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आध्यात्म

सुख-समृद्धि का अहोई अष्टमी व्रत कल, जानें पूजन का शुभ मुहूर्त

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Ahoi Ashtami

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कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि के दिन अहोई अष्टमी (Ahoi Ashtami) व्रत रखा जाता है। हिन्दू पंचांग के अनुसार इस वर्ष अहोई अष्टमी व्रत 17 अक्तूबर के दिन रखा जाएगा।

शास्त्रों में बताया गया है कि अहोई अष्टमी (Ahoi Ashtami) के दिन भगवान शिव और माता पार्वती की विधि-विधान से पूजा की जाती है और परिवार में सुख-समृद्धि की प्रार्थना की जाती है। इस दिन माताएं अपनी संतान के कुशल भविष्य के लिए निर्जला व्रत रखती हैं और तारा दिखने के बाद ही व्रत का पारण करती हैं।

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मान्यता है कि इस दिन निर्जला व्रत रखने से भगवान शिव और माता पार्वती प्रसन्न होती हैं और सुख समृद्धि का आशीर्वाद देते हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार यह व्रत माता अहोई की आरती के बिना पूर्ण नहीं होती है।

करवा चौथ के 4 दिन बाद अहोई अष्टमी का व्रत रखा जाता है। ज्योतिषाचार्य डा. सुशांतराज के अनुसार इस दिन सर्वार्थ सिद्धि योग भी बन रहा है। 17 अक्तूबर को सुबह 9 बजकर 29 मिनट से कार्तिक कृष्‍ण अष्‍टमी का आरंभ हो रहा है। अष्‍टमी तिथि का समापन 18 अक्तबर को सुबह 11 बजकर 57 मिनट पर होगा।

अहोई अष्‍टमी पूजा का शुभ मुहूर्त-

शाम 5:50 बजे से 7:05 बजे तक। तारों के दिखने का समय : शाम 6:13 बजे।

Ahoi Ashtami vrat, Ahoi Ashtami

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आध्यात्म

आज पूरा देश मना रहा रामनवमी, जानिए इसके पीछे की पूरी पौराणिक कहानी

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नई दिल्ली। आज पूरे देश में रामनवमी का त्यौहार बड़ी धूम धाम से मनाया जा रहा है। पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक इस दिन भगवान राम का जन्म हुआ था। जो विष्णु का सातवां अवतार थे। रामनवमी का त्यौहार चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी को मनाया जाता है। आइये जानते हैं इसके पीछे की पौराणिक कहानी।

पौराणिक कथाओं के मुताबिक भगवान राम ने भी मां दुर्गा की पूजा की थी, जिससे कि उन्हें युद्ध के समय विजय मिली थी। साथ ही माना जाता है इस दिन गोस्वामी तुलसीदास जी ने रामचरित मानस की रचना का आरंभ किया। राम नवमी का व्रत जो भी करता है वह व्यक्ति पापों से मुक्त होता है और साथ ही उसे शुभ फल प्रदान होता है

रामनवमी का इतिहास-

महाकाव्य रामायण के अनुसार अयोध्या के राजा दशरथ की तीन पत्नियां थी। कौशल्या, सुमित्रा और कैकयी। शादी को काफी समय बीत जाने के बाद भी राजा दशरथ के घर किसी बालक की किलकारी नहीं गूंजी थी। इसके उपचार के लिए ऋषि वशिष्ट ने राजा दशरथ से पुत्र प्राप्ति के लिए कमेश्टी यज्ञ कराने के लिए कहा। जिसे सुनकर दशरथ खुश हो गए और उन्होंने महर्षि रुशया शरुंगा से यज्ञ करने की विन्नती की। महर्षि ने दशरथ की विन्नती स्वीकार कर ली। यज्ञ के दौरान महर्षि ने तीनों रानियों को प्रसाद के रूप में खाने के लिए खीर दी। इसके कुछ दिनों बाद ही तीनों रानियां गर्भवती हो गईं।

नौ माह बाद चैत्र मास में राजा दशरथ की बड़ी रानी कौशल्या ने भगवान राम को जन्म दिया, कैकयी ने भरत को और सुमित्रा ने दो जुड़वा बच्चे लक्ष्मण और शत्रुघन को जन्म दिया। भगवान विष्णु ने श्री राम के रूप में धरती पर जन्म इसलिए लिया ताकि वे दुष्ट प्राणियों का नरसंहार कर सके।

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