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फांसी दुष्कर्म रोकने का हल नहीं
दुष्कर्म मामले में आखिरी फांसी 14 अगस्त, 2004 को पश्चिम बंगाल में दोषी धनंजय चटर्जी को दी गई थी, जिसने एक स्कूली छात्रा के साथ दुष्कर्म करने के बाद उसकी निर्मम हत्या कर दी थी। सवाल उठता है क्या उसके बाद दुष्कर्म की घटनाएं रुकीं? ऐसे कृत्य करने वालों में भय पैदा हुआ? शायद नहीं!
निर्भया मामले के दोषियों को फांसी देने से क्या दुष्कर्म जैसे घिनौने अपराधों से मुक्ति मिल जाएगी? यही वो सवाल है जो बार-बार मन को करौंदता है। निर्भया के दोषियों पर सजा मुकर्रर हो चुकी है।
सूली पर लटकाने का फरमान कभी भी देर-सवेर सुनाया जा सकता है। जनमानस ने इस मामले में फांसी से कम अपेक्षा भी नहीं की थी। लेकिन क्या समाज की मानसिकता में जो गंदगी भरी है, उसे इस फांसी से साफ किया जा सकता है?
कानून सिर्फ सजा दे सकता है, लेकिन समाज की घिनौनी मानसिकता नहीं बदल सकता। इसके लिए पूरे समाज को एकजुट होकर आगे आने की जरूरत है। महिलाएं इज्जत के साथ निर्भय होकर घर से निकले सकें, ऐसा माहौल की कल्पना करने की दरकार है। निर्भया केस में विरोध की जो अलख जनमानस ने जगाई थी, वैसी अलख सभी अपराधों के खिलाफ जगनी चाहिए।
निर्भया के दोषी फांसी के नहीं, सार्वजनिक रूप से रूह कांपने वाली सजा के हकदार हैं। फांसी की सजा उनके क्रूर अपराध की प्रासंगिकता को कम कर रही है। इतने घृणित अपराध में फांसी की सजा नाकाफी सी लग रही है। जिस क्रूर अपराध ने देश-दुनिया को आंसूओं के सैलाब की सुनामी से सराबोर कर दिया हो) उन दोषियों को फांसी देकर इतनी आसानी से नहीं मारना चाहिए बल्कि तिल-तिल कर मारना चाहिए ताकि ताउम्र उस पीड़ा का अहसास करते रहें। फांसी किसी जघन्य अपराध का विकल्प नहीं हो सकती है। उससे कहीं मुफीद उम्रकैद होती है।
16 दिसंबर की रात आधा दर्जन जिन भेडय़िों ने निर्भया को जो ज़ख्म और असहानीय पीड़ा दी, उसकी हम मात्र कल्पना ही कर सकते हैं। घटना को बर्बर और बेहद ही क्रूर ठंग से अंजाम दिया गया था। कोर्ट ने जब फैसला सुनाया, पूरा कक्ष तालियों की गडग़ड़ाहट से गूंज उठा। इसके अलावा पूरा देश फैसले का जानने के लिए अपने घरों में टीवी से चिपके हुए थे। फैसले के प्रति लोगों की खुशी और बैचेनी यह बताने को काफी थी कि दोषियों को इतनी आसानी से मौत नहीं देनी चाहिए।
वहशियाने की सारी हदों को पार करने वाले सभी छह भेडय़िों में एक नाबालिग होने का फायदा उठाकर इस समय खुली फिजा में घूम रहा है। एक ने पहले ही जेल में आत्महत्या कर ली थी, बाकी बचे चार दुर्दांती को फांसी की सजा मुकर्रर की गई है। फांसी पर लटकने के बाद मन में एक कसक रह जाएगा कि उन्हें बिना यातनाओं के इतनी सहज सजा क्यों दी?
दोषियों ने उस बच्ची का इस्तेमाल अपने मनोरंजन के लिए किया था। घटना को जिस क्रूरता के साथ अंजाम दिया गया था, उससे लग रहा था कि यह घटना इस धरती की नहीं, बल्कि किसी और ग्रह की है। घटना ने सभी को रोने पर मजबूर कर दिया था। हर वर्ग के लोगों को झकझोर कर रख दिया था। इसलिए सभी को शांति तब मिलेगी जब सभी दोषियों को कठोरता से सजा मिले।
फांसी से एक झटके में सब खत्म हो जाएगा, इसलिए इस अपराध में फांसी नाकाफी सी लगती है। ज्योति सिंह के लिए सोलह दिसंबर की रात इतनी महंगी पड़ गई कि उसकी खुद की पहचान ही बदल गई। घटना के बाद किसी ने दामिनी तो किसी ने निर्भया नाम दे दिया! आखिर क्यों? उसकी पहचान क्यों छिपानी चाहिए? उसके माता-पिता शुरू से ही मांग कर रहे हैं कि उसकी बेटी का नाम ज्योति सिंह है, उसको उसके नाम से ही संबोधित किया जाए.. और किया भी जाना चाहिए। (अपराध उसने नहीं किया कि उसे नाम छिपाना पड़े, मगर समाज का ²ष्टिकोण देखिए)।
अपराधी तो पुरुष होता है, जबकि अस्मत नारी की तार-तार होती है। कैसा मापदंड निर्मित कर रखा है हमने? फिर क्यों ऐसे मामलों में नारी का नाम छीन लिया जाता है। देखा जाए तो ज्योति सिंह दुष्कर्म मामले में उच्च न्यायायल ने वक्त के तकाजे और समाज की उम्मीदों के मुताबिक फरमान जारी किया है।
दुष्कर्म एक नारी का नहीं, बल्कि हमारे कछुआ चाल सिस्टम का होता है। उस सजा का क्या मतलब, जब न्याय पाने की उम्मीद धुंधली पड़ जाए। ज्योति के साथ हुए हादसे से लेकर अब तक साढ़े चार साल गुजर गए। उसके बाद यह फैसला आया। अपराधी लचर कानून-व्यवस्था का ही फायदा उठाता है। सोलह दिसंबर की घटना मीडिया में आकर बड़ी हो गई, पर इस तरह की घटनाएं रोजाना घटती हैं।
यों कहें कि हालात आज भी पहले जैसे ही हैं। कोई सुधार नहीं हुआ। असुरक्षा और बढ़ी है, हादसे और बढ़े हैं। प्रशासन तमाम वादे करके फिर से अपनी पोल खोल चुका है। महिलाओं की सुरक्षा को लेकर सरकारों द्वारा किए जाने वाले दावों की हकीकत कभी भी धरातल पर नहीं उतरती। जमकर राजनीति होती है।
पिछली कांग्रेस सरकार ने एक हजार करोड़ रुपये से निर्भया फंड बनाया था। मौजूदा मोदी सरकार ने पिछले बजट में इतने ही और पैसे इस फंड में डाले हैं, पर इसके इस्तेमाल की कोई योजना प्रस्तुत नहीं की गई है। न जाने किस मुहूर्त का इंतजार हो रहा है।
नेशनल
पश्चिम बंगाल सरकार ने राज्य में युवाओं के विकास के सभी रास्ते बंद कर दिए हैं: पीएम मोदी
कोलकाता। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शुक्रवार को मालदा में एक चुनावी जनसभा को संबोधित किया। उन्होंने कहा कि मेरा बंगाल से ऐसा नाता है जैसे मानो मैं पिछले जन्म में बंगाल में पैदा हुआ था या फिर शायद अगले जन्म में बंगाल में पैदा होना है। इसके साथ ही मोदी ने प्रदेश की सत्तारूढ़ दल तृणमूल कांग्रेस पर खूब हमला बोला। उन्होंने कहा कि पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस द्वारा किए गए बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार के कारण लगभग 26 हजार परिवारों की शांति और खुशी खत्म हो गई है। पीएम मोदी ने यह बयान कलकत्ता हाईकोर्ट की एक खंडपीठ के हालिया आदेश के संदर्भ में दिया। जिसमें सरकारी स्कूलों में 25 हजार 753 टीचिंग (शिक्षण) और गैर-शिक्षण नौकरियों को रद्द कर दिया गया था।
पीएम मोदी ने आगे कहा, “नौकरियों और आजीविका के इस नुकसान के लिए केवल तृणमूल कांग्रेस जिम्मेदार है। राज्य सरकार ने राज्य में युवाओं के विकास के सभी रास्ते बंद कर दिए हैं। जिन लोगों ने पैसे उधार लेकर तृणमूल कांग्रेस के नेताओं को दिए उनकी हालत तो और भी खराब है।” पीएम मोदी ने राज्य सरकार और सत्तारूढ़ दल पर विभिन्न केंद्र-प्रायोजित योजनाओं के तहत दिए गए केंद्रीय फंड के उपयोग के संबंध में बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार करने का भी आरोप लगाया। पीएम ने कहा, केंद्र सरकार ने राज्य के 80 लाख किसानों के लिए 8 हजार करोड़ रुपये उपलब्ध कराए हैं। लेकिन राज्य सरकार बाधा उत्पन्न कर रही है, इसलिए किसानों को राशि नहीं मिल पा रही है। राज्य सरकार सभी केंद्रीय परियोजनाओं के कार्यान्वयन को खराब करने की कोशिश कर रही है। वे राज्य में आयुष्मान भारत योजना लागू नहीं होने दे रहे। हमारे पास मालदा जिले के आम किसानों के लिए योजनाएं हैं। लेकिन मुझे चिंता है कि तृणमूल कांग्रेस के नेता वहां भी कमीशन की मांग करेंगे। पीएम मोदी ने राज्य के विभिन्न हिस्सों में महिलाओं के यौन उत्पीड़न के लिए जिम्मेदार लोगों को बचाने का प्रयास करने का भी आरोप राज्य सरकार पर लगाया।
उन्होंने कहा कि संदेशखाली में महिलाओं को प्रताड़ित किया गया। मालदा में भी ऐसी ही घटनाओं की खबरें आई थीं। लेकिन तृणमूल कांग्रेस सरकार ने हमेशा आरोपियों को बचाने का प्रयास किया है। पीएम मोदी ने आगे कहा कि कांग्रेस और तृणमूल कांग्रेस के बीच तुष्टिकरण की राजनीति की प्रतिस्पर्धा चल रही है। एक तरफ तृणमूल कांग्रेस पश्चिम बंगाल में अवैध घुसपैठ को बढ़ावा दे रही है। वहीं दूसरी ओर, कांग्रेस आम लोगों से पैसा जब्त करने और इसे केवल उन लोगों के बीच वितरित करने की योजना बना रही है जो उनके समर्पित वोट बैंक का हिस्सा हैं। कांग्रेस और तृणमूल कांग्रेस का गुप्त समझौता है।
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