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हंगामे में हिट तो किताब है फिट!

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आपके पास सुनाने के लिए ढेर सारे किस्से हों और सुनने वाला कोई न हो तो आप क्या करेंगे? आप राजनीति में रहे हों या किसी सरकारी महकमे में उच्च पद से रिटायर हो चुके हों और हाशिए पर ढकेले जा चुके हों। ऐसी स्थिति में यदि आपको चर्चित होना है और पूरे देश में अपना डंका बजवाने का लक्ष्य हो तो सबसे आसान रास्ता क्या है? इसका सीधा सा जवाब है आप एक किताब लिखें और पूर्व के किसी बेहद चर्चित घटनाक्रम का जिक्र कर दें। कई बार राजनीति की सिरमौर हस्तियों पर निशाना साधें तो कई बार दुनिया के सबसे बड़े डॉन को अपनी किस्सागोई का माध्यम बना लें। लेकिन हर बार एक ही चीज कॉमन रहेगी कि उन किताबों में बताए गए किस्सों में दसियों साल पहले की घटनाओं का जिक्र होगा। उसके बाद पुरानी फाइलों व घटनाओं का विश्लेषण तेज हो जाएगा और आपका नाम भी तेजी से पूरी दुनिया की जुबान पर चढ़ जाएगा। भले ही पद पर रहते हुए आपको कोई न जानता रहा हो लेकिन अब आपको पूरी दुनिया जानेगी। किताब भी जबरदस्त चर्चित हो जाएगी और बाद में खूब बिकेगी भी। ऑल टाइम हिट फार्मूले पर देश में एक बार फिर अमल हो रहा है।

सीबीआई के तत्कालीन डीआईजी और दिल्ली के पूर्व कमिश्नर नीरज कुमार का दावा है कि देश के मोस्टवांटेड और 1993 के मुंबई सीरियल धमाकों में वांछित अंडरवर्ल्ड डॉन दाऊद इब्राहिम ने सरेंडर करने का फैसला कर लिया था। मगर सीबीआई के शीर्ष अफसरों ने ऐसा करने से रोक दिया। नीरज कुमार का दावा है कि जून 1994 में उनकी दाऊद से सरेंडर को लेकर तीन बार बात हुई। कुमार तब इस मामले की जांच कर रहे थे। उनका यह भी कहना है कि दाउद हर आरोप का जवाब देने को तैयार था। मगर उसे चिंता थी कि समर्पण के बाद भारत में उसके दुश्मन कहीं उसकी हत्या न कर दें।

अब जरा यह खुलासा करने वाले नीरज कुमार के बारे में भी कुछ बातें जान लें। नीरज कुमार अंडरवर्ल्ड के मामलों के स्पेशलिस्ट माने जाते हैं। भारतीय पुलिस सेवा में अपने 37 साल के कार्यकाल के दौरान 10 शीर्ष तहकीकतों पर वह एक किताब लिख रहे हैं। इस किताब का एक अध्याय उनकी और अंडरवर्ल्ड डॉन दाऊद की बातचीत पर आधारित है। इस अध्याय का शीर्षक है ‘डायलॉग विद द डॉन’। यह किताब कुछ समय बाद आएगी। वैसे किताब अभी से हिट नजर आ रही है। किताब का ट्रेलर मीडिया में इतनी धमाकेदार एंट्री कर रहा है तो पूरी किताब के क्या कहने! वैसे मामले के सुर्खियां बनने के कुछ ही घंटों बाद नीरज कुमार अपनी बात से पलट गए और बोले कि उन्होंने कभी दाऊद के सरेंडर की बात की ही नहीं।

भारतीय राजनीति तो इस तरह के सनसनीखेज खुलासों का खजाना कही जा सकती है। पिछले साल चुनाव से ठीक पहले पूर्व पीएम मनमोहन सिंह के पहले कार्यकाल में उनके मीडिया सलाहकार रहे पत्रकार संजय बारू की किताब ‘दी एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर: मेकिंग एंड अनमेकिंग ऑफ मनमोहन सिंह’ आपको निश्चित ही याद होगी। इस किताब में बारू ने कहा था कि मनमोहन ने अपने दूसरे कार्यकाल में कांग्रेस प्रमुख सोनिया गांधी और सहयोगी दलों के समक्ष घुटने टेक दिए थे। इस किताब में किए गए खुलासों पर खासा हड़कम्प खड़ा हो गया था। पीएमओ को भी अपनी प्रतिक्रिया देनी पड़ी। पीएमओ ने उसे लफ्फाजी, झूठ का पुलिंदा और कपोल कल्पना करार दिया। कुल मिलाकर ये किताब बेहद सही समय (आम चुनाव का वक्त) पर किया गया करारा वार साबित हुई और बाद में चुनाव ने देश ने जो कुछ देखा, वह तो इतिहास रच गया।

थोड़ा और पीछे देंखे तो आपको पूर्व कांग्रेस नेता नटवर सिंह याद आएंगे। उन्होंने भी एक किताब ‘वन लाइफ़ इस नॉट एनफ’ में चौंका देने वाला खुलासा कि कि साल 2004 में अटल बिहारी वाजपेयी की हार के बाद सोनिया गांधी प्रधानमंत्री बनने से डर रही थीं। इसमें यह भी कहा गया कि राहुल गांधी ने अपनी मां को पीएम बनने से ज़ोरदार तरीके से रोका था क्योंकि उन्हें डर था कि वह भी उनकी दादी और पिता की तरह मारी जाएंगी। नटवर का दावा था कि इसके लिए राहुल ने सोनिया को अल्टीमेटम भी दिया और सोनिया के लिए एक मां के तौर पर राहुल को नजरअंदाज करना असंभव था। इसी वजह से वह प्रधानमंत्री नहीं बनीं। लेकिन कई सवालों के जवाब इस किताब में अनुत्तरित थे जैसे अगर कोई बेटा अपनी मां को सुरक्षित देखना चाहता है तो इसमें ग़लत क्या था? आखिर राहुल ने सोनिया को कौन सा अल्टीमेटम दिया? नटवर सिंह के पास आख़िर इस बात के क्या सबूत हैं कि इसी डर (अपनी अंतर्रात्मा की आवाज़ पर नहीं) से उन्होंने पीएम पद ठुकरा दिया? ये सारी बातें कोई नहीं जानता और नटवर अपने मुहावरों और लच्छेदार बातों में उन्हें छुपाने में सफल रहे। किताब हिट थी और नटवर अपने उद्देश्य में पूरी तरह सफल रहे। पू्र्व विदेश मंत्री नटवर सिंह के दावों के जबाव में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने भी कहा कि वह भी एक किताब लिखकर इसका जबाव देंगी। हालांकि वह समय अभी तक नहीं आया है।

साफ है कि पहला तो भारत के राजनीतिज्ञ बहुत कम आत्मकथाएं लिखते हैं और अगर लिखते भी हैं तो ऐसा बहुत कम होता है कि उन पर कुछ विवाद न उठ खड़ा हो। कभी-कभी तो जानबूझ कर पुस्तक के कुछ ऐसे अंशों को प्रकाशित किया जाता है जिससे हंगामा बरपे और किताब की बिक्री बढ़ जाए। तकनीकी क्रांति भी इसमें बेहद अहम रोल अदा करती है।

यह सच है कि किसी भी लेखक को कोई भी किताब लिखने और प्रकाशित करने का अधिकार है। लेखक से उसका यह अधिकार भी नहीं छीना जा सकता कि वह अपनी किताब कब लिखे और कब प्रकाशित कराए लेकिन राष्ट्रहित को प्रभावित करने वाले मुद्दों को उस वक्त क्यों उजागर नहीं किया जाता, जब उनकी प्रासंगिकता होती है। सालों बाद इन घटनाओं को उजागर करने से क्या फायदा? कौन नहीं जानता कि आज दाउद पाकिस्तान में है और भारत आने पर उसके साथ क्या सुलूक होगा? अगर राजनीति की बात की जाए तो सोनिया गांधी का पूरा ध्यान राहुल को राजनीति में पुरजोर तरीके से स्थापित करने में है। इसमें नया क्या है लेकिन कोई भी लेखक इसलिए किताब प्रकाशित नहीं करता कि उसे पढ़ा न जाए, उस पर चर्चा भी न हो। ऐसे में इन पब्लिसिटी स्टंट को बखूबी समझें और उन पर बस चर्चा करें। ये जाने लें इन घटनाओं का शायद ही किसी वास्तविक घटना या जीवन से संबंध होगा।

नेशनल

जेपी नड्डा का ममता पर हमला, कहा- संदेशखाली में जनता की रक्षा के लिए एनएसजी कमांडो को भी उतरना पड़ा

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नई दिल्‍ली। भाजपा के राष्‍ट्रीय अध्‍यक्ष जेपी नड्डा ने मुख्‍यमंत्री ममता बनर्जी पर तगड़ा हमला बोला है। उन्‍होंने कहा कि ममता दीदी ने बंगाल को क्‍या बना दिया है। जेपी नड्डा ने कहा कि संदेशखाली, ममता बनर्जी की निर्ममता और बर्बरता का संदेश चीख-चीख कर दे रहा है। ममता दीदी ने बंगाल को क्या बना दिया है? जहां रवींद्र संगीत गूंजना चाहिए था, वहां बम-पिस्तौल मिल रहे हैं।

संदेशखाली में जनता की रक्षा के लिए एनएसजी कमांडो को भी उतरना पड़ा। इसी से समझ सकते हैं कि पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी की सरकार ने किस तरह अराजकता फैला रखी है। मैं बंगाल के सभी भाजपा कार्यकर्ताओं और जनता से अपील करता हूं कि आप सभी संदेशखाली पर ममता बनर्जी से जवाब मांगे।

प्रधानमंत्री मोदी ने संदेशखाली की पीड़िता को पार्टी का टिकट देकर भाजपा महिला सशक्तिकरण के संदेश को मजबूती दी है। इसके साथ ही पीएम मोदी ने ममता बनर्जी को जवाब दिया है कि ये महिलाएं अकेली नहीं है उनके साथ पूरा समाज, पूरा देश खड़ा है। संदेशखाली में महिलाओं की इज्जत-आबरू और उनकी जमीनें बचाने के लिए वहां गई जांच एजेंसियों के अधिकारियों पर भी घातक हमला किया गया।

जेपी नड्डा ने आगे कहा, “मैं आज समाचार पढ़ रहा था कि संदेशखाली में तलाशी के दौरान सीबीआई ने तीन विदेशी रिवॉल्वर, पुलिस द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली एक रिवॉल्वर, बंदूकें, कई गोलियां और कारतूस बरामद किए हैं।” इसी से समझा जा सकता है कि ममता सरकार ने राज्य में किस तरह अराजकता फैला रखी है। उन्होंने पूछा कि क्या ममता बनर्जी जनता को डराकर, उनकी जान लेकर चुनाव जीतेंगी। क्या नेताजी सुभाष चंद्र बोस, रवीन्द्रनाथ टैगोर, स्वामी विवेकानंद और महर्षि अरबिंदो जैसे मनीषियों ने ऐसे बंगाल की कल्पना की थी।

संदेशखाली में जनता की रक्षा के लिए एनएसजी कमांडो को भी उतरना पड़ा। ममता दीदी, यदि आपको ऐसा लगता है कि आप ऐसा करके चुनाव जीत जाएंगी तो ये आपकी भूल है। जनता आपको इसका करारा जवाब देगी। उन्होंने कहा कि हमने देखा कि ममता सरकार में तृणमूल कांग्रेस के शाहजहां शेख जैसे असामाजिक तत्व संदेशखाली में महिलाओं के अस्तित्व पर खतरा बने हुए हैं। महिलाओं के साथ जिस तरह का सलूक हो रहा है वह सच में बहुत ही संवेदनशील और कष्टदायी है।

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