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गौरी लंकेश केस: ‘कलम की ताकत न मिटी थी न कभी मिटेगी’, जाने पूरी कहानी

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बेंगलुरु| कहते है कि, ‘कलम से निकली आवाज में इतनी ताक़त होती है, जिसे लाख चाहे जितना भी दबा लो पर वह कभी शांत नहीं होती।

कहने को तो ‘पत्रकारिता लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ है’, लेकिन जब बात आती है। पत्रकारों की सुरक्षा की तो सरकार भूल जाती है कि इस देश को जागृत करने में, लोगों को जागरूक करने में इस चौथे स्तम्भ का कितना बड़ा योगदान है।

आए दिन जिस तरह से किसी न किसी पत्रकार के मरने की खबर समाने आती है। वो हर एक मौत न सिर्फ पत्रकारों का बल्कि कलम का भी गला घोंट रही है।

इनदिनों ‘गौरी लंकेश’ की हत्या का किस्सा अखबारों से लेकर सोशल मीडिया तक चर्चे में है क्यूंकि भावी पत्रकारों को भी बस चिंता है तो इस बात से कि क्या एक सशक्त माध्यम इतना ही सशक्त रह गया है?

बेंगलुरु में वरिष्ठ पत्रकार गौरी लंकेश की गोली मारकर हत्या कर दी गई। हमलावरों ने उनके घर में घुसकर उन्हें गोली मार दी। वैचारिक मतभेदों को लेकर वह कुछ लोगों के निशाने पर थीं।

बता दें, इस वक़्त कर्नाटक पुलिस वरिष्ठ पत्रकार गौरी लंकेश के हत्यारों की तलाश में जुटी है। जिनकी पिछली रात बेंगलुरु में उनके आवास पर गोली मारकर हत्या कर दी गई थी।

पुलिस उपायुक्त (पश्चिम) एम.एन. अनुचेत ने बुधवार को आईएएनएस को बताया, इस मामले की जांच के लिए गठित की गई तीन विशेष टीमें संदिग्ध हत्यारों की तलाश में जुटी हैं। हम जांच चौकियों और अंतर्राज्यीय सीमाओं पर लोगों और वाहनों की जांच कर रहे हैं।

अनुचेत ने कहा, हमने पड़ोसी राज्यों आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र और तमिलाडु में भी अपने समकक्षों को सतर्क रहने को कहा है।

लंकेश (55) की तीन अज्ञात व्यक्तियों ने उस समय गोली मारकर हत्या कर दी जब वह अपने कार्यालय से घर लौटी थीं। उन पर सात गोलियां दागी गई थीं।

बेंगलुरु पुलिस आयुक्त टी. सुनील कुमार ने मंगलवार रात संवाददाताओं को बताया, सात गोलियों में से चार निशाना चूककर घर की दीवार पर लगीं। तीन गोलियां उन्हें (लंकेश को) लगीं, जिनमें से दो उनकी छाती में और एक माथे पर लगी।

लंकेश कन्नड़ भाषा की साप्ताहिक ‘गौरी लंकेश’ पत्रिका की संपादक थीं। लोग उन्हे एक निर्भीक और बेबाक पत्रकार के रूप में जानते थे।
वह कर्नाटक की सिविल सोसायटी की चर्चित चेहरा थीं। गौरी कन्नड़ पत्रकारिता में एक नए मानदंड स्थापित करने वाले पी. लंकेश की बड़ी बेटी थीं। वह वामपंथी विचारधारा से प्रभावित थीं और हिंदुत्ववादी राजनीति की मुखर आलोचक थीं।

 

 

नेशनल

इंदौर से कांग्रेस प्रत्याशी अक्षय कांति ने वापस लिया नामांकन, बीजेपी में होंगे शामिल

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इंदौर। लोकसभा चुनाव से पहले ही इंदौर से कांग्रेस उम्मीदवार अक्षय कांति बम ने अपना नामांकन वापस ले लिया है। अक्षय कांति के इस फैसले फैसले से कांग्रेस को बड़ा झटका लगा है। कलेक्टर कार्यालय में जाकर बीजेपी के उम्मीदवार शंकर लालवानी के सामने उन्होंने अपना पर्चा वापस लिया। इस दौरान बीजेपी के नेता रमेश मेंदोला भी साथ थे। इसके बाद में कैबिनेट मंत्री कैलाश विजयवर्गीय और विधायक मेंदोला के साथ भाजपा कार्यालय के लिए रवाना हो गए। माना जा रहा है कि बम भाजपा की सदस्‍यता लेंगे।

इंदौर कैलाश विजयवर्गीय का गढ़ माना जाता है। विजयवर्गीय इंदौर 1 से विधायक हैं। उन्होंने एक्स पर अक्षय कांति बम की तस्वीर के साथ लिखा, ”इंदौर से कांग्रेस के लोकसभा प्रत्याशी अक्षय कांति बम जी का माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा, मुख्यमंत्री मोहन यादव और प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा के नेतृत्व में बीजेपी में स्वागत है।”

इसके बाद इंदौर सीट पर अब भाजपा के लिए मैदान लगभग साफ हो गया है, उसके सामने निर्दलीय और अन्य दलों के अलावा कोई प्रत्याशी नहीं बचा। नामांकन वापस लेने के बाद अक्षय कांति बम ने कहा कि जब से उन्होंने नामांकन जमा किया था, तब से ही कांग्रेस की ओर से उन्हें कोई सपोर्ट नहीं मिल रहा था। हालांकि, राजनीतिक गलियारों में यह भी कयास लगाए जा रहे हैं कि फॉर्म भरने के बाद से ही कांग्रेस अक्षय कांति पर दबाव बना रही थी।

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