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देर से आया दुरूस्त फैसला
भारतीय कानून के बारे में कहा जाता है वहां देर है अंधेर नहीं लेकिन देर तो अपने आप में एक अंधेर है। 13 साल पुराने हिट एंड रन केस में आखिरकार आज बॉलीवुड के दबंग सुपरस्टार सलमान को पांच साल जेल की सजा सुना ही दी गई। फैसले के बाद कहीं खुशी तो कहीं गम का माहौल है। चाहने वाले मायूस तो पीडि़त पक्ष खुश। न्याय के हिसाब से देखा जाय तो यह कहा जा सकता है कि कानून से ऊपर कोई नहीं है, होना भी नहीं चाहिए लेकिन सवाल हमेशा की तरह एक है कि फैसले में इतनी देरी क्यों?
कहते हैं देर से मिला न्याय भी अन्याय से कम नहीं होता, एक तरफ तो पीडि़त पक्ष की आंखें 13साल से न्याय पाने की आस में पथरा गई होंगी तो दूसरी तरफ मुजरिम सलमान और उनका परिवार भी 13 साल तक सूली पर टंगा रहा। सलमान जैसे सेलीब्रेटी के साथ एक दिक्कत यह भी है कि फिल्म उद्योग की भारी भरकम रकम उनके ऊपर लगी रहती है। उन निर्माता-निर्देशकों को भी 13 साल तक यही डर सताता रहा होगा कि अगर सलमान को सजा हो गई तो हमारी फिल्मों का क्या होगा।
इसी तरह अवैध हथियार रखने के मामले में जब संजय दत्त पर कोर्ट का फैसला आया था तो भी यही चर्चा चली थी कि क्या ऐसे सेलीब्रेटीज को इस नाते कोई छूट मिलनी चाहिए कि उनके नाते तमाम लोगों की रोजी रोटी चल रही है, मेरा निजी मत है कि ऐसे सेलीब्रेटीज को इस आधार पर कोई छूट नहीं मिलनी चाहिए क्योंकि कानून से ऊपर कोई नहीं हो सकता। कानून सर्वोपरि है लेकिन अदालतों को भी समय के आधार पर इस बात का ख्याल रखना चाहिए कि देरी से मिला न्याय अन्याय से कम नहीं है।
इधर बीच माननीय अदालतों द्वारा कुछ ऐसे फैसले आए हैं जिनकी तारीफ होनी चाहिए जैसे लालू यादव व रशीद मसूद के खिलाफ फैसला, जाट आरक्षण पर सुप्रीम कोट का निर्णय। कुछ फैसले सामान्य जन के लिए नज़ीर होते हैं जिससे उनका न्यायालयीय व्यवस्था में विश्वास और बढ़ जाता है। इसके अलावा आपराधिक प्रवृति के लोगों का हौसला टूटता है वे सोचते हैं कि जब इतने बड़े आदमी को सजा हो सकती है तो हम क्या चीज हैं और इस तरह से भी अपराध में कमी आती है।
इस बीच सलमान को दो दिन की अंतरिम जमानत बांबे हाईकोर्ट ने दे दी है हाईकोर्ट में सलमान के वकीलों ने दलील दी कि उन्हें अदालत के फैसले की कॉपी नहीं मिली, अब सवाल यह उठता है कि जब फैसला सुना दिया गया तो यह कानूनी नुक्ता क्यों छोड़ दिया गया? जिससे सलमान को दो दिन की राहत मिल गई। क्यों फैसले के साथ ही ऐसी व्यवस्था नहीं की गई? जिससे सलमान के वकील इस कानूनी नुक्ते का लाभ न उठा पाते। क्या यह जानबूझकर हुआ? या वास्तव में किसी ने भूल की है। जरूरी यह है कि ऐसे केसों में अदालतों द्वारा किसी प्रकार की लापरवाही न की जाय।
अदालत के फैसले का सम्मान करते हुए सिर्फ एक बात कहना चाहता हूं कि अभी बहुत से माननीयों और आपराधिक प्रवृत्ति वाले अपराधियों का केस कोर्ट में लंबित है जिन्हें न्याय की दरकार है। इनमें तत्काल फैसला लिए जाने की जरूरत है ताकि इस देश की गरीब और सामान्य जनता का विश्वास अदालत और माननीय न्यायाधीशों पर बना रहे।
नेशनल
दिल्ली के स्कूलों की जांच में कुछ नहीं मिला, पुलिस बोली- ई-मेल्स और कॉल्स फर्जी
नई दिल्ली। दिल्ली के स्कूलों में बम होने के धमकी भरे ईमेल के बाद जांच की गई तो वहां कुछ नहीं मिला। पुलिस अधिकारियों ने भी इसे होक्स ईमेल बताया है, लेकिन उन्होंने कहा कि चेकिंग जारी रहेगी। गृह मंत्रालय ने कहा कि घबराने की जरूरत नहीं है। ऐसा प्रतीत होता है कि यह फर्जी कॉल है। दिल्ली पुलिस और सुरक्षा एजेंसियां प्रोटोकॉल के मुताबिक जरूरी कदम उठा रही हैं।
वहीं दिल्ली पुलिस ने कहा कि दिल्ली के कुछ स्कूलों को बम की धमकी वाले ई-मेल मिले। दिल्ली पुलिस ने प्रोटोकॉल के तहत ऐसे सभी स्कूलों की गहन जांच की। कुछ भी आपत्तिजनक नहीं मिल। ऐसा प्रतीत होता है कि ये कॉल्स फर्जी हैं। हम जनता से अनुरोध करते हैं कि वे घबराएं नहीं और शांति बनाए रखें।
स्कूल में आए इस धमकी भरे ईमेल के बाद कई स्कूलों ने बच्चों की जल्द छुट्टी का मैसेज पेरेंट्स को भेज दिया, तो कुछ पेरेंट्स अपने बच्चों को स्कूल जाकर पहले ही ले आए। इसके अलावा कई स्कूल के प्रिंसिपल ने पेरेंट्स को मैसेज भेज कर कहा कि घबराने की बात नहीं है।
नोएडा में इंद्रप्रस्थ ग्लोबल स्कूल (आईपीजीएस) की प्रिंसिपल निकिता तोमर मान ने बताया, “मैं लोगों से आग्रह करूंगी कि वे अनावश्यक घबराहट पैदा न करें और इस स्थिति को एक परिपक्व वयस्क के रूप में लें। दिल्ली-एनसीआर के जिन स्कूलों को धमकियां मिलीं, उन्हें खाली करा लिया गया है और हमारे सहित बाकी स्कूल सामान्य रूप से काम कर रहे हैं। कोई धमकी भरा संदेश प्राप्त नहीं हुआ है।”
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