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आध्यात्म

बिहार : ‘योगनगरी’ में गंगा दर्शन से नववर्ष का स्वागत

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मुंगेर, 1 जनवरी (आईएएनएस)| ‘योगनगरी’ के रूप में चर्चित बिहार के मुंगेर में स्थित विश्व प्रसिद्ध बिहार योग विद्यालय में नववर्ष 2018 का स्वागत सोमवार को ‘गंगा दर्शन’ की परंपरा निभाने के साथ किया गया। योग विद्यालय में गंगा दर्शन अनुष्ठान की वर्षो पुरानी परंपरा है। इस अनुष्ठान की चर्चा न सिर्फ भारत में, बल्कि विदेशों में भी होती है।

सोमवार को नववर्ष के आगमन को लेकर इस अनुष्ठान में भाग लेने के लिए भारत के अलावा विदेशों से लोग भी यहां पहुंचे। इस अनुष्ठान में रामचरित मानस के सुंदर कांड पाठ, रामायण आरती और 108 बार हनुमान चालीसा का पाठ किया गया।

यह अनुष्ठान हर तरह के भेदभाव से अलग विविधता में एकता की झलक प्रस्तुत करता है और यह बताता है कि पाश्चात्य संस्कृति से अलग एक रंग यह भी है, जो जीवन को सकारात्मक ऊर्जा प्रदान करता है।

इस वर्ष यहां आयोजित समारोह को संबोधित करते हुए बिहार योग विद्यालय के परमाचार्य परमहंस स्वामी निरंजनानंद सरस्वती ने कहा कि भारतीय परंपरा में श्रद्धा, विश्वास को जिंदा रखना जीवन की श्रेष्ठता है। विश्वास और आस्था यदि है, तो ईश्वर अदृश्य होते हुए भी दृश्य हैं और ईश्वर सत्य है। निराशा में भगवान की भक्ति नहीं होती।

उन्होंने कहा, शराब की पार्टी से तो बेहतर है कि हम आध्यात्म का मार्ग अपनाकर ईश्वर के शरण में जाएं। सुंदरकांड में हर प्रकार की बाधाओं को पार करने का मार्ग बताया गया है। यह मार्ग विवेक, बल और बुद्धि का है। बाधाओं को पार करने का तरीका तो अपनाना है, लेकिन वह तरीका स्वार्थ का नहीं, सद्भावना का हो और परोपकार से प्रेरित हो।

उन्होंने कहा कि राम और हनुमान दोनों ने पराक्रम किए। बाधा को दूर करने के लिए राम ने समुद्र को सोखने का पराक्रम किया, जबकि हनुमान का पराक्रम शक्ति से परिपूर्ण और निष्कपट है। उन्होंने कहा कि इन सभी पर लांछन लगे, लेकिन हनुमान पर कोई लांछन नहीं लगा। उनका चरित्र अद्भुत है।

हनुमान चालीसा की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि इस चालीसा के पाठ का एक खास मायने हैं। इस चालीसा के पाठ करने से सभी परेशानी दूर होती है। उन्होंने कहा कि 2018 हनुमान जी के प्रकट होने का वर्ष है।

मुंगेर के जिला पदाधिकारी उदय कुमार सिंह ने भी गंगा दर्शन अनुष्ठान में हिस्सा लिया और बिहार योग विद्यालय के परमाचार्य स्वामी निरंजनानंद को नए साल की शुभकामनाएं दीं।

इस आयोजन में बाल योग मित्र मंडल के बच्चों के अलावा आश्रम के संन्यासियों तथा मुंगेर के साथ-साथ दूसरे क्षेत्रों के श्रद्धालुओं ने भाग लिया।

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आध्यात्म

आज पूरा देश मना रहा रामनवमी, जानिए इसके पीछे की पूरी पौराणिक कहानी

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नई दिल्ली। आज पूरे देश में रामनवमी का त्यौहार बड़ी धूम धाम से मनाया जा रहा है। पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक इस दिन भगवान राम का जन्म हुआ था। जो विष्णु का सातवां अवतार थे। रामनवमी का त्यौहार चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी को मनाया जाता है। आइये जानते हैं इसके पीछे की पौराणिक कहानी।

पौराणिक कथाओं के मुताबिक भगवान राम ने भी मां दुर्गा की पूजा की थी, जिससे कि उन्हें युद्ध के समय विजय मिली थी। साथ ही माना जाता है इस दिन गोस्वामी तुलसीदास जी ने रामचरित मानस की रचना का आरंभ किया। राम नवमी का व्रत जो भी करता है वह व्यक्ति पापों से मुक्त होता है और साथ ही उसे शुभ फल प्रदान होता है

रामनवमी का इतिहास-

महाकाव्य रामायण के अनुसार अयोध्या के राजा दशरथ की तीन पत्नियां थी। कौशल्या, सुमित्रा और कैकयी। शादी को काफी समय बीत जाने के बाद भी राजा दशरथ के घर किसी बालक की किलकारी नहीं गूंजी थी। इसके उपचार के लिए ऋषि वशिष्ट ने राजा दशरथ से पुत्र प्राप्ति के लिए कमेश्टी यज्ञ कराने के लिए कहा। जिसे सुनकर दशरथ खुश हो गए और उन्होंने महर्षि रुशया शरुंगा से यज्ञ करने की विन्नती की। महर्षि ने दशरथ की विन्नती स्वीकार कर ली। यज्ञ के दौरान महर्षि ने तीनों रानियों को प्रसाद के रूप में खाने के लिए खीर दी। इसके कुछ दिनों बाद ही तीनों रानियां गर्भवती हो गईं।

नौ माह बाद चैत्र मास में राजा दशरथ की बड़ी रानी कौशल्या ने भगवान राम को जन्म दिया, कैकयी ने भरत को और सुमित्रा ने दो जुड़वा बच्चे लक्ष्मण और शत्रुघन को जन्म दिया। भगवान विष्णु ने श्री राम के रूप में धरती पर जन्म इसलिए लिया ताकि वे दुष्ट प्राणियों का नरसंहार कर सके।

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