आध्यात्म
महानवमी स्पेशल: ऐसे करें मां दुर्गा के नौवें स्वरूप देवी सिद्धिदात्री की पूजा
आज नवरात्र का नौंवा दिन है। इस दिन हम माँ दुर्गा के नौवें स्वरूप यानी की देवी सिद्धिदात्री की पूजा और हवन करते है। यह दिन महानवमी के नाम से जाना जाता है। महानवमी में माँ दुर्गा की विशिष्ट पूजा का प्रावधान है।
पूजा की विधियां-
महानवमी में पूजा और हवन का शुभ समय सुबह 6. 56 मिनट शुरू होकर दोपहर के 1 बजकर 19 मिनट तक का होता है।
माना जा रहा है कि अगर इस शुभ समय में भक्त हवन पूजा के साथ साथ कन्या पूजन भी करें तो श्रेष्ठ होगा।
नवमी के दिन मां सिद्धिदात्री की स्तुति के लिए माँ दुर्गा के सभी मंत्रो का जाप करें। इससे रिद्धि सिद्धि की प्राप्ति होती है। और सभी क्लेश दूर होते है।
कौन हैं मां सिद्धिदात्री-
कहते हैं कि नवरात्रि के अंतिम दिन यानी महानवमी को मां को नौवें स्वरूप में मां सिद्धिदात्री की पूजा जाती हैं। आदि शक्ति मां भगवती का नौंवा और सबसे शक्तिशाली रूप ही सिद्धिदात्री है।
मां के स्वरूप का वर्णन करें तो सिद्धिदात्री मां की चार भुजाएं हैं। वो कमल के आसन पर विराजमान होती हैं। उनके दाईं तऱप नीचे वाले हाथ में चक्र स्थापित है, ऊपर वाले हाथ में गदा रखी है, बाईं ओर से नीचे वाले हाथ में शंख पकड़ा है और ऊपर वाले हाथ में कमल का फूल है जो मां को बहुत प्रिय बताया जाता है।
आध्यात्म
आज पूरा देश मना रहा रामनवमी, जानिए इसके पीछे की पूरी पौराणिक कहानी
नई दिल्ली। आज पूरे देश में रामनवमी का त्यौहार बड़ी धूम धाम से मनाया जा रहा है। पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक इस दिन भगवान राम का जन्म हुआ था। जो विष्णु का सातवां अवतार थे। रामनवमी का त्यौहार चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी को मनाया जाता है। आइये जानते हैं इसके पीछे की पौराणिक कहानी।
पौराणिक कथाओं के मुताबिक भगवान राम ने भी मां दुर्गा की पूजा की थी, जिससे कि उन्हें युद्ध के समय विजय मिली थी। साथ ही माना जाता है इस दिन गोस्वामी तुलसीदास जी ने रामचरित मानस की रचना का आरंभ किया। राम नवमी का व्रत जो भी करता है वह व्यक्ति पापों से मुक्त होता है और साथ ही उसे शुभ फल प्रदान होता है
रामनवमी का इतिहास-
महाकाव्य रामायण के अनुसार अयोध्या के राजा दशरथ की तीन पत्नियां थी। कौशल्या, सुमित्रा और कैकयी। शादी को काफी समय बीत जाने के बाद भी राजा दशरथ के घर किसी बालक की किलकारी नहीं गूंजी थी। इसके उपचार के लिए ऋषि वशिष्ट ने राजा दशरथ से पुत्र प्राप्ति के लिए कमेश्टी यज्ञ कराने के लिए कहा। जिसे सुनकर दशरथ खुश हो गए और उन्होंने महर्षि रुशया शरुंगा से यज्ञ करने की विन्नती की। महर्षि ने दशरथ की विन्नती स्वीकार कर ली। यज्ञ के दौरान महर्षि ने तीनों रानियों को प्रसाद के रूप में खाने के लिए खीर दी। इसके कुछ दिनों बाद ही तीनों रानियां गर्भवती हो गईं।
नौ माह बाद चैत्र मास में राजा दशरथ की बड़ी रानी कौशल्या ने भगवान राम को जन्म दिया, कैकयी ने भरत को और सुमित्रा ने दो जुड़वा बच्चे लक्ष्मण और शत्रुघन को जन्म दिया। भगवान विष्णु ने श्री राम के रूप में धरती पर जन्म इसलिए लिया ताकि वे दुष्ट प्राणियों का नरसंहार कर सके।
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