आध्यात्म
कब है पद्मिनी एकादशी व्रत, जानें तारीख; शुभ मुहूर्त व पूजा विधि
नई दिल्ली। सावन मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को पद्मिनी एकादशी मनाई जाती है। इस बार पद्मिनी एकादशी का व्रत अधिक मास में रखा जाएगा। कहा जाता है कि इस दिन व्रत रखने से भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त होती है साथ ही पितरों को मोक्ष प्राप्त होता है।
पद्मिनी एकादशी व्रत तारीख
पद्मिनी एकादशी तिथि का आरंभ 28 जुलाई को दोपहर 2 बजकर 52 मिनट से आरंभ होगी और 29 जुलाई को रात के समय 1 बजकर 6 मिनट तक रहेगी। ऐसे में पद्मिनी एकादशी का व्रत 29 जुलाई को रखा जाएगा। वहीं, 30 तारीख को सुबह सूर्योदय से 2 घंटे के अंदर अंदर एकादशी व्रत का पारण किया जाएगा।
पद्मिनी एकादशी पूजा विधि
पद्मिनी एकादशी के दिन पूरे विधि विधान के साथ पूजा अर्चना करनी चाहिए।पद्मिनी एकादशी के दिन सुबह जल्दी उठकर पानी में थोड़ा गंगाजल मिलाकर स्नान करें। इससके बाद भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा करें। पूजा में पीले रंग के फूल, धूप, दीप, अक्षत, चंदन और दूर्वा अर्पित करें।
साथ ही इस दिन पद्मिनी एकादशी की कथा पढ़ें और विष्णु चालीसा का पाठ करें और अंत में विष्णु चालीसा का पाठ जरूर करें। इस दिन पूरे दिन व्रत करें और शाम के समय फलाहार करें। अगले दिन व्रत खोलें।
पद्मिनी एकादशी महत्व
मान्यताओं के अनुसार, पद्मिनी एकादशी का व्रत जो व्यक्ति रखता है वह इस जीवन में हर तरह के सुख भोग कर भगवान विष्णु के धाम को प्राप्त करता है। शास्त्रों में कहा गया है कि इस व्रत को रखने से यज्ञ, तप और दान का महत्व है। कहा जाता है कि इस व्रत को रखने से भगवान विष्णु प्रसन्न होते हैं व्रत को नियम और संयम के साथ पालन करें।
आध्यात्म
आज पूरा देश मना रहा रामनवमी, जानिए इसके पीछे की पूरी पौराणिक कहानी
नई दिल्ली। आज पूरे देश में रामनवमी का त्यौहार बड़ी धूम धाम से मनाया जा रहा है। पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक इस दिन भगवान राम का जन्म हुआ था। जो विष्णु का सातवां अवतार थे। रामनवमी का त्यौहार चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी को मनाया जाता है। आइये जानते हैं इसके पीछे की पौराणिक कहानी।
पौराणिक कथाओं के मुताबिक भगवान राम ने भी मां दुर्गा की पूजा की थी, जिससे कि उन्हें युद्ध के समय विजय मिली थी। साथ ही माना जाता है इस दिन गोस्वामी तुलसीदास जी ने रामचरित मानस की रचना का आरंभ किया। राम नवमी का व्रत जो भी करता है वह व्यक्ति पापों से मुक्त होता है और साथ ही उसे शुभ फल प्रदान होता है
रामनवमी का इतिहास-
महाकाव्य रामायण के अनुसार अयोध्या के राजा दशरथ की तीन पत्नियां थी। कौशल्या, सुमित्रा और कैकयी। शादी को काफी समय बीत जाने के बाद भी राजा दशरथ के घर किसी बालक की किलकारी नहीं गूंजी थी। इसके उपचार के लिए ऋषि वशिष्ट ने राजा दशरथ से पुत्र प्राप्ति के लिए कमेश्टी यज्ञ कराने के लिए कहा। जिसे सुनकर दशरथ खुश हो गए और उन्होंने महर्षि रुशया शरुंगा से यज्ञ करने की विन्नती की। महर्षि ने दशरथ की विन्नती स्वीकार कर ली। यज्ञ के दौरान महर्षि ने तीनों रानियों को प्रसाद के रूप में खाने के लिए खीर दी। इसके कुछ दिनों बाद ही तीनों रानियां गर्भवती हो गईं।
नौ माह बाद चैत्र मास में राजा दशरथ की बड़ी रानी कौशल्या ने भगवान राम को जन्म दिया, कैकयी ने भरत को और सुमित्रा ने दो जुड़वा बच्चे लक्ष्मण और शत्रुघन को जन्म दिया। भगवान विष्णु ने श्री राम के रूप में धरती पर जन्म इसलिए लिया ताकि वे दुष्ट प्राणियों का नरसंहार कर सके।
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