आध्यात्म
कल 25 जनवरी को है गणेश चतुर्थी, बन रहे हैं रवि व शिव योग
नई दिल्ली। माघ माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को गणेश चतुर्थी का पर्व मनाया जाता है। शास्त्रों के अनुसार, गणेश चतुर्थी के दिन गणपति जी प्रकट हुए थे। इसी के कारण इसे गणेश जयंती के रूप में भी मनाते हैं। गणेश जयंती को माघी गणेशोत्सव, माघ विनायक चतुर्थी, वरद चतुर्थी और वरद तिल कुंद चतुर्थी भी कहा जाता है।
इस बार 25 जनवरी को पड़ने वाली गणेश चतुर्थी काफी खास है क्योंकि यह बुधवार को पड़ रही है, जो गणेश जी को समर्पित वार है। इसके साथ इस दिन रवि, शिव जैसे योग बन रहे हैं।
गणेश जयंती 2023
माघ माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि आरंभ- 24 जनवरी को दोपहर 03 बजकर 22 मिनट से
चतुर्थी तिथि समाप्त- 25 जनवरी, बुधवार को दोपहर 12 बजकर 34 मिनट तक
उदया तिथि के अनुसार गणेश जयंती 25 जनवरी, बुधवार को है।
शुभ मुहूर्त
पूजा का शुभ मुहूर्त- सुबह 11 बजकर 29 मिनट से दोपहर 12 बजकर 34 मिनट तक
रवि योग- सुबह 06 बजकर 44 मिनट से 08 बजकर 05 मिनट तक
परिघ योग- 24 जनवरी को रात 9 बजकर 36 मिनट से 25 जनवरी शाम 6 बजकर 15 मिनट तक
शिव योग- 25 जनवरी शाम 6 बजकर 15 मिनट से 26 जनवरी सुबह 10 बजकर 28 मिनट तक।
गणेश जयंती चंद्रोदय का समय
25 जनवरी को सुबह 09 बजकर 54 मिनट से रात 09 बजकर 55 मिनट तक चंद्रमा का दर्शन न करें।
भद्रा और पंचक का समय
गणेश जयंती पर भद्रा 25 जनवरी को सुबह 01 बजकर 53 मिनट से शुरू होकर दोपहर 12 बजकर 34 तक है। इसके साथ ही पंचक 27 जनवरी को रहेगा। भद्रा में मांगलिक कार्य करने की मनाही है लेकिन पंचक और भद्रा में पूजा पाठ किया जा सकता है।
आध्यात्म
आज पूरा देश मना रहा रामनवमी, जानिए इसके पीछे की पूरी पौराणिक कहानी
नई दिल्ली। आज पूरे देश में रामनवमी का त्यौहार बड़ी धूम धाम से मनाया जा रहा है। पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक इस दिन भगवान राम का जन्म हुआ था। जो विष्णु का सातवां अवतार थे। रामनवमी का त्यौहार चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी को मनाया जाता है। आइये जानते हैं इसके पीछे की पौराणिक कहानी।
पौराणिक कथाओं के मुताबिक भगवान राम ने भी मां दुर्गा की पूजा की थी, जिससे कि उन्हें युद्ध के समय विजय मिली थी। साथ ही माना जाता है इस दिन गोस्वामी तुलसीदास जी ने रामचरित मानस की रचना का आरंभ किया। राम नवमी का व्रत जो भी करता है वह व्यक्ति पापों से मुक्त होता है और साथ ही उसे शुभ फल प्रदान होता है
रामनवमी का इतिहास-
महाकाव्य रामायण के अनुसार अयोध्या के राजा दशरथ की तीन पत्नियां थी। कौशल्या, सुमित्रा और कैकयी। शादी को काफी समय बीत जाने के बाद भी राजा दशरथ के घर किसी बालक की किलकारी नहीं गूंजी थी। इसके उपचार के लिए ऋषि वशिष्ट ने राजा दशरथ से पुत्र प्राप्ति के लिए कमेश्टी यज्ञ कराने के लिए कहा। जिसे सुनकर दशरथ खुश हो गए और उन्होंने महर्षि रुशया शरुंगा से यज्ञ करने की विन्नती की। महर्षि ने दशरथ की विन्नती स्वीकार कर ली। यज्ञ के दौरान महर्षि ने तीनों रानियों को प्रसाद के रूप में खाने के लिए खीर दी। इसके कुछ दिनों बाद ही तीनों रानियां गर्भवती हो गईं।
नौ माह बाद चैत्र मास में राजा दशरथ की बड़ी रानी कौशल्या ने भगवान राम को जन्म दिया, कैकयी ने भरत को और सुमित्रा ने दो जुड़वा बच्चे लक्ष्मण और शत्रुघन को जन्म दिया। भगवान विष्णु ने श्री राम के रूप में धरती पर जन्म इसलिए लिया ताकि वे दुष्ट प्राणियों का नरसंहार कर सके।
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