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राघोपुर में लालू के ‘तेज’ की ‘अग्निपरीक्षा’
मनोज पाठक
हाजीपुर | बिहार विधानसभा चुनाव में राजनीति के दिग्गज लालू प्रसाद अपनी राजनीतिक विरासत अपने दोनों बेटों को सौंपने की कोशिश में हैं। लालू के पुत्र क्रिकेटर तेजस्वी यादव राष्ट्रीय जनता दल (राजद) की परंपरागत सीट राघोपुर से पहली बार चुनावी दंगल में हाथ आजमा रहे हैं। यह सीट वैशाली जिले में पड़ती है। प्राचीन काल में वैशाली से ही लिच्छवी साम्राज्य ने गणतंत्र की बुनियाद रखी थी। यह दीगर बात है कि आज यह धरती लोकतंत्र में परिवारवाद को भी झेल रही है। लालू के दूसरे पुत्र तेज प्रताप इसी जिले के महुआ विधानसभा क्षेत्र से चुनाव मैदान में हैं।
गंगा और गंडक की गोद में बसे वैशाली जिले के राघोपुर विधानसभा क्षेत्र का प्रतिनिधित्व 15 वर्ष तक लालू प्रसाद और उनकी पत्नी राबड़ी देवी ने किया है, मगर राघोपुर की जनता आज भी समस्याओं के मकड़जाल में फंसी है। पिछले चुनाव में राबड़ी देवी यहां से चुनाव हार गई थीं।राघोपुर के दियारा क्षेत्र के लोगों के लिए सात महीने तक आवागमन का एकमात्र साधन नाव ही है। नाव से ही यहां के लोग पटना और हाजीपुर जाते हैं। हालत यह है कि यहां की नावों पर मोटरसाइकिल और ऑटो भी लदे मिल जाएंगे।
राघोपुर दियारा के अमन कहते हैं राघोपुर में कई चुनाव से सबसे बड़ा मुद्दा पुल रहा है और इस चुनाव में भी यही बड़ा मुद्दा है। पुल बनाने का वादा कर नेता यहां के वोट तो ले लेते हैं, लेकिन आज तक पुल नहीं बना। वे बताते हैं कि दिसंबर से जून तक राघोपुर दियारा को पटना की ओर से पीपा पुल से जोड़ा जाता है और इसी छह महीने के दौरान ही इस क्षेत्र में विवाह भी होते हैं।
सैदाबाद के रहने वाले रवींद्र राय कहते हैं कि यहां के छात्र-छात्राएं पटना के कॉलेजों में नामांकन तो करा लेते हैं, मगर आवागमन की सुविधा नहीं होने के कारण वे प्रतिदिन कॉलेज नहीं जा पाते। सप्ताह में एक दिन भी चले गए, तो बड़ी बात है। राघोपुर दियारा में कॉलेज नहीं है। राय कहते हैं यहां चुनाव के समय नेता तो तरह-तरह के वादे करते हैं। उनके वादे पर विश्वास किया जाए तो लगता है कि चुनाव के बाद राघोपुर में रामराज्य आने वाला है, मगर चुनाव समाप्त होते ही नेता वादे भूल जाते हैं।
राघोपुर में मिले राजद के एक कार्यकर्ता अनिल राय कहते हैं कि यह सीट नेता लालू की रही है और फिर से रहेगी। वे कहते हैं कि भाजपा को यहां कोई जानता तक नहीं। वे इशारों ही इशारों में कह गए कि राजद पूरे राज्य में जीत जाए, मगर राघोपुर में हार जाए तो यह राजद की हार होगी, महागठबंधन की नहीं।
पिछले चुनाव में सतीश कुमार ने अपने निकटवर्ती प्रतिद्वंदी राजद की राबड़ी देवी को 13 हजार से ज्यादा मतों के अंतर से हराकर बड़ा उलटफेर किया था, लेकिन इस चुनाव में निवर्तमान विधायक सतीश जद (यू) को छोड़कर भाजपा के टिकट पर चुनाव मैदान में हैं। करीब 3.15 लाख मतदाताओं वाले राघोपुर विधानसभा क्षेत्र में इस चुनाव में ऐसे तो कुल 20 प्रत्याशी चुनाव मैदान में हैं, लेकिन मुख्य मुकाबला सत्ताधारी महागठबंधन की ओर से राजद के नेता तेजस्वी यादव और राजग की तरफ से सतीश के बीच मानी जा रही है। जानकार कहते हैं कि यादव बहुल राघोपुर में किसी भी उम्मीदवार को जीतने के लिए जातीय समीकरण मजबूत करना ही मूलमंत्र है।
हाजीपुर के बी़ एम़ बी़ कॉलेज के प्रोफेसर प्रकाश कुमार कहते हैं कि राजद के परंपरागत वोट बैंक मुसलमान और यादव मतदाता रहे हैं। यह समीकरण यहां काफी मजबूत माना जाता है। राजद के अलावा कोई अन्य पार्टी का उम्मीदवार जब तक इस समीकरण में सेंध नहीं लगा पाता, तब तक यहां जीत पाना उसके लिए मुश्किल है।
उनका कहना है कि पिछले चुनाव में यादव मतदाताओं में बिखराव हुआ था, जिस कारण सतीश यहां से विजयी हुए थे। वैशाली जिले के वरिष्ठ पत्रकार रविशंकर सिंह कहते हैं कि राघोपुर विधानसभा क्षेत्र का राजनीतिक गणित पूरी तरह से जातिगत हिस्सेदारियों पर आधारित है। इस क्षेत्र में यादव के बाद अन्य सभी जातियां राजपूत, कोइरी और कुर्मी के अलावा अति पिछड़ा वर्ग में शामिल जातियों के मतदाताओं की संख्या एक जैसी है।
सिंह कहते हैं कि इस चुनाव में नीतीश कुमार और लालू प्रसाद साथ-साथ हैं, इसलिए उम्मीद की जानी चाहिए कि राघोपुर का राजनीतिक गणित उनके फार्मूले के हिसाब से एक दम निशाने पर लगे, लेकिन सतीश एकबार फिर यादव मतदाताओं में सेंध लगाने की कोशिश में हैं। राजपूत और पासवान जाति के मतदाताओं का झुकाव भी सतीश की ओर है। ऐसे में राघोपुर में मुकाबला कांटे का है। बहरहाल, मतदाता मतदान से पहले कुछ भी खुलकर नहीं बोल रहे हैं, लेकिन इतना तय है कि 28 अक्टूबर को यहां के मतदाता बड़ी संख्या में मतदान केंद्र पहुंचेंगे और अपना मत देंगे।
नेशनल
जेपी नड्डा का ममता पर हमला, कहा- संदेशखाली में जनता की रक्षा के लिए एनएसजी कमांडो को भी उतरना पड़ा
नई दिल्ली। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने मुख्यमंत्री ममता बनर्जी पर तगड़ा हमला बोला है। उन्होंने कहा कि ममता दीदी ने बंगाल को क्या बना दिया है। जेपी नड्डा ने कहा कि संदेशखाली, ममता बनर्जी की निर्ममता और बर्बरता का संदेश चीख-चीख कर दे रहा है। ममता दीदी ने बंगाल को क्या बना दिया है? जहां रवींद्र संगीत गूंजना चाहिए था, वहां बम-पिस्तौल मिल रहे हैं।
संदेशखाली में जनता की रक्षा के लिए एनएसजी कमांडो को भी उतरना पड़ा। इसी से समझ सकते हैं कि पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी की सरकार ने किस तरह अराजकता फैला रखी है। मैं बंगाल के सभी भाजपा कार्यकर्ताओं और जनता से अपील करता हूं कि आप सभी संदेशखाली पर ममता बनर्जी से जवाब मांगे।
प्रधानमंत्री मोदी ने संदेशखाली की पीड़िता को पार्टी का टिकट देकर भाजपा महिला सशक्तिकरण के संदेश को मजबूती दी है। इसके साथ ही पीएम मोदी ने ममता बनर्जी को जवाब दिया है कि ये महिलाएं अकेली नहीं है उनके साथ पूरा समाज, पूरा देश खड़ा है। संदेशखाली में महिलाओं की इज्जत-आबरू और उनकी जमीनें बचाने के लिए वहां गई जांच एजेंसियों के अधिकारियों पर भी घातक हमला किया गया।
जेपी नड्डा ने आगे कहा, “मैं आज समाचार पढ़ रहा था कि संदेशखाली में तलाशी के दौरान सीबीआई ने तीन विदेशी रिवॉल्वर, पुलिस द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली एक रिवॉल्वर, बंदूकें, कई गोलियां और कारतूस बरामद किए हैं।” इसी से समझा जा सकता है कि ममता सरकार ने राज्य में किस तरह अराजकता फैला रखी है। उन्होंने पूछा कि क्या ममता बनर्जी जनता को डराकर, उनकी जान लेकर चुनाव जीतेंगी। क्या नेताजी सुभाष चंद्र बोस, रवीन्द्रनाथ टैगोर, स्वामी विवेकानंद और महर्षि अरबिंदो जैसे मनीषियों ने ऐसे बंगाल की कल्पना की थी।
संदेशखाली में जनता की रक्षा के लिए एनएसजी कमांडो को भी उतरना पड़ा। ममता दीदी, यदि आपको ऐसा लगता है कि आप ऐसा करके चुनाव जीत जाएंगी तो ये आपकी भूल है। जनता आपको इसका करारा जवाब देगी। उन्होंने कहा कि हमने देखा कि ममता सरकार में तृणमूल कांग्रेस के शाहजहां शेख जैसे असामाजिक तत्व संदेशखाली में महिलाओं के अस्तित्व पर खतरा बने हुए हैं। महिलाओं के साथ जिस तरह का सलूक हो रहा है वह सच में बहुत ही संवेदनशील और कष्टदायी है।
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