Connect with us
https://www.aajkikhabar.com/wp-content/uploads/2020/12/Digital-Strip-Ad-1.jpg

आध्यात्म

ब्रह्म प्रमुख रूप से आनन्‍द का ही वाचक है

Published

on

kripalu ji maharaj

Loading

kripalu ji maharaj

kripalu ji maharaj

तात्‍पर्य यह कि वह एवं उसकी शक्तियाँ इतनी बड़ी (अनन्‍त) हैं कि न तो उनसे बड़ा कोई है, न तो उनके बराबर ही कोई है। कुछ लोग (अद्वैती ब्रह्म में शक्तियाँ ही नहीं मानते। वे लोग ध्‍यान दें। श्रुति कहती है।

यः सर्वज्ञः सर्वविद्वस्‍य ज्ञानमयं तपः

(मुण्‍डको. 1-1-9)

अर्थात् ब्रह्म सर्वज्ञ है। पुनः वही श्रुति स्‍पष्‍ट करती है। यथा-

नायमात्‍मा प्रवचनेन लभ्‍यो न मेधया न बहुनाश्रुतेन।

यमेवैष वृणुते तेन लभ्‍यस्‍तस्‍यैष आत्‍मा विवृणुते तनू ँ स्‍वाम।।

(कठोप. 1-2-23, मुण्‍डको 3-2-3)

अर्थात् वह ब्रह्म जिसका वरण करता है, वही जीव उसे प्राप्‍त करता है। अतः ब्रह्म सशक्तिक एवं सविशेष है। शंकराचार्य ने प्रथम ब्रह्मसूत्र भाष्‍य में लिखा है। यथा-

नित्‍यशुद्धबुद्धमुक्‍त स्‍वभावं सर्वज्ञं सर्वशक्ति समन्वितं ब्रह्म।

किंतु पश्‍चात् शंकराचार्य ने मुख्‍यार्थ छोड़ कर लक्षणा वृत्ति का आश्रय लेकर ब्रह्म को निःशक्तिक एवं निर्विशेष माना है। वस्‍तुतः उनका एक ही लक्ष्‍य था कि जीव एवं ब्रह्म का एकत्‍व ही सिद्ध करना है। वेदों में भेदवादिनी एवं अभेदवादिनी दोनों ही प्रकार की ऋचायें हैं। कहीं कहीं तो एक ही मंत्र में दोनों ही प्रकार की ऋचायें हैं। शंकर ने अभेदवादिनी ऋचाओं को ही पारमार्थिक माना एवं भेदवादिनी ऋचाओं को व्‍यावहारिक कह कर टाल दिया। किंतु इस मंतव्‍य में प्रमाण नहीं दे सके। वेद तो कहता है। यथा-

सर्वे वेदा यत्‍पदमामनन्ति।

(कठोप. 1-2-15)

अर्थात् सभी ऋचायें एक सी हैं। वस्‍तुतः दोनों ही प्रकार की ऋचायें पारमार्थिक ही है। किंतु समझने की शक्ति साधारण बुद्धि में नहीं है। बड़ी सीधी सी बात है कि ब्रह्म एवं जीव तथा माया इन तीनों तत्‍वों को भेदवादिनी ऋचायें स्‍पष्‍ट बता रहीं हैं। एवं एकमात्र ब्रह्म को ही अभेदवादिनी ऋचायें स्‍पष्‍ट बता रही हैं। दोनों सही हैं। क्‍योंकि जीव (परा) एवं माया (अपरा) दोनों ही ब्रह्म की शक्तियाँ हैं। शक्ति एवं शक्तिमान् में भेद एवं अभेद दोनों ही माना गया है। अतः कोई विवाद है ही नहीं। अस्‍तु अपनी शक्तियों को द्वारा ही वह निर्गुण निर्विशेष निराकार तथा सगुण सविशेष साकार बनता है। वह ब्रह्म प्रमुख रूप से आनन्‍द का ही वाचक है। साथ में सत्चित् विशेषण युक्‍त भी है। अतः उसे सच्चिदानन्‍द भी कहा जाता है। यथा वेद-

आनन्‍दो ब्रह्मोति व्‍यजानात्। (तैत्तिरीयो. 3-6)

आध्यात्म

आज पूरा देश मना रहा रामनवमी, जानिए इसके पीछे की पूरी पौराणिक कहानी

Published

on

Loading

नई दिल्ली। आज पूरे देश में रामनवमी का त्यौहार बड़ी धूम धाम से मनाया जा रहा है। पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक इस दिन भगवान राम का जन्म हुआ था। जो विष्णु का सातवां अवतार थे। रामनवमी का त्यौहार चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी को मनाया जाता है। आइये जानते हैं इसके पीछे की पौराणिक कहानी।

पौराणिक कथाओं के मुताबिक भगवान राम ने भी मां दुर्गा की पूजा की थी, जिससे कि उन्हें युद्ध के समय विजय मिली थी। साथ ही माना जाता है इस दिन गोस्वामी तुलसीदास जी ने रामचरित मानस की रचना का आरंभ किया। राम नवमी का व्रत जो भी करता है वह व्यक्ति पापों से मुक्त होता है और साथ ही उसे शुभ फल प्रदान होता है

रामनवमी का इतिहास-

महाकाव्य रामायण के अनुसार अयोध्या के राजा दशरथ की तीन पत्नियां थी। कौशल्या, सुमित्रा और कैकयी। शादी को काफी समय बीत जाने के बाद भी राजा दशरथ के घर किसी बालक की किलकारी नहीं गूंजी थी। इसके उपचार के लिए ऋषि वशिष्ट ने राजा दशरथ से पुत्र प्राप्ति के लिए कमेश्टी यज्ञ कराने के लिए कहा। जिसे सुनकर दशरथ खुश हो गए और उन्होंने महर्षि रुशया शरुंगा से यज्ञ करने की विन्नती की। महर्षि ने दशरथ की विन्नती स्वीकार कर ली। यज्ञ के दौरान महर्षि ने तीनों रानियों को प्रसाद के रूप में खाने के लिए खीर दी। इसके कुछ दिनों बाद ही तीनों रानियां गर्भवती हो गईं।

नौ माह बाद चैत्र मास में राजा दशरथ की बड़ी रानी कौशल्या ने भगवान राम को जन्म दिया, कैकयी ने भरत को और सुमित्रा ने दो जुड़वा बच्चे लक्ष्मण और शत्रुघन को जन्म दिया। भगवान विष्णु ने श्री राम के रूप में धरती पर जन्म इसलिए लिया ताकि वे दुष्ट प्राणियों का नरसंहार कर सके।

Continue Reading

Trending