आध्यात्म
प्रेममंदिर वृंदावन की उत्कृष्टता देख शिवपाल के मुंह से निकला, अद्भुत!
प्रेममंदिर का तीसरा वार्षिकोत्सव संपन्न
वृंदावन (मथुरा, उप्र)। प्रेममंदिर वृंदावन का तीसरा वार्षिकोत्सव पूरी भव्यता व आध्यात्मिकता के साथ संपन्न हुआ। इस अवसर पर कार्यक्रम में पधारे उप्र सरकार के कैबिनेट मंत्री शिवपाल सिंह यादव व ओमप्रकाश सिंह मंदिर की उत्कृष्टता व वास्तु कला के इस अद्भुत नमूने को देखते ही रह गए।
शिवपाल सिंह यादव ने कहा कि जगद्गुरू कृपालु परिषत् ने आध्यात्म के साथ-साथ समाजसेवा के क्षेत्र में भी जितने सराहनीय कार्य किए हैं उसकी कोई दूसरी मिसाल मिलना मुश्किल है। मैं यहां आकर भक्ति व रस के जिस सागर में डूबा हूं वैसा आनंद अपने जीवन में मुझे कम ही मिला है। प्राचीन वास्तुकला के इस अनुपम सौंदर्य को देखने के बाद कोई भी व्यक्ति इससे जुड़ा हुआ महसूस करेगा। कार्यक्रम की भूरि-भूरि प्रशंसा करते हुए उन्होंने कहा कि श्रीमहाराज जी ने समाजसेवा और आध्यात्म का जो बीज बोया था आज उसने वटवृक्ष का रूप धारण कर लिया है। मैं इसके अनंतकाल तक उत्तरजीवी होने की कामना करता हूं।
वर्तमान में परिषत् के सभी कार्यों को सुचारू रूप से चलाने की महती जिम्मेदारी निभाने वाली श्रीमहाराज जी की तीनो सुपुत्रियों सुश्री डा़. विशाखा त्रिपाठी, श्यामा त्रिपाठी व कृष्णा त्रिपाठी की सराहना करते हुए उन्होंने कहा कि जिस तरह से श्रीमहाराज जी के ब्रह्मलीन होने के बाद उनकी तीनो सुपुत्रियों ने उनके कार्यों को और आगे बढ़ाया है, वह आदरणीय और अनुकरणीय है। बताते चलें कि प्रेम मंदिर वृंदावन के तीसरे वार्षिकोत्सव में ठाकुर जी की दैनिक सेवाओं के अतिरिक्त परिक्रमा, अभिषेक, छप्पन भोग एवं रासलीला के कार्यक्रम संपन्न हुए।
गौरतलब है कि प्रेम मन्दिर उत्तर प्रदेश के मथुरा ज़िले की प्रसिद्ध नगरी वृंदावन में बना आधुनिक मन्दिर है। जिसका 17 फ़रवरी, 2012 को लोकार्पण हुआ था। इस मंदिर का निर्माण जगद्गुरु श्रीकृपालु जी महाराज ने करवाया। 14 जनवरी, 2001 को उन्होंने लाखों श्रद्धालुओं की उपस्थिति में प्रेम मंदिर का शिलान्यास किया था। उसी दिन से राजस्थान और उत्तर प्रदेश के क़रीब एक हज़ार शिल्पकार अपने हज़ारों श्रमिकों के साथ प्रेम मंदिर को गढ़ने में जुटे थे और 11 साल बाद यह साकार होकर सामने आया। इस मन्दिर के निर्माण में क़रीब 100 करोड़ रूपए की धनराशि का व्यय हुआ। कृपालु जी महाराज का कहना था कि जब तक विश्व में प्रेम की सत्ता सर्वोच्च स्थान हासिल नहीं करेगी, विश्व का आध्यात्मिक कल्याण सम्भव नहीं है।
सफेद इटालियन संगमरमर से तराशा गया श्रीवृंदावन धाम का यह अद्वितीय युगलावास प्राचीन भारतीय शिल्पकला की झलक भी दिखाता है। इस अद्वितीय श्रीराधा-कृष्ण प्रेम मंदिर का लोकार्पण 17 फ़रवरी को वैदिक मंत्रोच्चार व प्रेम कीर्तन के साथ किया गया। 54 एकड़ में निर्मित यह प्रेम मंदिर 125 फुट ऊंचा, 122 फुट लम्बा और 115 फुट चौड़ा है। इसमें ख़ूबसूरत उद्यानों के बीच फ़व्वारे, श्रीराधा कृष्ण की मनोहर झांकियां, श्रीगोवर्धन धारण लीला, कालिया नाग दमन लीला, झूलन लीलाएं सुसज्जित की गई हैं।
प्रेम मंदिर वास्तुकला के माध्यम से दिव्य प्रेम को साकार करता है। दिव्य प्रेम का संदेश देने वाले इस मंदिर के द्वार सभी दिशाओं में खुलते हैं। मुख्य प्रवेश द्वारों पर अष्ट मयूरों के नक़्क़ाशीदार तोरण बनाए गए हैं। पूरे मंदिर की बाहरी दीवारों पर श्रीराधा-कृष्ण की लीलाओं को शिल्पकारों ने मूर्त रूप दिया गया है। पूरे मंदिर में 94 कलामंडित स्तम्भ हैं, जिसमें किंकिरी व मंजरी सखियों के विग्रह दर्शाए गए हैं। गर्भगृह के अंदर व बाहर प्राचीन भारतीय वास्तुशिल्प का उत्कृष्ट प्रदर्शन करती हुई नक़्क़ाशी व पच्चीकारी सभी को मोहित करती है। यहां संगमरमर की चिकनी स्लेटों पर ‘राधा गोविंद गीत’ के सरल व सारगर्भित दोहे प्रस्तुत किए गए हैं, जो भक्तियोग से भगवद् प्राप्ति के सरल व वेदसम्मत मार्ग प्रतिपादित करते हैं।
आध्यात्म
आज पूरा देश मना रहा रामनवमी, जानिए इसके पीछे की पूरी पौराणिक कहानी
नई दिल्ली। आज पूरे देश में रामनवमी का त्यौहार बड़ी धूम धाम से मनाया जा रहा है। पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक इस दिन भगवान राम का जन्म हुआ था। जो विष्णु का सातवां अवतार थे। रामनवमी का त्यौहार चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी को मनाया जाता है। आइये जानते हैं इसके पीछे की पौराणिक कहानी।
पौराणिक कथाओं के मुताबिक भगवान राम ने भी मां दुर्गा की पूजा की थी, जिससे कि उन्हें युद्ध के समय विजय मिली थी। साथ ही माना जाता है इस दिन गोस्वामी तुलसीदास जी ने रामचरित मानस की रचना का आरंभ किया। राम नवमी का व्रत जो भी करता है वह व्यक्ति पापों से मुक्त होता है और साथ ही उसे शुभ फल प्रदान होता है
रामनवमी का इतिहास-
महाकाव्य रामायण के अनुसार अयोध्या के राजा दशरथ की तीन पत्नियां थी। कौशल्या, सुमित्रा और कैकयी। शादी को काफी समय बीत जाने के बाद भी राजा दशरथ के घर किसी बालक की किलकारी नहीं गूंजी थी। इसके उपचार के लिए ऋषि वशिष्ट ने राजा दशरथ से पुत्र प्राप्ति के लिए कमेश्टी यज्ञ कराने के लिए कहा। जिसे सुनकर दशरथ खुश हो गए और उन्होंने महर्षि रुशया शरुंगा से यज्ञ करने की विन्नती की। महर्षि ने दशरथ की विन्नती स्वीकार कर ली। यज्ञ के दौरान महर्षि ने तीनों रानियों को प्रसाद के रूप में खाने के लिए खीर दी। इसके कुछ दिनों बाद ही तीनों रानियां गर्भवती हो गईं।
नौ माह बाद चैत्र मास में राजा दशरथ की बड़ी रानी कौशल्या ने भगवान राम को जन्म दिया, कैकयी ने भरत को और सुमित्रा ने दो जुड़वा बच्चे लक्ष्मण और शत्रुघन को जन्म दिया। भगवान विष्णु ने श्री राम के रूप में धरती पर जन्म इसलिए लिया ताकि वे दुष्ट प्राणियों का नरसंहार कर सके।
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