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हर तूफान में नायक बनकर उभरे येदियुरप्पा, जानिए कैसा रहा सियासी सफर
कर्नाटक में भाजपा की ओर से मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार बीएस येदियुरप्पा ने विधानसभा चुनाव 2018 में कमल को खिलाने का दारोमदार अपने कंधों पर उठा रखा है। बीजेपी के लिए वह कितने महत्वपूर्ण हैं, इसका अंदाजा इसी बात से लग जाता है कि भाजपा ने उनके लिए सारा सियासी गणित ही बदल डाला। पिछले लोकसभा चुनाव के बाद हुए ज्यादातर राज्यों में विधानसभा चुनाव भाजपा ने पीएम मोदी को चेहरा बनाकर लड़े और जीतने के बाद सीएम की कुर्सी को लिए नेता का चुनाव हुआ लेकिन कर्नाटक चुनाव इसका अपवाद है।
कर्नाटक की राजनीति में बुकंकरे सिद्दालिंगप्पा येदियुरप्पा बड़ा चेहरा हैं। यही वजह है कि बीजेपी ने उनके नाम की घोषणा मुख्यमंत्री पद के दावेदार को रूप में की है। येदियुरप्पा ने साल 2008 के बाद राज्य में दूसरी बार कमल खिलाने के लिए जमकर मेहनत भी की है। येदियुरप्पा अपनी पुरानी परंपरागत शिकारीपुरा विधानसभा सीट से चुनाव लड़ रहे हैं। ये लिंगायत बहुल सीट मानी जाती है। येदियुरप्पा खुद लिंगायत समुदाय से आते हैं।
27 फरवरी 1943 को जन्मे येदियुरप्पा ने जमीनी स्तर से अपने राजनीतिक सफर की शुरुआत की थी। जनसंघ से जुड़े रहने के दौरान उनकी छवि एक किसान नेता की रही है। 1977 में वह जनता पार्टी के सचिव के रूप में कार्यरत रहे और 1988 में भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष के रूप में कमान संभाली। इमरजेंसी के दौरान वह जेल में भी रहे। येदियुरप्पा भारतीय जनता पार्टी की ओर से दक्षिण में कमल खिलाने वाले पहले नेता हैं।
सात दिन के लिए बने सीएम
साल 2007 में कर्नाटक में राजनीतिक उलटफेर हुए और वहां राष्ट्रपति शासन लग गया। ऐसे में जेडीएस और बीजेपी ने अपने मतभेद दूर किए और मिलकर सरकार बनाई। येदियुरप्पा के लिए यह लकी साबित हुआ और 12 नवंबर 2007 को वह राज्य के मुख्यमंत्री बने। हालांकि, वह ज्यादा दिन तक इस कुर्सी पर बने नहीं रह पाए और जेडीएस से मंत्रालयों के प्रभार को लेकर हुए विवाद के बाद सात दिन बाद ही 19 नवंबर 2007 को ही उन्हें इस्तीफा देना पड़ा।
वर्ष 2008 में 224 सदस्यीय विधानसभा में बीजेपी बहुमत हासिल करने में सफल रही थी। इस बार फिर येदियुरप्पा बीजेपी के चेहरे के तौर पर सीएम बने, लेकिन तीन साल दो महीने का उनका कार्यकाल काफी विवादों में रहा। कथित भूमि घोटाले से लेकर खनन घोटाले तक में उनका नाम आता रहा, इस दौरान लोकायुक्त की रिपोर्ट आने के बाद उनकी कुर्सी चली गई। उन पर जमीन और अवैध खनन घोटाले के आरोप लगे थे। इसके बाद वह जेल गए और फिर रिहा हुए। इसके बाद उन्होंने बीजेपी से बगावत करके अपनी पार्टी का गठन किया। ऐसे में लगा कि वह पूरे लिंगायत फैक्टर के साथ अपने बल पर राजनीति करेंगे, लेकिन बीजेपी को यह समझते देर नहीं लगी कि येदियुरप्पा के बिना राज्य में उसका कोई जनाधार नही रह जाएगा।
मोदी के पीएम उम्मीदवार बनने के बाद जनवरी 2013 में उनकी दोबारा से भाजपा में कमबैक हआ। कई संकटों से उबरकर येदियुरप्पा ने खुद को पार्टी के अंदर राजनीतिक धुरंधर के रूप में साबित किया है। अब देखना है कर्नाटक में भाजपा का कमल खिलाने की येदियुरप्पा की कोशिश कितना रंग लाती है।
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भाजपा का परिवार आरक्षण ख़त्म करना चाहता है: अखिलेश यादव
एटा। समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष और यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने एटा में सपा प्रत्याशी देवेश शाक्य के समर्थन में संविधान बचाओ रैली को संबोधित किया। इस दौरान अखिलेश यादव ने कहा कि संविधान बचेगा तो लोकतंत्र बचेगा और लोकतंत्र बचेगा तो वोट देने का अधिकार बचेगा। अखिलेश यादव ने दावा किया कि ये अग्निवीर व्यवस्था जो लेकर आए हैं इंडिया गठबंधन की सरकार बनेगी तो अग्निवीर व्यवस्था समाप्त कर पहले वाली व्यवस्था लागू करेंगे।
उन्होंने आरक्षण मामले पर आरएसएस पर बिना नाम लिए निशाना साधते हुए कहा कि भाजपा के साथ एक सबसे खतरनाक परिवार है, जो आरक्षण खत्म करना चाहता है। अब उन्हें वोट चाहिए तो वह कह रहे हैं कि आरक्षण खत्म नहीं होगा।
उन्होंने आगे कहा कि मैं पूछना चाहता हूं अगर सरकार की बड़ी कंपनियां बिक जाएंगी तो क्या उनमें आरक्षण होगा? उनके पास जवाब नहीं है कि नौकरी क्यों नहीं दे रहे हैं? लोकसभा चुनाव संविधान मंथन का चुनाव है। एक तरफ वो लोग हैं जो संविधान को हटाना चाहते हैं। दूसरी तरफ इंडिया गठबंधन और समाजवादी लोग हैं जो संविधान को बचाना चाहते हैं। यह चुनाव आने वाली पीढ़ी के भविष्य का फैसला करेगा। वो लोग संविधान के भक्षक हैं और हम लोग रक्षक हैं।
अखिलेश यादव ने कहा कि एटा के लोगों को भाजपा ने बहुत धोखा दिया है। इनका हर वादा झूठा निकला। दस साल में एक लाख किसानों ने आत्महत्या की है। उनकी आय दोगुनी नहीं हुई। नौजवानों का भविष्य खत्म कर दिया गया है। हर परीक्षा का पेपर लीक हो रहा है।
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