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आध्यात्म

भगवान श्री कृष्ण में सब शक्तियाँ प्रकट होती हैं

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उन तीनों स्वरूपों का नाम है ब्रह्म, परमात्‍मा और भगवान्। तो भगवान् श्री कृष्‍ण हैं। उनके और दो रूप हैं- एक परमात्‍मा, एक ब्रह्म। इन तीनों का अलग अलग आस्तित्‍व नहीं है। श्रीकृष्ण के ही तीनों अभिन्‍न रूवरूप हैं। यों समझिये जैसे जल, बर्फ, भाप तीनों एक ही वस्‍तु है किन्‍तु कार्य पृथक – पृथक है। जहाँ जल का कार्य है वहाँ बर्फ का प्रयोग नहीं होता, जहाँ बर्फ का काम है वहाँ भाप का प्रयोग नहीं होता। ऐसे ही भगवान श्री कृष्ण में सब शक्तियाँ प्रकट होती हैं। अर्थात् उनका नाम है, रूप है, गुण है, लीला है, धाम है, सब कुछ है। इसलिये उनको अद्वय ज्ञान तत्‍त्‍व कहा गया। अद्वय ज्ञान। ज्ञान माने चित , सच्चिदानन्द हैं न।-

’ज्ञानं चिदेक रूपम् ‘

(तत्त्‍व संदर्भ)

दूसरा स्वरूप श्रीकृष्ण का परमात्मा वाला है। इसमें भी नाम है, रूप है, गुण है, शक्तियाँ हैं, लीलायें नहीं हैं। तीसरा स्‍वरूप है ब्रह्म, इसका तो न नाम है, न रूप है, न गुण है, न लीला है। केवल उसका अस्तित्‍व है और सच्चिदानन्द स्वरूप है। शक्तियाँ सब हैं लेकिन प्रकट नहीं होती। तो प्रकट शक्ति के कारण हम एक को ब्रह्म कहते हैं, एक को परमात्मा कहते हैं, एक को भगवान कहते हैं और तीनों अभिन न स्वरूपों के तीन प्रकार के उपासक भी होते हैं

आध्यात्म

आज पूरा देश मना रहा रामनवमी, जानिए इसके पीछे की पूरी पौराणिक कहानी

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नई दिल्ली। आज पूरे देश में रामनवमी का त्यौहार बड़ी धूम धाम से मनाया जा रहा है। पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक इस दिन भगवान राम का जन्म हुआ था। जो विष्णु का सातवां अवतार थे। रामनवमी का त्यौहार चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी को मनाया जाता है। आइये जानते हैं इसके पीछे की पौराणिक कहानी।

पौराणिक कथाओं के मुताबिक भगवान राम ने भी मां दुर्गा की पूजा की थी, जिससे कि उन्हें युद्ध के समय विजय मिली थी। साथ ही माना जाता है इस दिन गोस्वामी तुलसीदास जी ने रामचरित मानस की रचना का आरंभ किया। राम नवमी का व्रत जो भी करता है वह व्यक्ति पापों से मुक्त होता है और साथ ही उसे शुभ फल प्रदान होता है

रामनवमी का इतिहास-

महाकाव्य रामायण के अनुसार अयोध्या के राजा दशरथ की तीन पत्नियां थी। कौशल्या, सुमित्रा और कैकयी। शादी को काफी समय बीत जाने के बाद भी राजा दशरथ के घर किसी बालक की किलकारी नहीं गूंजी थी। इसके उपचार के लिए ऋषि वशिष्ट ने राजा दशरथ से पुत्र प्राप्ति के लिए कमेश्टी यज्ञ कराने के लिए कहा। जिसे सुनकर दशरथ खुश हो गए और उन्होंने महर्षि रुशया शरुंगा से यज्ञ करने की विन्नती की। महर्षि ने दशरथ की विन्नती स्वीकार कर ली। यज्ञ के दौरान महर्षि ने तीनों रानियों को प्रसाद के रूप में खाने के लिए खीर दी। इसके कुछ दिनों बाद ही तीनों रानियां गर्भवती हो गईं।

नौ माह बाद चैत्र मास में राजा दशरथ की बड़ी रानी कौशल्या ने भगवान राम को जन्म दिया, कैकयी ने भरत को और सुमित्रा ने दो जुड़वा बच्चे लक्ष्मण और शत्रुघन को जन्म दिया। भगवान विष्णु ने श्री राम के रूप में धरती पर जन्म इसलिए लिया ताकि वे दुष्ट प्राणियों का नरसंहार कर सके।

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