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कार्बन उत्सर्जन और इंसानी वजूद
प्रभुनाथ शुक्ल
दक्षिण भारत में सुनामी के बाद चेन्नई में आई जलप्रलय हमें सोचने को बेबस कर दिया है, लेकिन हम पर भोगवाद की संस्कृति हावी है। हम प्रकृति के बदलते स्वरूप को नहीं समझ पा रहे हैं। हम हादसों से सबक नहीं लेते हैं। दुनियाभर में बढ़ता जलवायु परिवर्तन हमारे सामने महामारी के रूप में उभर रहा है।
कार्बन उत्सर्जन हमारे लिए चुनौती बनी है, लेकिन हम इस पर कुछ अधिक पहल नहीं कर पा रहे हैं। हमारी विकासवादी सोच हमें विनाश की ओर ढकेल रही है। ग्लोबल वार्मिग के कारण धरती गर्म हो रही है। प्रकृति की संस्कृति बदल रही है। इसका कारण मानव है।
हमें अपने विज्ञान पर पूरा भरोसा है कि हम उस पर जीत हासिल कर लेंगे। लेकिन इंसान शायद यह भूल रहा है कि जहां से उसका शोध खत्म होता है। प्रकृति वहां से अपनी शुरुआत करती है। दुनियाभर में ग्लोबल वार्मिग का सच हमारे सामने आने लगा है।
इंसान की भौतिक और विकासवादी सोच उसे मुसीबत की ओर धकेल रही है। विकास की धृतराष्ट्री नीति हमें प्रकृति और इंसान के मध्य होने वाले अघोषित महाभारत की ओर ले जा रही है। प्रकृति के खिलाफ इंसान और उसका विज्ञान जिस तरह युद्ध छेड़ रखा है। उसका परिणाम भयंकर होगा। भौमिक विकास की रणनीति इंसान का वजूद खत्म कर देगी।
हम अंधी विकास की दौड़ में प्रकृति से संतुलन बनाए रखने में नाकामयाब रहे हैं। प्रकृति और पर्यावरण संरक्षण के लिए बनाए गए कानून सिर्फ बस सिर्फ किताबी साबित हो रहे हैं। ओजन परत में होल के कारण धरती का तामपान बढ़ रहा है। कार्बन उत्सर्जन पर हम विराम नहीं लगा पा रहे हैं। इसका नतीजा है कि साल दर साल तपन बढ़ रहा है। कार्बन उत्सर्जन पर विराम नहीं लग पा रहा है। भारत में तेजी से जलवायु परिवर्तन हो रहा है। कभी सूख कभी बाढ़ जैसी आपदाएं हमारे सामाने हैं।
हमारे लिए यह सबसे चिंता का विषय है। अगर हम ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन की बात करें तो दुनियाभर में सिर्फ 10 देश, जिसमें चीन, अमेरिका, यूरोपिय देश, भारत, रूस, इंडोनेशिया, ब्राजील, कनाडा, जापान जैसे देश 70 फीसदी ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन करते हैं।
57 फीसदी कार्बनडाइऑक्साइड कोयले से उत्सर्जित होती है, जबकि जैव ईंधन से यह 17 फीसदी होती है। इसके अलावा 14 फीसदी मीथेन, 8 फीसदी नाइटेट ऑक्साइड और बाकी मंे अन्य गैसें शामिल हैं। इनसे पूरी तरह हमारे ग्रीन हाउस पर प्रभाव पड़ता है। 100 सालों में धरती के तापमान में 0.8 फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की गई है। इसमें भी 0.6 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि 30 सालों में हुई है।
कार्बन उत्सर्जन मामले में भारत तीसरे स्थान पर है। अकेले चीन दुनिया में 11 बिलियन टन कार्बन उत्सर्जित करता है। चीन भारत से चौगुना और अमेरिका से दोगुना कार्बन का उत्सर्जन करता है। कार्बन का प्रभााव रोकने के लिए वनों की अधिकता जरूरी है। भारत इस मामले में पीछे है, क्योंकि यहां 24 फीसदी ही जंगल हैं, जबकि रूस के पास 45 और जापान के पास 67 फीसदी जंगल हैं। इसका सीधा असर हम देख रहे हैं।
यह परिवर्तन हमारी कृषि आधारित अर्थ व्यवस्था को प्रभावित कर रहा है। दुनिया के सबसे प्रदूषित दस शहरों में दिल्ली और पटना पहले और दूसरे नंबर पर हैं, जबकि देश के 13 शहर दुनिया के सबसे प्रदूषित शहरों में शुमार हैं।
ग्लोबल वार्मिग के पीछे अस्सी फीसदी जलवायु परिवर्तन ही मुख्य कारण हैं। लेकिन यह समस्या थमने वाली नहीं है। इंसान अगर प्रकृति से तालमेल नहीं बना सका तो उसका अस्तित्व खत्म हो जाएगा। प्रकृति की चेतावनी को हमें समझने की जरूरत है। ग्लोबल वार्मिग के कारण ग्लेशियर पिघल रहे हैं। समुद्र के जलस्तर में वृद्धि हो रही है, जबकि जमीन के अंदर का पेयजल घट रहा है।
धरती पर बढ़ता प्रकृति का गुस्सा हमारे लिए खतरा बन गया है। भूकंप, बाढ़, सूखा, भू-स्खलन के बाद अब लू अस्तित्व मिटाने को तैयार है। अभी हम उतराखंड की त्रासदी से पूरी तरह नहीं निपट पाए हैं। प्राकृतिक जलजले के बाद वहां का ढांचागत विकास आज भी अधूरा है। पुल, सड़क और दूसरी इमारतें हमें उस त्रासदी की याद दिलाती हैं।
उत्तराखंड की धार्मिक यात्रा करने में भी आज भी लोग करता रहे हैं। प्राकृतिक विनाशलीला का सबसे बड़ा उदाहरण हमारे सामने पुणे का मलिन गांव हैं, जहां पिछले साल पहाड़ खिसकने से पूरा गांव जमींदोज हो गया था। गांव का का पता ही नहीं चला।
नेपाल में आए भूकंप की तबाही हम देख चुके हैं। प्रकृति हमें अपने तांडव से बार-बार चेतावनी दे रही है। लेकिन हम हैं कि उसकी ओर ध्यान ही नहीं दे रहे हैं, जिससे स्थिति बुरी हो चली है। औद्योगिक संस्थानों, सड़कों, पुलों और शहरीकरण के चलते वनों का सफाया हो रहा है। वन भूमि का विस्तार घट रहा है। राष्ट्रीय राजमार्ग निर्माण के लिए आम और दूसरे पुराने वृक्षों को धराशायी किया जा रहा है। इसका असर है कि धरती का तापमान बढ़ रहा है। इस पर हमें गंभीर चिंतन और चिंता करने की जरूरत है, वरना इंसान का वजूद अपने आप मिट जाएगा।
इसकी नींव इंसान ने डाल दी है। साल दर साल धरती पर प्रकृति का नग्न तांडव बढ़ता जाएगा। इंसान अपनी गलतियों के कारण प्रकृति से यह अघोषित युद्ध लड़ना पड़ेगा। इस जंग में आखिरकार इंसान हार रहा और हारेगा, जबकि प्रकृति विजयी होगी।
यह सब किया धरा इंसान का है। वह अपने को सबसे बुद्धिशाली और कौशलयुक्त समझता है। वह अपनी विकासवादी सोच के बल पर प्रकृति और उसकी कृति पर विजय पाना चाहता है। संभवत: यही उसकी सबसे बड़ी भूल है। प्रकृति पर हम विजय प्राप्त नहीं कर सकते हैं।
हमें विज्ञान और विकास के साथ प्रकृति से सामंजस्य स्थापित करना होगा। अगर हम ऐसा नहीं कर पाते हैं तो आने वाला वक्त इंसानों के लिए बेहद बुरा होगा और हम बाढ़, सूखा, सूनामी, हिम, भू-स्खलन जैसे प्राकृतिक आपदाओं से लड़ते रहेंगे। जलवायु परिवर्तन हमें ले डूबेगा।
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं)
नेशनल
जानिए कौन हैं वो चार लोग, जिन्हें पीएम मोदी ने नामांकन के लिए अपना प्रस्तावक चुना
वाराणसी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वाराणसी के काल भैरव मंदिर में दर्शन करने के बाद अपना नामांकन दाखिल कर दिया। पीएम मोदी ने वाराणसी से तीसरी बार अपना नामांकन दाखिल किया है। पीएम मोदी के नामांकन में गृह मंत्री अमित शाह और राजनाथ सिंह समेत 20 केंद्रीय मंत्री मौजूद रहे। इसके अलावा 12 राज्यों के सीएम भी शामिल हुए। पीएम मोदी के नामांकन के दौरान उनके साथ चार प्रस्तावक भी कलेक्ट्रेट में मौजूद रहे।
इनमें एक पुजारी, दो ओबीसी और एक दलित समुदाय के व्यक्ति का नाम है। दरअसल पीएम मोदी के नामांकन के दौरान चार प्रस्तावक मौजूद रहे। इनमें पहला नाम आचार्य गणेश्वर शास्त्री का है, जो कि पुजारी हैं। इसके बाद बैजनाथ पटेल पीएम मोदी के नामांकन के दौरान प्रस्तावक बने, जो ओबीसी समुदाय से आते हैं। वहीं लालचंद कुशवाहा भी पीएम के नामांकन में प्रस्तावक के तौर पर शामिल हुए। ये भी ओबीसी समाज से आते हैं। पीएम मोदी के प्रस्तावकों में आखिरी नाम संजय सोनकर का भी है, जो कि दलित समुदाय से हैं।
चुनाव में प्रस्तावक की भूमिका अहम होती है। ये ही वे लोग होते हैं, जो किसी उम्मीदवार के नाम का प्रस्ताव रखते हैं। निर्वाचन आयोग के मुताबिक, प्रस्तावक वे स्थानीय लोग होते हैं, जो किसी उम्मीदवार को चुनाव लड़ने के लिए अपनी ओर से प्रस्तावित करते हैं। आमतौर पर नामांकन के लिए किसी महत्वपूर्ण दल के वीआईपी कैंडिडेट के लिए पांच और आम उम्मीदवार के लिए दस प्रस्तावकों की जरूरत होती है।
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