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बिहार में भाजपा का कभी आधार नहीं रहा : शरद यादव

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बिहार, भाजपा, शरद यादव, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ प्रमुख मोहन भागवत, भाजपा के कारपोरेट सोच और उनकी मानसिकता, नीतीश के मॉडल पर लोगों को विश्वास

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साक्षात्कार
मनोज पाठक

पटना| जनता दल (युनाइटेड) अध्यक्ष शरद यादव का कहना है कि बिहार हमेशा से सामाजिक आंदोलनों की धरती रही है। बिहार में कभी भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) का आधार नहीं रहा है। एकीकृत बिहार के झारखंड वाले क्षेत्रों में भाजपा का कुछ प्रभाव जरूर माना जाता रहा है। जद (यू) के अध्यक्ष शरद यादव ने ‘आईएएनएस’ के साथ विशेष बातचीत में आरक्षण के मुद्दे पर कहा, “राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) प्रमुख मोहन भागवत ने आरक्षण के मुद्दे पर जो कुछ कहा है, उसका दलितों और पिछड़े वर्ग जैसे आरक्षण के लाभार्थियों पर व्यापक प्रभाव पड़ा है। भागवत ने इशारों में जो कुछ कहा है, उसका सामाजिक न्याय में विश्वास करने वाले उच्च वर्ग के मतदाताओं पर भी इसका बड़ा प्रभाव पड़ा है।” उन्होंने कहा कि यह बयान भाजपा के कारपोरेट सोच और उनकी मानसिकता को दिखाता है। भले ही अब भाजपा के नेता सफाई दे रहे हों, लेकिन अब काफी देर हो गई है।

राष्ट्रीय जनता दल (राजद) और जद (यू) के गठबंधन के विषय में यादव ने कहा कि इसमें कोई दो मत नहीं कि दोनों में विरोधाभास है, लेकिन यह वास्तविकता भी है कि राजनीति में ऐसे समझौते होते रहे हैं। नीतीश के मॉडल पर लोगों को विश्वास नहीं होने के सवाल पर शरद कहते हैं, “नीतीश के विकास मॉडल को आज भी यहां के लोग पसंद करते हैं। वर्ष 2014 में हुए लोकसभा चुनाव में जो जनादेश जनता ने दिया था, उसमें साफ संदेश था कि बिहार को अब लालू और नीतीश के गठबंधन की जरूरत है।” उन्होंने कहा कि राजद और जद (यू) के साथ आने के बाद महागठबंधन को मजबूती देने के लिए कांग्रेस का भी सहारा लिया गया।

पूर्व केंद्रीय मंत्री शरद यादव ने बिहार चुनाव में किसी भी तीसरे मोर्चे को नकारते हुए कहा कि इस चुनाव में राजग और महागठबंधन में सीधी लड़ाई है। चुनाव में महागठबंधन के बढ़त का दावा करते हुए उन्होंने कहा, “न सिर्फ मुस्लिम और यादव, बल्कि सभी गरीब जातियां और ऊंची जाति के जागरूक मतदाता महागठबंधन के साथ हैं।” जातीय ध्रुवीकरण के विषय में पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि जाति को चुनाव में भूला नहीं जा सकता। कश्मीर से कन्याकुमारी तक लोग जाति में बंटे हुए हैं। वे जोर देकर कहते हैं, “हमलोग जाति आधार पर राजनीति करना नहीं चाहते, लेकिन मतदाता इसे गौर से देखता है। यह कहना गलत नहीं होगा कि चुनाव विकास के मुद्दे पर लड़े जाते हैं और यही वास्तविकता है।”

उत्तर प्रदेश के दादरी में हुई घटना के विषय में पूछे जाने पर बेबाकी से शरद कहते हैं कि इस मामले में प्रधानमंत्री ने बयान देने में बहुत देरी कर दी। उन्होंने कहा, “जिस मामले को लेकर देश के राष्ट्रपति चिंता जता रहे हों, उस पर प्रधानमंत्री की चुप्पी चिंता की बात है।” भाजपा के नेताओं द्वारा बढ़त का दावा किए जाने पर उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री की सभा में आठ-10 जिलों की भीड़ को जुटा लेने के कारण भाजपा के लोग चुनाव जीतने का दावा कर रहे हैं, लेकिन भाजपा के लोग बिहार को नहीं समझ पा रहे हैं। जमीन पर जनता का मूड भांपने में वे नाकाम रहे हैं। शरद ने इस चुनाव में महागठबंधन की भारी जीत का दावा करते हुए कहा कि डेढ़ वर्ष के दौरान लोगों का भाजपा से मोहभंग हो गया है। महंगाई और लोकसभा चुनाव में किए गए वादे पूरा नहीं किए जाने से लोग भाजपा को नकार रहे हैं। लोकसभा और विधानसभा चुनाव में अंतर होता है।

नेशनल

लोकसभा के शोले और रहीम चाचा की खामोशी

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सच्चिदा नन्द द्विवेदी एडिटर-इन-चीफ

हिन्दी सिनेमा की कालजई फिल्म शोले के रहीम चाचा का किरदार आपको जरूर याद होगा। उनका एक डायलॉग था जिसमें वो कहते है “इतना सन्नाटा क्यूँ है भाई” उस वक्त पूरे रामगढ़ में किसी के पास इसका जवाब नहीं था, कमोवेश ठीक वैसे ही हालात इस वक्त लोकसभा चुनाव में नजर आ रहे हैं। लोकसभा के चुनाव के दो चरण पूरे हो चुके हैं पर पूरे देश में कहीं भी ऐसा नजर नहीं आता कि हम अगले पाँच साल के लिए अपने नुमाइंदे चुनने जा रहे हैं। एक अजीब खामोशी नुमायाँ है। गांव, कस्बों और शहरों तक में होर्डिंग और पोस्टर नजर नहीं आ रहे हैं और न ही कानफोडू लाऊडस्पीकर पर वोट मांगने वालों का शोर सुनाई दे रहा है, चाय की टपरी और पान के खोखों पर जमा होने वाली भीड़ अपने होंठों को सिले हुए है।

एक वक्त था जब हम लोग चाय की टपरी, पान की दुकान और रास्तों के ढाबों से देश का मूड भांप लेते थे। मतदाताओं के मन में क्या चल रहा है इसका अंदाज लगाना आसान था। लेकिन आज स्थिति उलट है इन जगहों पर खड़ा आम आदमी आपसे ही उल्टा पूछ लेता है ‘और क्या चल रहा है’ इंसान-इंसान के बीच अविश्वास की खाई इतनी गहरी हो गई है कि वो पब्लिक प्लेस पर अब राजनीतिक बात करने से गुरेज करने लगा है। वोटर अपने मन की बात जुबान पर नहीं लाना चाहता हैं क्यूंकी अब वो रेडियो पर ‘मोदी जी’ के मन की बात सुन रहा है और अपने मन की बात अपने मन में रखे हुए है। उसे डर है और ये डर मिश्रित चुप्पी स्वस्थ लोकतंत्र के लिए अच्छा लक्षण नहीं है।

लोकसभा चुनाव के पहले चरण की तरह दूसरे चरण में भी वोटिंग 2019 के मुकाबले कम हुई है। पहले चरण में 21 राज्यों की 102 लोकसभा सीटों पर 64 प्रतिशत वोटिंग हुई थी। जबकि पिछले लोकसभा चुनाव में उन सीटों पर भी 70 प्रतिशत से ज्यादा मतदान हुआ था। ऐसे ही इस बार दूसरे चरण में 13 राज्यों की 88 लोकसभा सीटों पर करीब 63 फीसदी वोट पड़े। यह 2019 के लोकसभा चुनाव में 70.09% मतदान के मुकाबले काफी कम था। यूपी, बिहार, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश और राजस्थान जैसे बड़े राज्यों में वोटिंग उम्मीद से काफी कम रही। यूपी में 54.85%, बिहार में 55.08% , महाराष्ट्र में 57.83% , एमपी में 57.88 % वोटिंग हुई। सबसे अधिक वोट त्रिपुरा, मणिपुर, छत्तीसगढ़ और पश्चिम बंगाल में पड़े। लोकसभा चुनाव के तीसरे चरण में सात मई को वोटिंग है। इसमें 12 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों की 95 सीट पर मतदान होगा, जिसके लिए 1351 उम्मीदवार चुनाव मैदान में हैं।

जब 7 मई, 13 मई, 20 मई, 25 मई और 1 जून को तीसरे, चौथे, पांचवे, छठे और सातवें चरण का मतदान होगा तो इस दौरान देश के अधिकतर हिस्सों में गर्मी के साथ लू का असर दिखाई देगा। भारतीय मौसम विज्ञान विभाग के आंकड़ों से पता चलता है कि लोकसभा चुनाव के लिए प्रचार के दौरान लगभग 72% निर्वाचन क्षेत्रों में अधिकतम तापमान 35°C या इससे अधिक हो सकता है। विशेष रूप से, 59 सीटों पर 40-42 डिग्री सेल्सियस के बीच तापमान का सामना करना पड़ सकता है। जबकि 194 सीटों पर 37.5-से 40 डिग्री सेल्सियस के बीच तापमान देखा जा सकता है। लेकिन इस गर्मी के बीच क्षेत्रीय दलों के नेता काफी तेजी से अपने इलाके के मतदाताओं पर पकड़ बना रहे हैं और उन सवालों को उठा रहे हैं जिनसे देश का किसान, मजदूर और नौजवान चिंतित है। इसलिए उनके प्रति आम जनता की अपेक्षाएं बढ़ी हैं इसलिए विपक्षी गठबंधन के नेताओं की रैलियों में भारी भीड़ आ रही है। जबकि भाजपा की रैलियों का रंग उसके मुकाबले फीका नजर या रहा है।

हालांकि रैली में आने वाली भीड़ जीत का पैमाना नहीं होती इसलिए कुछ कहा नहीं जा सकता। हर दल का अपना एक समर्पित काडर होता है। जबकि आज काडर के नाम पर ज्यादातर दलों के पास सत्ता के छत्ते से चिपकी रहने वाली मधुमक्खी ही ज्यादा नजर या रहीं है ये वो लोग हैं जिन्हें सत्ता की दलाली करने के अवसरों की तलाश होती है। राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ जिसके पास काडर है कार्यकर्ता हैं वो भी खामोश नजर आ रहा है। बहरहाल लगातार कम होते मतदान ने नेताओं की धुकधुकी बढ़ा रखी है। सत्ता पक्ष मतदान प्रतिशत बढ़ाने के लिए परेशान है तो विपक्ष कम प्रतिशत को अपने पक्ष में मानकर मुंगेरीलाल के सपने बुनने में मगन है।

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