आध्यात्म
पति-पत्नी के प्रेम का पर्व करवा चौथ आज, 46 साल बाद बन रहा ऐसा संयोग
नई दिल्ली। पति-पत्नी के समर्पण, त्याग और प्रेम का पर्व करवा चौथ (karwa chauth) आज गुरुवार, 13 अक्टूबर को है। इस ग्रह का ऐसा संयोग 46 साल बाद बन रहा है। करवा चौथ (karwa chauth) का व्रत सुबह सूर्योदय से शुरू होता है और शाम को चांद निकलने तक रखा जाता है। शाम को चंद्रमा के दर्शन करके अर्घ्य अर्पित करने के बाद पति के हाथ से पानी पीकर महिलाएं अपना व्रत खोलती हैं। इस दिन चतुर्थी माता और गणेशजी की भी पूजा की जाती है। अखंड सुहाग के लिए महिलाएं सुबह से व्रत रखेंगी।
रात में चांद की पूजा करने के बाद ये व्रत पूरा हो जाएगा। खास बात ये है कि इस साल गुरु ग्रह खुद की राशि में है और ये व्रत गुरुवार को ही है। ये शुभ संयोग 1975 के बाद बना है। आज चंद्रमा अपने ही नक्षत्र में रहेगा। करवा चौथ पर रोहिणी नक्षत्र में मौजूद चंद्रमा की पूजा करना शुभ संयोग है।
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भविष्य पुराण की कथा के मुताबिक चंद्रमा को गणेश जी ने श्राप दिया था। इस कारण चतुर्थी पर चंद्रमा को देखने से दोष लगता है। इससे बचने के लिए चांद को सीधे नहीं देखते और छलनी का इस्तेमाल किया जाता है।
जो महिलाएं ये व्रत कर रही हैं, वे शाम को चंद्र उदय के बाद चौथ माता की पूजा करेंगी। पूजा में करवा चौथ की कथा अनिवार्य रूप से पढ़ी-सुनी जाती है। चंद्र उदय के बाद चंद्र देव को अर्घ्य अर्पित करें। पूजा करें। ऊँ सों सोमाय नम: मंत्र का जप करें। गुरुवार को भगवान विष्णु की पूजा करने की परंपरा है। इस दिन विष्णु जी के साथ ही देवी लक्ष्मी का अभिषेक करें। तुलसी के साथ मिठाई का भोग लगाएं।
धूप-दीप जलाकर आरती करें। ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय मंत्र का जप करें। गुरु ग्रह की पूजा शिवलिंग रूप में की जाती है। इस दिन शिवलिंग पर पीले फूल चढ़ाएं। चंदन से तिलक करें। चने की दाल चढ़ाएं। बेसन के लड्डू का भोग लगाएं। करवा चौथ पर जरूरतमंद सुहागिन को सुहाग का सामान जैसे लाल साड़ी, लाल चूड़ियां, कुमकुम आदि चीजों का दान जरूर करें।
ज्योतिषाचार्य बताते हैं कि इस बार करवा चौथ (karwa chauth) पर चंद्रमा और बुध उच्च राशि में होंगे। गुरु-शनि अपनी ही राशियों में और मंगल खुद के नक्षत्र में होगा। इन पांच ग्रहों की शुभ स्थिति के साथ बुधादित्य और महालक्ष्मी योग भी रहेगा। सितारों की इस स्थिति से पूजा और व्रत का शुभ फल और बढ़ जाएगा।
देहरादून समेत करीबन सभी जगह 8 बजे चाद का समय है, देश के कई हिस्सों में भौगोलिक स्थिति या मौसम की खराबी के चलते चंद्रमा दिखाई नहीं देता। ऐसे में ज्योतिषीय गणना की मदद से चांद के दिखने का समय निकाला जाता है। उस हिसाब से पूर्व-उत्तर दिशा में पूजा कर के अर्घ्य देना चाहिए। इससे दोष नहीं लगता।
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आध्यात्म
आज पूरा देश मना रहा रामनवमी, जानिए इसके पीछे की पूरी पौराणिक कहानी
नई दिल्ली। आज पूरे देश में रामनवमी का त्यौहार बड़ी धूम धाम से मनाया जा रहा है। पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक इस दिन भगवान राम का जन्म हुआ था। जो विष्णु का सातवां अवतार थे। रामनवमी का त्यौहार चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी को मनाया जाता है। आइये जानते हैं इसके पीछे की पौराणिक कहानी।
पौराणिक कथाओं के मुताबिक भगवान राम ने भी मां दुर्गा की पूजा की थी, जिससे कि उन्हें युद्ध के समय विजय मिली थी। साथ ही माना जाता है इस दिन गोस्वामी तुलसीदास जी ने रामचरित मानस की रचना का आरंभ किया। राम नवमी का व्रत जो भी करता है वह व्यक्ति पापों से मुक्त होता है और साथ ही उसे शुभ फल प्रदान होता है
रामनवमी का इतिहास-
महाकाव्य रामायण के अनुसार अयोध्या के राजा दशरथ की तीन पत्नियां थी। कौशल्या, सुमित्रा और कैकयी। शादी को काफी समय बीत जाने के बाद भी राजा दशरथ के घर किसी बालक की किलकारी नहीं गूंजी थी। इसके उपचार के लिए ऋषि वशिष्ट ने राजा दशरथ से पुत्र प्राप्ति के लिए कमेश्टी यज्ञ कराने के लिए कहा। जिसे सुनकर दशरथ खुश हो गए और उन्होंने महर्षि रुशया शरुंगा से यज्ञ करने की विन्नती की। महर्षि ने दशरथ की विन्नती स्वीकार कर ली। यज्ञ के दौरान महर्षि ने तीनों रानियों को प्रसाद के रूप में खाने के लिए खीर दी। इसके कुछ दिनों बाद ही तीनों रानियां गर्भवती हो गईं।
नौ माह बाद चैत्र मास में राजा दशरथ की बड़ी रानी कौशल्या ने भगवान राम को जन्म दिया, कैकयी ने भरत को और सुमित्रा ने दो जुड़वा बच्चे लक्ष्मण और शत्रुघन को जन्म दिया। भगवान विष्णु ने श्री राम के रूप में धरती पर जन्म इसलिए लिया ताकि वे दुष्ट प्राणियों का नरसंहार कर सके।
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