आध्यात्म
वृंदावन में जेकेपी ने हजारों ब्रजवासियों को कराया भोजन
मथुरा (वृंदावन)। श्यामा श्यामधाम में जगद्गुरु कृपालु परिषत् (जेकपी) की ओर से आज (गुरुवार) ब्रजवासियों की सेवा में विशाल भोज का भव्य आयोजन किया गया। समारोह में लगभग 5 हजार ब्रजवासियों को प्रसादस्वरूप भोजन कराया गया। इस अवसर पर लोगों को दान में ओढ़ने–बिछाने के कपड़े और दैनिक उपयोग की वस्तुओं का किट बैग आदि चीजें भी दी गईं।
जगद्गुरु कृपालु परिषत् की ओर से आयोजित विशाल भोज में पधारे अतिथियों का विधि विधान से स्वागत किया गया। उन्हें द्वार से ससम्मान प्रेम मंदिर प्रांगण ले जाया गया।
इस दौरान ब्रजवासियों के समूह के समूह, ‘लाड़ली लाल की जय, जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज की जय’ आदि के जयघोष लगाते हुए प्रांगण में प्रवेश कर रहे थे।
भोजन से पूर्व ब्रजवासियों के चरणों को निर्मल और सुगंधित जल से धोया गया। इसके बाद सभी को विशाल मण्डप में आयोजित भोज के लिए ले जाया गया। वहां उन्होंने प्रसाद स्वरूप भोजन ग्रहण किया।
मण्डप में नि:शक्तों और दिव्यांगों के लिए भी विशेष व्यवस्था की गई थी। ऐसे अतिथियो को व्हील चेयर पर बैठाकर कार्यक्रम स्थल तक ले जाया गया। उन्हें सम्मानपूर्वक भोजन करवाकर दैनिक उपयोग की अनेकानेक वस्तुएं दान-स्वरूप दी गईं। इनका विवरण निम्नवत है –
1.कम्बल 2. ओढ़ने व बिछाने के चादर 3. पीली शॉल 4. पीली जैकेट 5. पहनने के वस्त्र-लुंगी और कुर्ता 6. तौलिया 7. राधे नाम लिखित गमछा 8. नहाने और कपड़े धोने का साबुन 9. भोजन रखने का डिब्बा 10. डोलू 11. दैनिक उपयोगी वस्तुओं का किट बैग एवं 1 बड़ा बैग इत्यादि।
दानवीरों की भूमि रहा है भारत
भारत भूमि सदा से दानवीरों की भूमि रही है। यहाँ बड़े-बड़े दानी हुए हैं, जिन्होंने परोपकार के लिये अपना सर्वस्व त्याग कर दिया। गुरु के एक वाक्य पर राजा हरिश्चन्द्र ने अपना सर्वस्व दान कर दिया था। दधीचि ऋषि ने संसार के कल्याण के लिये अपनी अस्थियां तक दान में दे दी थीं। राजा शिवि ने अपनी शरण में आये हुए निरीह जीव की रक्षा करने के लिए अपने शरीर पर से माँस का अन्तिम टुकड़ा भी उतरवा दिया था।
श्री कृपालु जगद्गुरु जी महाराज ने सदैव निभायी दान परंपरा
सम्पूर्ण विश्व में सनातन वैदिक धर्म का परचम लहराकर घर-घर में श्रीराधाकृष्ण भक्ति का प्रचार करने वाले विश्व के पंचम मूल श्री कृपालु जगद्गुरु जी महाराज ने सनातन धर्म की इसी दान-परम्परा का निर्वाह किया। साथ ही समाज में दान-धर्म का एक नया आदर्श प्रस्तुत किया। श्री महाराज जी की ओर से स्थापित किए गए आदर्शों के क्रम में आज उनकी सुपुत्रियाँ और जगद्गुरु कृपालु परिषत् की अध्यक्षायें डॉ. विशाखा त्रिपाठी, डॉ. श्यामा त्रिपाठी एवं डॉ.कृष्णा त्रिपाठी समाज-सेवा के कार्यों में भलीभाँति संलग्न हैं। इनके नेतृत्व में जगद्गुरु कृपालु परिषत् वर्षभर में समाज-सेवा और दान आदि के ढेरों कार्यक्रम आयोजित करता हैं।
आध्यात्म
आज पूरा देश मना रहा रामनवमी, जानिए इसके पीछे की पूरी पौराणिक कहानी
नई दिल्ली। आज पूरे देश में रामनवमी का त्यौहार बड़ी धूम धाम से मनाया जा रहा है। पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक इस दिन भगवान राम का जन्म हुआ था। जो विष्णु का सातवां अवतार थे। रामनवमी का त्यौहार चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी को मनाया जाता है। आइये जानते हैं इसके पीछे की पौराणिक कहानी।
पौराणिक कथाओं के मुताबिक भगवान राम ने भी मां दुर्गा की पूजा की थी, जिससे कि उन्हें युद्ध के समय विजय मिली थी। साथ ही माना जाता है इस दिन गोस्वामी तुलसीदास जी ने रामचरित मानस की रचना का आरंभ किया। राम नवमी का व्रत जो भी करता है वह व्यक्ति पापों से मुक्त होता है और साथ ही उसे शुभ फल प्रदान होता है
रामनवमी का इतिहास-
महाकाव्य रामायण के अनुसार अयोध्या के राजा दशरथ की तीन पत्नियां थी। कौशल्या, सुमित्रा और कैकयी। शादी को काफी समय बीत जाने के बाद भी राजा दशरथ के घर किसी बालक की किलकारी नहीं गूंजी थी। इसके उपचार के लिए ऋषि वशिष्ट ने राजा दशरथ से पुत्र प्राप्ति के लिए कमेश्टी यज्ञ कराने के लिए कहा। जिसे सुनकर दशरथ खुश हो गए और उन्होंने महर्षि रुशया शरुंगा से यज्ञ करने की विन्नती की। महर्षि ने दशरथ की विन्नती स्वीकार कर ली। यज्ञ के दौरान महर्षि ने तीनों रानियों को प्रसाद के रूप में खाने के लिए खीर दी। इसके कुछ दिनों बाद ही तीनों रानियां गर्भवती हो गईं।
नौ माह बाद चैत्र मास में राजा दशरथ की बड़ी रानी कौशल्या ने भगवान राम को जन्म दिया, कैकयी ने भरत को और सुमित्रा ने दो जुड़वा बच्चे लक्ष्मण और शत्रुघन को जन्म दिया। भगवान विष्णु ने श्री राम के रूप में धरती पर जन्म इसलिए लिया ताकि वे दुष्ट प्राणियों का नरसंहार कर सके।
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