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1965 जंग : दुश्मन पर 3 दिन में भारी थी वायुसेना : अर्जन सिंह

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प्रियंका

नई दिल्ली। अर्जन सिंह भारतीय वायुसेना के ऐसे एकमात्र अफसर हैं, जिन्हें फील्ड मार्शल के समकक्ष पांच सितारा रैंक पर प्रोन्नत किया गया था। पाकिस्तान के साथ 1965 की जंग में भारतीय वायुसेना का नेतृत्व कर चुके अर्जन सिंह का कहना है कि अगर संयुक्त राष्ट्र बीच में न आ गया होता और अगर जंग कुछ दिन और खिंच जाती तो फिर भारत जीत निर्णायक हुई होती।

सिंह का जन्म लायलपुर (अब फैसलाबाद, पाकिस्तान) में हुआ था। उन्होंने 1 अगस्त, 1964 से 15 जुलाई, 1969 तक चीफ ऑफ एयर स्टाफ का पद संभाला था। 1965 में उन्हें पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया था। 96 साल के अर्जन सिंह ने ई-मेल साक्षात्कार के जरिए 1965 की जंग की यादें ताजा कीं। पेश है इसके कुछ अंश :

सवाल : क्या आपको लगता है कि 1965 के युद्ध में भारतीय वायुसेना पाकिस्तानी वायुसेना पर भारी पड़ी थी?
जवाब : हमारे पठानकोट और कलईकुंडा के अड्डों पर पाकिस्तान के हमलों में हमें शुरुआती नुकसान हुआ था। तत्कालीन रक्षामंत्री हमारे महान मराठा नेता यशवंतराव चव्हाण ने भारतीय वायुसेना को हवाई हमले की हरी झंडी दे दी। हमने जल्द ही सैन्य कार्रवाई में संतुलन हासिल कर लिया और तीन दिन के अंदर उन पर (पाकिस्तान पर) पूरी तरह से अपनी हवाई श्रेष्ठता साबित कर दी। पठानकोट, अंबाला और आदमपुर के लड़ाकू विमान पाकिस्तान के प्रमुख हवाई ठिकानों जैसे सरगोधा, पेशावर, कोहाट आदि पर धावा बोलने में सफल रहे। इन हमलों को ऐसे अंजाम दिया गया था कि हमारे विमान कश्मीर घाटी में उड़ते थे और ये पाकिस्तानी रडार से बचने के लिए कवर का काम करते थे।
हम पाकिस्तान के लगभग सभी शहरों में आपूर्ति व्यवस्था को ध्वस्त करने और महत्वपूर्ण ठिकानों को तबाह करने में कामयाब रहे। हमारी जानकारी के मुताबिक उन्होंने अपने विमानों को अफगानिस्तान के जाहिदान नामक सुरक्षित ठिकाने पर भेज दिया था।

सवाल : भारत और पाकिस्तान, दोनों युद्ध जीतने के दावे करते हैं। आपको क्यों लगता है कि हम जीते थे?
जवाब : पाकिस्तान राजनैतिक वजहों से 1965 की जंग जीतने का दावा करता है। मेरा मानना है कि जंग एक तरह के गतिरोध में समाप्त हुई थी। हम मजबूत स्थिति में थे। जंग अगर कुछ दिन और जारी रही होती तो हमें निर्णायक रूप से जीत मिल जाती। मैंने तत्कालीन प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री को युद्धविराम पर राजी नहीं होने की सलाह दी थी। लेकिन, मुझे लगता है कि वह संयुक्त राष्ट्र और कुछ अन्य देशों के दबाव में थे। शास्त्री किसी भी रूप में कमजोर इंसान नहीं थे। वह एक मजबूत इंसान थे और स्पष्ट फैसले लेते थे। दरअसल वह शांति में विश्वास रखते थे और नहीं चाहते थे कि किसी भी देश की अवाम को जंग की वजह से तकलीफ हो। उन्होंने एक ही निर्देश दिया था-कोशिश करना कि नागरिकों को चोट न पहुंचे।

सवाल : क्या यह कहना सही होगा कि 65 की जंग में पहली बार भारतीय वायुसेना और पाकिस्तानी वायुसेना का आमना-सामना हुआ? उस वक्त के हिसाब से आप पाकिस्तान के मुकाबले भारत की तैयारी को कैसा पाते हैं?
जवाब : पाकिस्तान के पास गुणात्मक और तकनीकी रूप से अधिक उन्नत सैबर और स्टारफाइटर जैसे विमान थे। हमारे पास नैट, हंटर, वैंपायर जैसे विमान थे। पाकिस्तान को अमेरिका का जबर्दस्त समर्थन हासिल था। उनके पास अत्याधुनिक राडार थे। मुझे लगता है कि वे अति-आत्मविश्वास का शिकार हो गए, क्योंकि उन्हें लगा कि भारतीय वायुसेना ने जैसे 1962 के चीन युद्ध में हिस्सा नहीं लिया था, उसी तरह इस बार भी नहीं लेगी। लेकिन, जिस समय से जंग में भारतीय वायुसेना उतरी, पलड़ा हमारा भारी होने लगा। इससे साफ है कि वायुसेना दुश्मन के किसी भी दुस्साहस का समाना करने के लिए तैयार थी।

सवाल : जंग के दौरान राजनेताओं से आप अपने संवाद को किस रूप में याद करते हैं? क्या किसी भी मौके पर भारतीय वायुसेना और देश के राजनैतिक नेतृत्व में कोई असहमति पैदा हुई थी और अगर हुई थी तो फिर इसका समाधान कैसे निकला था?
जवाब : मैं आपसे बता रहा हूं कि पाकिस्तान अखनूर सेक्टर में हमला कर जम्मू एवं कश्मीर को देश से काट देना चाहता था। जरनल जे.एन.चौधरी मेरे दफ्तर वायुसेना भवन आए और मुझसे कहा कि अगर भारतीय वायुसेना जंग में नहीं उतरेगी तो पाकिस्तान को चंबा-जौरियन सेक्टर में रोकना बहुत मुश्किल हो जाएगा। मैंने उनसे कहा कि भारतीय वायुसेना के शामिल होने के साथ ही यह लड़ाई पूरी तरह से युद्ध में बदल जाएगी। इसके बाद हम तत्कालीन रक्षामंत्री चव्हाण से मिलने गए। उन्होंने हमसे पूछा कि क्या भारतीय वायुसेना तैयार है। मैंने तुरंत कहा-हां। अगले ही मिनट उन्होंने फैसला लिया कि हवाई हमले किए जाएं। 1965 में इस निर्णायक नेतृत्व ने पाकिस्तान पर बढ़त लेने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।

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जेपी नड्डा का ममता पर हमला, कहा- संदेशखाली में जनता की रक्षा के लिए एनएसजी कमांडो को भी उतरना पड़ा

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नई दिल्‍ली। भाजपा के राष्‍ट्रीय अध्‍यक्ष जेपी नड्डा ने मुख्‍यमंत्री ममता बनर्जी पर तगड़ा हमला बोला है। उन्‍होंने कहा कि ममता दीदी ने बंगाल को क्‍या बना दिया है। जेपी नड्डा ने कहा कि संदेशखाली, ममता बनर्जी की निर्ममता और बर्बरता का संदेश चीख-चीख कर दे रहा है। ममता दीदी ने बंगाल को क्या बना दिया है? जहां रवींद्र संगीत गूंजना चाहिए था, वहां बम-पिस्तौल मिल रहे हैं।

संदेशखाली में जनता की रक्षा के लिए एनएसजी कमांडो को भी उतरना पड़ा। इसी से समझ सकते हैं कि पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी की सरकार ने किस तरह अराजकता फैला रखी है। मैं बंगाल के सभी भाजपा कार्यकर्ताओं और जनता से अपील करता हूं कि आप सभी संदेशखाली पर ममता बनर्जी से जवाब मांगे।

प्रधानमंत्री मोदी ने संदेशखाली की पीड़िता को पार्टी का टिकट देकर भाजपा महिला सशक्तिकरण के संदेश को मजबूती दी है। इसके साथ ही पीएम मोदी ने ममता बनर्जी को जवाब दिया है कि ये महिलाएं अकेली नहीं है उनके साथ पूरा समाज, पूरा देश खड़ा है। संदेशखाली में महिलाओं की इज्जत-आबरू और उनकी जमीनें बचाने के लिए वहां गई जांच एजेंसियों के अधिकारियों पर भी घातक हमला किया गया।

जेपी नड्डा ने आगे कहा, “मैं आज समाचार पढ़ रहा था कि संदेशखाली में तलाशी के दौरान सीबीआई ने तीन विदेशी रिवॉल्वर, पुलिस द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली एक रिवॉल्वर, बंदूकें, कई गोलियां और कारतूस बरामद किए हैं।” इसी से समझा जा सकता है कि ममता सरकार ने राज्य में किस तरह अराजकता फैला रखी है। उन्होंने पूछा कि क्या ममता बनर्जी जनता को डराकर, उनकी जान लेकर चुनाव जीतेंगी। क्या नेताजी सुभाष चंद्र बोस, रवीन्द्रनाथ टैगोर, स्वामी विवेकानंद और महर्षि अरबिंदो जैसे मनीषियों ने ऐसे बंगाल की कल्पना की थी।

संदेशखाली में जनता की रक्षा के लिए एनएसजी कमांडो को भी उतरना पड़ा। ममता दीदी, यदि आपको ऐसा लगता है कि आप ऐसा करके चुनाव जीत जाएंगी तो ये आपकी भूल है। जनता आपको इसका करारा जवाब देगी। उन्होंने कहा कि हमने देखा कि ममता सरकार में तृणमूल कांग्रेस के शाहजहां शेख जैसे असामाजिक तत्व संदेशखाली में महिलाओं के अस्तित्व पर खतरा बने हुए हैं। महिलाओं के साथ जिस तरह का सलूक हो रहा है वह सच में बहुत ही संवेदनशील और कष्टदायी है।

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