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इराक में बंधकों की हत्या के ठोस सबूत नहीं : सुषमा
नई दिल्ली| विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने शुक्रवार को कहा कि सरकार को छह सूत्रों से यह जानकारी प्राप्त हुई है कि इराक में बंधक बनाए गए 39 भारतीय नागरिकों की हत्या नहीं की गई है और सरकार उनकी रिहाई पर काम कर रही है। सुषमा ने लोकसभा में कहा कि सरकार का बंधक बनाए गए लोगों से कोई सीधा संपर्क नहीं है और अपहृत भारतीयों की रिहाई को सुनिश्चित करने के लिए खाड़ी देशों में उच्चस्तरीय संपर्क स्थापित करने की कोशिश की गई है। भारतीय नागरिक मोसुल में तुर्की की एक निर्माण कंपनी के साथ कार्यरत थे। उन्हें जून महीने में इस्लामिक स्टेट के आतंकवादियों ने अगवा कर लिया।
सुषमा ने राज्यसभा में भी यही बात कही और कहा कि अभी तक अपहृत भारतीयों के जिंदा होने या उनकी हत्या के संबंध में कोई ठोस सबूत नहीं मिले हैं। लोकसभा में सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया ने उनसे पहले इराक में अगवा किए गए भारतीय नागरिकों की हत्या होने की खबरों का उल्लेख किया था। सुषमा ने कहा कि ये सभी सूचनाएं सिर्फ एक सूत्र से आई हैं। उन्होंने कहा कि एक सूत्र हरजीत मसीह अपहरणकर्ताओं के चंगुल से निकलने में कामयाब रहा और वह अभी सरकार के संरक्षण में है। मंत्री ने कहा, “एक व्यक्ति ने कहा कि सभी मारे गए हैं। छह सूत्र कह रहे हैं कि वे नहीं मारे गए हैं। यह संदेश लिखित मिला है।”
सुषमा ने कहा कि उन्होंने यह संदेश वित्त मंत्री अरुण जेटली और खाद्य प्रसंस्करण मंत्री हरसिमरत कौर को दिखाया है। उन्होंने कहा, “संदेश हर दिन प्राप्त हो रहा है।” सुषमा ने कहा कि रेड क्रीसेंट उन संगठनों में है, जिसका कहना है कि बंधकों की हत्या नहीं हुई है। मंत्री ने कहा कि मसीह ने कहा था कि भारतीयों और बांग्लादेशी नागरिकों को बंधक वाले स्थान से दूर ले जाया गया और उन्हें अलग कर दिया गया।
मसीह ने यह भी कहा कि भारतीयों को जंगल ले जाकर उनकी हत्या कर दी गई और लेकिन वह स्वयं भागने में सफल रहा, लेकिन उसके बयान बार-बार बदलते रहे हैं। सुषमा ने कहा कि सरकार के पास एक व्यक्ति के बयान के आधार पर तलाशी बंद करने का विकल्प है या फिर अन्य सूत्रों के बयान के आधार पर तलाश जारी रखने का विकल्प है।
उन्होंने कहा, “बंधकों के साथ कोई सीधा संपर्क नहीं है। उनके जिंदा होने या उनकी हत्या का कोई ठोस सबूत नहीं है।” सुषमा ने विपक्ष द्वारा सरकार पर जनता को गुमराह करने के लगाए जा रहे आरोपों को भी खारिज किया। उन्होंने कहा, “हम क्यों गुमराह करेंगे? हम उनकी रिहाई की कोशिश कर रहे हैं।” सुषमा ने कहा कि वह भारतीय नागरिकों की रिहाई के बाद ही चैन से बैठेंगी।
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लोकसभा के शोले और रहीम चाचा की खामोशी
सच्चिदा नन्द द्विवेदी एडिटर-इन-चीफ
हिन्दी सिनेमा की कालजई फिल्म शोले के रहीम चाचा का किरदार आपको जरूर याद होगा। उनका एक डायलॉग था जिसमें वो कहते है “इतना सन्नाटा क्यूँ है भाई” उस वक्त पूरे रामगढ़ में किसी के पास इसका जवाब नहीं था, कमोवेश ठीक वैसे ही हालात इस वक्त लोकसभा चुनाव में नजर आ रहे हैं। लोकसभा के चुनाव के दो चरण पूरे हो चुके हैं पर पूरे देश में कहीं भी ऐसा नजर नहीं आता कि हम अगले पाँच साल के लिए अपने नुमाइंदे चुनने जा रहे हैं। एक अजीब खामोशी नुमायाँ है। गांव, कस्बों और शहरों तक में होर्डिंग और पोस्टर नजर नहीं आ रहे हैं और न ही कानफोडू लाऊडस्पीकर पर वोट मांगने वालों का शोर सुनाई दे रहा है, चाय की टपरी और पान के खोखों पर जमा होने वाली भीड़ अपने होंठों को सिले हुए है।
एक वक्त था जब हम लोग चाय की टपरी, पान की दुकान और रास्तों के ढाबों से देश का मूड भांप लेते थे। मतदाताओं के मन में क्या चल रहा है इसका अंदाज लगाना आसान था। लेकिन आज स्थिति उलट है इन जगहों पर खड़ा आम आदमी आपसे ही उल्टा पूछ लेता है ‘और क्या चल रहा है’ इंसान-इंसान के बीच अविश्वास की खाई इतनी गहरी हो गई है कि वो पब्लिक प्लेस पर अब राजनीतिक बात करने से गुरेज करने लगा है। वोटर अपने मन की बात जुबान पर नहीं लाना चाहता हैं क्यूंकी अब वो रेडियो पर ‘मोदी जी’ के मन की बात सुन रहा है और अपने मन की बात अपने मन में रखे हुए है। उसे डर है और ये डर मिश्रित चुप्पी स्वस्थ लोकतंत्र के लिए अच्छा लक्षण नहीं है।
लोकसभा चुनाव के पहले चरण की तरह दूसरे चरण में भी वोटिंग 2019 के मुकाबले कम हुई है। पहले चरण में 21 राज्यों की 102 लोकसभा सीटों पर 64 प्रतिशत वोटिंग हुई थी। जबकि पिछले लोकसभा चुनाव में उन सीटों पर भी 70 प्रतिशत से ज्यादा मतदान हुआ था। ऐसे ही इस बार दूसरे चरण में 13 राज्यों की 88 लोकसभा सीटों पर करीब 63 फीसदी वोट पड़े। यह 2019 के लोकसभा चुनाव में 70.09% मतदान के मुकाबले काफी कम था। यूपी, बिहार, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश और राजस्थान जैसे बड़े राज्यों में वोटिंग उम्मीद से काफी कम रही। यूपी में 54.85%, बिहार में 55.08% , महाराष्ट्र में 57.83% , एमपी में 57.88 % वोटिंग हुई। सबसे अधिक वोट त्रिपुरा, मणिपुर, छत्तीसगढ़ और पश्चिम बंगाल में पड़े। लोकसभा चुनाव के तीसरे चरण में सात मई को वोटिंग है। इसमें 12 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों की 95 सीट पर मतदान होगा, जिसके लिए 1351 उम्मीदवार चुनाव मैदान में हैं।
जब 7 मई, 13 मई, 20 मई, 25 मई और 1 जून को तीसरे, चौथे, पांचवे, छठे और सातवें चरण का मतदान होगा तो इस दौरान देश के अधिकतर हिस्सों में गर्मी के साथ लू का असर दिखाई देगा। भारतीय मौसम विज्ञान विभाग के आंकड़ों से पता चलता है कि लोकसभा चुनाव के लिए प्रचार के दौरान लगभग 72% निर्वाचन क्षेत्रों में अधिकतम तापमान 35°C या इससे अधिक हो सकता है। विशेष रूप से, 59 सीटों पर 40-42 डिग्री सेल्सियस के बीच तापमान का सामना करना पड़ सकता है। जबकि 194 सीटों पर 37.5-से 40 डिग्री सेल्सियस के बीच तापमान देखा जा सकता है। लेकिन इस गर्मी के बीच क्षेत्रीय दलों के नेता काफी तेजी से अपने इलाके के मतदाताओं पर पकड़ बना रहे हैं और उन सवालों को उठा रहे हैं जिनसे देश का किसान, मजदूर और नौजवान चिंतित है। इसलिए उनके प्रति आम जनता की अपेक्षाएं बढ़ी हैं इसलिए विपक्षी गठबंधन के नेताओं की रैलियों में भारी भीड़ आ रही है। जबकि भाजपा की रैलियों का रंग उसके मुकाबले फीका नजर या रहा है।
हालांकि रैली में आने वाली भीड़ जीत का पैमाना नहीं होती इसलिए कुछ कहा नहीं जा सकता। हर दल का अपना एक समर्पित काडर होता है। जबकि आज काडर के नाम पर ज्यादातर दलों के पास सत्ता के छत्ते से चिपकी रहने वाली मधुमक्खी ही ज्यादा नजर या रहीं है ये वो लोग हैं जिन्हें सत्ता की दलाली करने के अवसरों की तलाश होती है। राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ जिसके पास काडर है कार्यकर्ता हैं वो भी खामोश नजर आ रहा है। बहरहाल लगातार कम होते मतदान ने नेताओं की धुकधुकी बढ़ा रखी है। सत्ता पक्ष मतदान प्रतिशत बढ़ाने के लिए परेशान है तो विपक्ष कम प्रतिशत को अपने पक्ष में मानकर मुंगेरीलाल के सपने बुनने में मगन है।
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