आध्यात्म
नागा साधुओं के मरने के बाद उनके शव के साथ किया जाता है ऐसा काम, जानकर रह जाएंगे हैरान!
नई दिल्ली। नागा साधुओं का जीवन बहुत ही रहस्यमयी होती है, यही वजह है कि लोग इनसे जुड़ी बातों को जानने में खासी दिलचस्पी रखते हैं।
लोग ये जानने के लिए अक्सर उत्साहित रहते हैं कि ये नागा साधू कहाँ से आते है और कहाँ जाते है? नागसाधु आम आदमी से बिल्कुल अलग होते हैं, इनका रहन-सहन खान-पान सब आम लोग की जिंदगी से भिन्न है।
आजकल प्रयागराज में नागसाधुओं का हुजूम सा उमड़ा हुआ है। आज हम नागा साधुओं के एक ऐसे राज से पर्दा उठाने जा रहे हैं जिसे जानकर आपकी रुह कांप जाएगी। बहुत कम ही लोगों को यह पता होता है कि नागा साधुओं के मरने के बाद उनके शव के साथ क्या किया जाता है।
हिन्दू मान्यता के अनुसार आमतौर पर मृत्यु के बाद शरीर को जलाया जाता है, क्योंकि माना जाता है कि मानव शरीर पंच (पांच) तत्वों से बना है और शरीर को उसी में विलीन करने के परंपरा है,किन्तु नागा साधुओ के शरीर को जलाया नहीं जाता, बल्कि उनकी मृत्यु के बाद उन्हें भू-समाधि देकर उनका अंतिम संस्कार किया जाता है।
नागा साधुओं को पहले जल समाधि दी जाती थी, लेकिन वर्तमान में नदियों का जल प्रदूषित होने के कारण अब उन्हें भू समाधि दी जाती है। नागा साधुओं को सिद्ध योग की मुद्रा में बैठाकर भू-समाधि दी जाती है।
आध्यात्म
आज पूरा देश मना रहा रामनवमी, जानिए इसके पीछे की पूरी पौराणिक कहानी
नई दिल्ली। आज पूरे देश में रामनवमी का त्यौहार बड़ी धूम धाम से मनाया जा रहा है। पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक इस दिन भगवान राम का जन्म हुआ था। जो विष्णु का सातवां अवतार थे। रामनवमी का त्यौहार चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी को मनाया जाता है। आइये जानते हैं इसके पीछे की पौराणिक कहानी।
पौराणिक कथाओं के मुताबिक भगवान राम ने भी मां दुर्गा की पूजा की थी, जिससे कि उन्हें युद्ध के समय विजय मिली थी। साथ ही माना जाता है इस दिन गोस्वामी तुलसीदास जी ने रामचरित मानस की रचना का आरंभ किया। राम नवमी का व्रत जो भी करता है वह व्यक्ति पापों से मुक्त होता है और साथ ही उसे शुभ फल प्रदान होता है
रामनवमी का इतिहास-
महाकाव्य रामायण के अनुसार अयोध्या के राजा दशरथ की तीन पत्नियां थी। कौशल्या, सुमित्रा और कैकयी। शादी को काफी समय बीत जाने के बाद भी राजा दशरथ के घर किसी बालक की किलकारी नहीं गूंजी थी। इसके उपचार के लिए ऋषि वशिष्ट ने राजा दशरथ से पुत्र प्राप्ति के लिए कमेश्टी यज्ञ कराने के लिए कहा। जिसे सुनकर दशरथ खुश हो गए और उन्होंने महर्षि रुशया शरुंगा से यज्ञ करने की विन्नती की। महर्षि ने दशरथ की विन्नती स्वीकार कर ली। यज्ञ के दौरान महर्षि ने तीनों रानियों को प्रसाद के रूप में खाने के लिए खीर दी। इसके कुछ दिनों बाद ही तीनों रानियां गर्भवती हो गईं।
नौ माह बाद चैत्र मास में राजा दशरथ की बड़ी रानी कौशल्या ने भगवान राम को जन्म दिया, कैकयी ने भरत को और सुमित्रा ने दो जुड़वा बच्चे लक्ष्मण और शत्रुघन को जन्म दिया। भगवान विष्णु ने श्री राम के रूप में धरती पर जन्म इसलिए लिया ताकि वे दुष्ट प्राणियों का नरसंहार कर सके।
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