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आध्यात्म

जीवात्‍मा भी परमात्‍मा का नित्‍य दास है

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kripalu ji maharaj

अतः जीवात्‍मा भी परमात्‍मा का नित्‍य दास है। यह बात और है कि माया के कारण जीव अपना वास्‍तविक स्‍वरूप भूल गया है एवं स्‍वयं को देह मानकर माया की ही दासता कर रहा है और अनादिकाल से दुःखी हो रहा है।

यदि रसिक कृपा से उपर्युक्‍त स्‍वस्‍वरूप ज्ञान हो जाय तो अपने स्‍वामी श्रीकृष्‍ण से मिलने एवं उनकी सेवा प्राप्‍त करने को परम व्‍याकुल हो जाय और व्‍याकुलता से ही वे मिल जायँ।

सत्‍य अहिंसा आदि मन! बिन हरिभजन न पाय।

जल ते घृत निकले नहीँ, कोटिन करिय उपाय।।35।।

भावार्थ- सत्‍य, अहिंसादि दैवीगुण केवल श्रीकृष्‍ण भक्ति से ही मिल सकते हैं। जैसे पानी मथने से घी नहीं निकल सकता। ऐसे ही अन्‍य करोड़ों उपायों से भी दैवीगुण नहीं मिलते।

व्‍याख्‍या- सत्‍य बोलना आदि दैवी गुण हैं। सभी व्‍यक्ति इन गुणों से प्‍यार भी करते हैं। क्‍योंकि दैवी गुणों के अध्‍यक्ष श्रीकृष्‍ण के अंश हैं। हम दूसरों से जो चाहते हैं वही हमारा स्‍वभाव है।

किसी के झूठ बोलने आदि पर हम एतराज करते हैं, भले ही स्‍वयं दिन में सैकड़ों झूठ बोलते हों। इससे सिद्ध हुआ कि दैवी गुण सत्‍य, अहिंसादि भगवान् से ही सम्‍बन्‍ध रखते हैं एवं इसके विपरीत झूठ, हिंसादि, माया से सम्‍बन्‍ध रखते हैं। इसी से मायिक वस्‍तुओं के लोभ में हम लोग झूठ आदि का अवलंब लेते हैं।

आध्यात्म

आज पूरा देश मना रहा रामनवमी, जानिए इसके पीछे की पूरी पौराणिक कहानी

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नई दिल्ली। आज पूरे देश में रामनवमी का त्यौहार बड़ी धूम धाम से मनाया जा रहा है। पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक इस दिन भगवान राम का जन्म हुआ था। जो विष्णु का सातवां अवतार थे। रामनवमी का त्यौहार चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी को मनाया जाता है। आइये जानते हैं इसके पीछे की पौराणिक कहानी।

पौराणिक कथाओं के मुताबिक भगवान राम ने भी मां दुर्गा की पूजा की थी, जिससे कि उन्हें युद्ध के समय विजय मिली थी। साथ ही माना जाता है इस दिन गोस्वामी तुलसीदास जी ने रामचरित मानस की रचना का आरंभ किया। राम नवमी का व्रत जो भी करता है वह व्यक्ति पापों से मुक्त होता है और साथ ही उसे शुभ फल प्रदान होता है

रामनवमी का इतिहास-

महाकाव्य रामायण के अनुसार अयोध्या के राजा दशरथ की तीन पत्नियां थी। कौशल्या, सुमित्रा और कैकयी। शादी को काफी समय बीत जाने के बाद भी राजा दशरथ के घर किसी बालक की किलकारी नहीं गूंजी थी। इसके उपचार के लिए ऋषि वशिष्ट ने राजा दशरथ से पुत्र प्राप्ति के लिए कमेश्टी यज्ञ कराने के लिए कहा। जिसे सुनकर दशरथ खुश हो गए और उन्होंने महर्षि रुशया शरुंगा से यज्ञ करने की विन्नती की। महर्षि ने दशरथ की विन्नती स्वीकार कर ली। यज्ञ के दौरान महर्षि ने तीनों रानियों को प्रसाद के रूप में खाने के लिए खीर दी। इसके कुछ दिनों बाद ही तीनों रानियां गर्भवती हो गईं।

नौ माह बाद चैत्र मास में राजा दशरथ की बड़ी रानी कौशल्या ने भगवान राम को जन्म दिया, कैकयी ने भरत को और सुमित्रा ने दो जुड़वा बच्चे लक्ष्मण और शत्रुघन को जन्म दिया। भगवान विष्णु ने श्री राम के रूप में धरती पर जन्म इसलिए लिया ताकि वे दुष्ट प्राणियों का नरसंहार कर सके।

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