार में 55.08% , महाराष्ट्र में 57.83% , एमपी में 57.88 % वोटिंग हुई। सबसे अधिक वोट त्रिपुरा, मणिपुर, छत्तीसगढ़ और पश्चिम बंगाल में पड़े। लोकसभा चुनाव के तीसरे चरण में सात मई को वोटिंग है। इसमें 12 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों की 95 सीट पर मतदान होगा, जिसके लिए 1351 उम्मीदवार चुनाव मैदान में हैं।

जब 7 मई, 13 मई, 20 मई, 25 मई और 1 जून को तीसरे, चौथे, पांचवे, छठे और सातवें चरण का मतदान होगा तो इस दौरान देश के अधिकतर हिस्सों में गर्मी के साथ लू का असर दिखाई देगा। भारतीय मौसम विज्ञान विभाग के आंकड़ों से पता चलता है कि लोकसभा चुनाव के लिए प्रचार के दौरान लगभग 72% निर्वाचन क्षेत्रों में अधिकतम तापमान 35°C या इससे अधिक हो सकता है। विशेष रूप से, 59 सीटों पर 40-42 डिग्री सेल्सियस के बीच तापमान का सामना करना पड़ सकता है। जबकि 194 सीटों पर 37.5-से 40 डिग्री सेल्सियस के बीच तापमान देखा जा सकता है। लेकिन इस गर्मी के बीच क्षेत्रीय दलों के नेता काफी तेजी से अपने इलाके के मतदाताओं पर पकड़ बना रहे हैं और उन सवालों को उठा रहे हैं जिनसे देश का किसान, मजदूर और नौजवान चिंतित है। इसलिए उनके प्रति आम जनता की अपेक्षाएं बढ़ी हैं इसलिए विपक्षी गठबंधन के नेताओं की रैलियों में भारी भीड़ आ रही है। जबकि भाजपा की रैलियों का रंग उसके मुकाबले फीका नजर या रहा है।

हालांकि रैली में आने वाली भीड़ जीत का पैमाना नहीं होती इसलिए कुछ कहा नहीं जा सकता। हर दल का अपना एक समर्पित काडर होता है। जबकि आज काडर के नाम पर ज्यादातर दलों के पास सत्ता के छत्ते से चिपकी रहने वाली मधुमक्खी ही ज्यादा नजर या रहीं है ये वो लोग हैं जिन्हें सत्ता की दलाली करने के अवसरों की तलाश होती है। राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ जिसके पास काडर है कार्यकर्ता हैं वो भी खामोश नजर आ रहा है। बहरहाल लगातार कम होते मतदान ने नेताओं की धुकधुकी बढ़ा रखी है। सत्ता पक्ष मतदान प्रतिशत बढ़ाने के लिए परेशान है तो विपक्ष कम प्रतिशत को अपने पक्ष में मानकर मुंगेरीलाल के सपने बुनने में मगन है।

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