Connect with us
https://www.aajkikhabar.com/wp-content/uploads/2020/12/Digital-Strip-Ad-1.jpg

मुख्य समाचार

यूपी सरकार ने लोकायुक्त मामले में खत्म की मुख्य न्यायाधीश की भूमिका

Published

on

Loading

लखनऊ। उत्तर प्रदेश सरकार और राज्यपाल के बीच नए लोकायुक्त की नियुक्ति को लेकर टकराव बढ़ने के आसार और बढ़ गए हैं। अब इस मामले में नया मोड़ आ गया है। राज्य सरकार ने फैसला लिया है कि अब लोकायुक्त के चयन में इलाहाबाद उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश की कोई भूमिका ही नहीं होगी। लोकायुक्त के चयन के लिए मनमाफिक नियुक्ति का रास्ता साफ करने के लिए राज्य सरकार ने लोकायुक्त के चयन में उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश की भूमिका पूरी तरह से समाप्त करने का फैसला किया है। विधानसभा में गुरुवार को लोकायुक्त चयन संशोधन विधेयक पारित कर दिया गया।

बदले हुए नियमों में लोकायुक्त का चयन अब मुख्यमंत्री की अध्यक्षता में गठित चार सदस्यीय समिति करेगी। इसमें विधानसभा अध्यक्ष, विधानसभा में नेता विपक्ष तथा समिति के अध्यक्ष द्वारा विधानसभा के परामर्श से नामित सुप्रीम कोर्ट या हाईकोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायाधीश बतौर सदस्य शामिल होंगे। चयन समिति में शामिल सदस्यों में से कोई पद रिक्त होने पर भी लोकायुक्त की नियुक्ति को अवैध नहीं माना जाएगा। विपक्ष के जबरदस्त विरोध के बीच सरकार ने इन प्रावधानों के साथ गुरुवार को विधानमंडल के दोनों सदनों में उप्र लोकायुक्त तथा उप लोकायुक्त (संशोधन) विधेयक-2015 पारित करा लिया।

अब यह विधेयक मंजूरी के लिए राज्यपाल के पास भेजा जाएगा। सरकार के इस कदम से लोकायुक्त का मामला एक बार फिर राजभवन के पाले में पहुंच गया है। नए लोकायुक्त की नियुक्ति को लेकर सरकार और राजभवन के बीच जिस तरह टकराव की स्थिति पैदा हुई, उसे देखते हुए फिलहाल इस विधेयक को आसानी से मंजूरी मिलने के आसार नहीं हैं। उल्लेखनीय है कि इससे पहले राज्यपाल ने उप्र सरकार द्वारा चौथी बार भेजे गए लोकायुक्त का नाम खारिज करते हुए सरकार से नया नाम सुझाने को कहा था।

राज्यपाल ने पूर्व न्यायमूर्ति रवींद्र सिंह को लोकायुक्त बनाने के विचार को खारिज करते हुए सरकार से नया नाम मांगा था। अपने लिखित जवाब में राज्यपाल ने यह भी स्पष्ट किया है कि किन वजहों से रवींद्र सिंह की नियुक्ति लोकायुक्त पद पर नहीं हो सकती। राज्यपाल ने अपनी आपत्तियों में कहा है कि चयन समिति के सदस्यों के बीच विचार-विमर्श कर लोकायुक्त का नाम आम सहमति से तय करने की कानूनी औपचारिकता पूरी नहीं की गई। नियमत: मुख्यमंत्री, हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस और नेता प्रतिपक्ष को बैठक कर नाम तय करना चाहिए। इसके बाद ही नियुक्ति के लिए सिफारिश भेजी जानी चाहिए।

नेशनल

बाबा रामदेव की सोन पापड़ी भी टेस्ट में ‘फेल’, असिस्टेंट मैनेजर समेत 3 को 6 महीने की जेल

Published

on

Loading

नई दिल्ली। योग गुरु बाबा रामदेव की मुश्किलें कम होने का नाम नहीं ले रही हैं। भ्रामक विज्ञापनों को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने पतंजलि को फटकार लगाई थी। अब पतंजलि कंपनी की सोन पापड़ी फूड टेस्‍ट में फेल गई है। मुख्‍य न्‍यायिक मजिस्‍ट्रेट ने पतंजलि आयुर्वेद लिमिटेड के असिस्‍टेंट मैनेजर सहित तीन लोगों को छह महीने जेल की सजा सुना दी है। तीनों पर जुर्माना भी लगाया गया है। खाद्य सुरक्षा और मानक अधिनियम 2006 की धारा 59 के तहत सजा सुनाई गई है। असिस्टेंट मैनेजर को 50 हजार और अन्य 2 दोषियों को 10 और 25 हजार रुपये जुर्माना भरना होगा। मामले में शिकायतकर्ता की ओर से रितेश वर्मा ने पैरवी की।

मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, 17 अक्टूबर 2019 को जिला खाद्य सुरक्षा अधिकारी ने उत्तराखंड के पिथौरागढ़ बेरीनाग बाजार का दौरा किया था। इस दौरान बेरीनाग बाजार स्थित लीलाधर पाठक की दुकान में रेड मारी गई। जांच करते हुए रेड टीम ने पतंजलि नवरत्न इलायची सोन पापड़ी के सैंपल लिए और उन्हें जांच के लिए रुद्रपुर की लैंब में भेजा गया। साथ ही सप्लायर रामनगर कान्हा जी और पतंजलि को नोटिस जारी किए गए।

जांच में मिठाई की क्वालिटी घटिया मिली। सैंपल फेल हो गया और पुलिस ने एक्शन लेकर पतंजलि आयुर्वेद लिमिटेड के असिस्टेंट जनरल मैनेजर अभिषेक कुमार, कान्हा जी डिस्ट्रीब्यूटर प्राइवेट लिमिटेड रामनगर के असिस्टेंट मैनेजर अजय जोशी, दुकानदार लीलाधर पाठक को गिरफ्तार कर लिया। तीनों के खिलाफ सुनवाई पूरी होने के बाद बीते दिन जेल और जुर्माने की सजा सुनाई गई।

Continue Reading

Trending