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मुफ्ती सरकार को केंद्र की दो टूक, मसरत के खिलाफ तेजी से करें जांच

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नई दिल्ली। केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने गुरुवार को कहा कि जम्मू एवं कश्मीर सरकार से कहा गया है कि वह अलगाववादी नेता मसरत आलम के खिलाफ सभी 27 मामले को तेजी से आगे बढ़ाएं और केंद्र के साथ तालमेल रखते हुए उस पर कड़ी नजर रखें। संसद में बयान देते हुए राजनाथ सिंह ने कहा कि गृह मंत्रालय ने राज्य सरकार को एक परामर्श जारी करते हुए आलम को सभी मामलों में जमानत दिए जाने को चुनौती देने के सभी कदम उठाने को कहा है।

उन्होंने कहा कि मसरत आलम भट के खिलाफ दर्ज सभी 27 मामले जोरदार तरीके से जारी रखे जाएंगे। राजनाथ ने कहा कि मसरत और उसके सहयोगियों पर कड़ी निगरानी सुनिश्चित की जानी चाहिए। यह सामाजिक व्यवस्था और देश एवं राज्य की एकता और एकजुटता के लिए नुकसान पहुंचाने वाले लोग हैं। उन्होंने कहा कि अधिकारी अगर कुछ भी प्रतिकूल पाते हैं तो इसकी समीक्षा सार्वजनिक सुरक्षा अधिनियम के तहत की जानी चाहिए।

इस माह की शुरुआत में जम्मू एवं कश्मीर के मुख्यमंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद के आदेश पर जेल से आलम को रिहा कर दिया गया जिससे राजनीतिक तूफान खड़ा हो गया। राजनीतिक तूफान के कारण सत्ताधारी गठबंधन के दोनों घटकों, सईद की पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) और सहयोगी भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के बीच तनाव पैदा हो गया।

राजनाथ सिंह ने कहा, “राज्य सरकार यह सुनिश्चित करेगी कि जम्मू एवं कश्मीर में शांति, व्यवस्था तथा सामान्य स्थिति बनाए रखने के मद्देनजर मसरत पर निगरानी का काम केंद्र सरकार और खुफिया एजेंसियों के तालमेल से किया जाए।” गृहमंत्री ने कहा कि वह सदन को पहले ही बता चुके हैं कि केंद्र सरकार मसरत की रिहाई पर राज्य सरकार की रिपोर्ट से संतुष्ट नहीं थी। उन्होंने कहा कि केंद्र को सईद सरकार की तरफ से ‘विस्तृत रिपोर्ट’ मिल चुकी है।

कांग्रेस के सदस्यों ने लोकसभा में राजनाथ सिंह की टिप्पणी पर सवाल उठाया और कहा कि मसरत को हिरासत में रखने का ताजा आदेश फरवरी में क्यों नहीं जारी किया गया, जब राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू था। कांग्रेस के प्रवक्ता अजय कुमार ने बाद में कहा, “यह पीडीपी और भाजपा के बीच फिक्स मैच था।”

अपने बयान में राजनाथ सिंह ने कहा कि राज्य सरकार ने सूचित किया है कि आलम के खिलाफ 27 मामले जारी हैं और फरवरी 2010 से जम्मू एवं कश्मीर सार्वजनिक सुरक्षा अधिनियम 1978 के तहत आठ मामले दर्ज किए गए हैं। मंत्री ने कहा कि हिरासत का पिछला आदेश जम्मू के जिला दंडाधिकारी के द्वारा जारी किया गया था और ऐसे आदेश को राज्य सरकार द्वारा 12 दिनों के भीतर मंजूर कर दिया जाता है।

राजनाथ सिंह ने कहा कि राज्य सरकार ने यह भी सूचित किया है कि आलम की गतिविधि पर प्रभावी और गहरी नजर रखने के लिए उचित प्रणाली मौजूद है और कुछ भी गलत पाया जाता है तो उचित कार्रवाई की जाएगी। लोकसभा में कांग्रेस के सदस्य द्वारा उठाए गए बिंदुओं का जवाब देते हुए राजनाथ सिंह ने कहा कि फरवरी में आलम के आगे के हिरासत के लिए पर्याप्त सबूत होने चाहिए थे। जवाब से असंतुष्ट कांग्रेस सदस्य ने हालांकि असंतोष जताया। जम्मू एवं कश्मीर के मुख्यमंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद ने मंगलवार को राजनाथ सिंह को यह सुनिश्चित किया था कि भविष्य में उनकी सरकार के सहयोगी दल भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को विश्वास में लिए बिना किसी भी अलगाववादी की रिहाई नहीं की जाएगी।

जम्मू एवं कश्मीर की गठबंधन सरकार के प्रमुख दल भाजपा और पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) के रिश्तों में उस समय मुश्किलें बढ़ गई थीं, जब सईद ने भाजपा को भरोसे में लिए बिना मसरत को रिहा कर दिया था। विपक्षी पार्टियों ने संसद में इस रिहाई का कड़ा विरोध किया था और इस मामले पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से बयान देने के लिए कहा था।

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लोकसभा के शोले और रहीम चाचा की खामोशी

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सच्चिदा नन्द द्विवेदी एडिटर-इन-चीफ

हिन्दी सिनेमा की कालजई फिल्म शोले के रहीम चाचा का किरदार आपको जरूर याद होगा। उनका एक डायलॉग था जिसमें वो कहते है “इतना सन्नाटा क्यूँ है भाई” उस वक्त पूरे रामगढ़ में किसी के पास इसका जवाब नहीं था, कमोवेश ठीक वैसे ही हालात इस वक्त लोकसभा चुनाव में नजर आ रहे हैं। लोकसभा के चुनाव के दो चरण पूरे हो चुके हैं पर पूरे देश में कहीं भी ऐसा नजर नहीं आता कि हम अगले पाँच साल के लिए अपने नुमाइंदे चुनने जा रहे हैं। एक अजीब खामोशी नुमायाँ है। गांव, कस्बों और शहरों तक में होर्डिंग और पोस्टर नजर नहीं आ रहे हैं और न ही कानफोडू लाऊडस्पीकर पर वोट मांगने वालों का शोर सुनाई दे रहा है, चाय की टपरी और पान के खोखों पर जमा होने वाली भीड़ अपने होंठों को सिले हुए है।

एक वक्त था जब हम लोग चाय की टपरी, पान की दुकान और रास्तों के ढाबों से देश का मूड भांप लेते थे। मतदाताओं के मन में क्या चल रहा है इसका अंदाज लगाना आसान था। लेकिन आज स्थिति उलट है इन जगहों पर खड़ा आम आदमी आपसे ही उल्टा पूछ लेता है ‘और क्या चल रहा है’ इंसान-इंसान के बीच अविश्वास की खाई इतनी गहरी हो गई है कि वो पब्लिक प्लेस पर अब राजनीतिक बात करने से गुरेज करने लगा है। वोटर अपने मन की बात जुबान पर नहीं लाना चाहता हैं क्यूंकी अब वो रेडियो पर ‘मोदी जी’ के मन की बात सुन रहा है और अपने मन की बात अपने मन में रखे हुए है। उसे डर है और ये डर मिश्रित चुप्पी स्वस्थ लोकतंत्र के लिए अच्छा लक्षण नहीं है।

लोकसभा चुनाव के पहले चरण की तरह दूसरे चरण में भी वोटिंग 2019 के मुकाबले कम हुई है। पहले चरण में 21 राज्यों की 102 लोकसभा सीटों पर 64 प्रतिशत वोटिंग हुई थी। जबकि पिछले लोकसभा चुनाव में उन सीटों पर भी 70 प्रतिशत से ज्यादा मतदान हुआ था। ऐसे ही इस बार दूसरे चरण में 13 राज्यों की 88 लोकसभा सीटों पर करीब 63 फीसदी वोट पड़े। यह 2019 के लोकसभा चुनाव में 70.09% मतदान के मुकाबले काफी कम था। यूपी, बिहार, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश और राजस्थान जैसे बड़े राज्यों में वोटिंग उम्मीद से काफी कम रही। यूपी में 54.85%, बिहार में 55.08% , महाराष्ट्र में 57.83% , एमपी में 57.88 % वोटिंग हुई। सबसे अधिक वोट त्रिपुरा, मणिपुर, छत्तीसगढ़ और पश्चिम बंगाल में पड़े। लोकसभा चुनाव के तीसरे चरण में सात मई को वोटिंग है। इसमें 12 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों की 95 सीट पर मतदान होगा, जिसके लिए 1351 उम्मीदवार चुनाव मैदान में हैं।

जब 7 मई, 13 मई, 20 मई, 25 मई और 1 जून को तीसरे, चौथे, पांचवे, छठे और सातवें चरण का मतदान होगा तो इस दौरान देश के अधिकतर हिस्सों में गर्मी के साथ लू का असर दिखाई देगा। भारतीय मौसम विज्ञान विभाग के आंकड़ों से पता चलता है कि लोकसभा चुनाव के लिए प्रचार के दौरान लगभग 72% निर्वाचन क्षेत्रों में अधिकतम तापमान 35°C या इससे अधिक हो सकता है। विशेष रूप से, 59 सीटों पर 40-42 डिग्री सेल्सियस के बीच तापमान का सामना करना पड़ सकता है। जबकि 194 सीटों पर 37.5-से 40 डिग्री सेल्सियस के बीच तापमान देखा जा सकता है। लेकिन इस गर्मी के बीच क्षेत्रीय दलों के नेता काफी तेजी से अपने इलाके के मतदाताओं पर पकड़ बना रहे हैं और उन सवालों को उठा रहे हैं जिनसे देश का किसान, मजदूर और नौजवान चिंतित है। इसलिए उनके प्रति आम जनता की अपेक्षाएं बढ़ी हैं इसलिए विपक्षी गठबंधन के नेताओं की रैलियों में भारी भीड़ आ रही है। जबकि भाजपा की रैलियों का रंग उसके मुकाबले फीका नजर या रहा है।

हालांकि रैली में आने वाली भीड़ जीत का पैमाना नहीं होती इसलिए कुछ कहा नहीं जा सकता। हर दल का अपना एक समर्पित काडर होता है। जबकि आज काडर के नाम पर ज्यादातर दलों के पास सत्ता के छत्ते से चिपकी रहने वाली मधुमक्खी ही ज्यादा नजर या रहीं है ये वो लोग हैं जिन्हें सत्ता की दलाली करने के अवसरों की तलाश होती है। राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ जिसके पास काडर है कार्यकर्ता हैं वो भी खामोश नजर आ रहा है। बहरहाल लगातार कम होते मतदान ने नेताओं की धुकधुकी बढ़ा रखी है। सत्ता पक्ष मतदान प्रतिशत बढ़ाने के लिए परेशान है तो विपक्ष कम प्रतिशत को अपने पक्ष में मानकर मुंगेरीलाल के सपने बुनने में मगन है।

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