आध्यात्म
साधक को अंतःकरण शुद्धि की साधना करनी होगी
हरि अनुराग विराग जग, आपुहिँ आपु न होय।
मन ते भजन किये बिना, भक्ति न पावे कोय।।14।।
भावार्थ- संसार से वैराग्य एवं श्रीकृष्ण से अनुराग ये दोनों ही स्वयं नहीं हो जाते। इन दोनों की प्राप्ति के हेतु मन से भजन करना होगा। तभी समस्या हल होगी।
व्याख्या- यह तो बा-बार बताया जा चुका है कि वैराग्य अथवा अनुराग सब का कर्ता केवल मन ही है। किंतु यह आशा भ्रमास्पद है कि कभी भगवत्कृपा या गुरुकृपा या प्रारब्धादि से अपने आप वैराग्य या अनुराग हो जायगा। यदि भगवान् अथवा गुरु ही कर सकते तो यह विश्व ही क्यों रहता। तभा वेदादि का उपदेश भी क्यों होता। यद्यपि शास्त्रों में कृपा द्वारा साध्य मिलेगा, यह भी लिखा है। किंतु उसका अभिप्राय वास्तविक गुरु ही समझा सकता है स्वयं पढ़कर कभी किसी को तत्त्वज्ञान नहीं हो सकता।
वास्तविकता यह है कि सर्वप्रथम साधक को अंतःकरण शुद्धि की साधना करनी होगी। इसी लक्ष्य से वेदादि उपदेश हैं। जब पात्र तैयार हो जायगा, तब गुरु कृपा से दिव्य प्रेम मिलेगा। दिव्य प्रेम, साधना से नहीं मिल सकता किंतु पात्र (मनःशुद्धि) बनाने की साधना तो करनी ही है। अतः गुरु शरणागति में नवधा भक्ति द्वारा श्रीकृष्ण से ज्यों-ज्यों अनुराग होगा, त्यों-त्यों वैराग्य भी होगा। अतः मुक्ति के विषय में गंभीर विचार करना है।
आध्यात्म
आज पूरा देश मना रहा रामनवमी, जानिए इसके पीछे की पूरी पौराणिक कहानी
नई दिल्ली। आज पूरे देश में रामनवमी का त्यौहार बड़ी धूम धाम से मनाया जा रहा है। पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक इस दिन भगवान राम का जन्म हुआ था। जो विष्णु का सातवां अवतार थे। रामनवमी का त्यौहार चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी को मनाया जाता है। आइये जानते हैं इसके पीछे की पौराणिक कहानी।
पौराणिक कथाओं के मुताबिक भगवान राम ने भी मां दुर्गा की पूजा की थी, जिससे कि उन्हें युद्ध के समय विजय मिली थी। साथ ही माना जाता है इस दिन गोस्वामी तुलसीदास जी ने रामचरित मानस की रचना का आरंभ किया। राम नवमी का व्रत जो भी करता है वह व्यक्ति पापों से मुक्त होता है और साथ ही उसे शुभ फल प्रदान होता है
रामनवमी का इतिहास-
महाकाव्य रामायण के अनुसार अयोध्या के राजा दशरथ की तीन पत्नियां थी। कौशल्या, सुमित्रा और कैकयी। शादी को काफी समय बीत जाने के बाद भी राजा दशरथ के घर किसी बालक की किलकारी नहीं गूंजी थी। इसके उपचार के लिए ऋषि वशिष्ट ने राजा दशरथ से पुत्र प्राप्ति के लिए कमेश्टी यज्ञ कराने के लिए कहा। जिसे सुनकर दशरथ खुश हो गए और उन्होंने महर्षि रुशया शरुंगा से यज्ञ करने की विन्नती की। महर्षि ने दशरथ की विन्नती स्वीकार कर ली। यज्ञ के दौरान महर्षि ने तीनों रानियों को प्रसाद के रूप में खाने के लिए खीर दी। इसके कुछ दिनों बाद ही तीनों रानियां गर्भवती हो गईं।
नौ माह बाद चैत्र मास में राजा दशरथ की बड़ी रानी कौशल्या ने भगवान राम को जन्म दिया, कैकयी ने भरत को और सुमित्रा ने दो जुड़वा बच्चे लक्ष्मण और शत्रुघन को जन्म दिया। भगवान विष्णु ने श्री राम के रूप में धरती पर जन्म इसलिए लिया ताकि वे दुष्ट प्राणियों का नरसंहार कर सके।
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