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आडवाणी के बयान का निहितार्थ
भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी ने आपातकाल संबंधी बयान में बहस की बहुत बड़ी संभावना छोड़ी है। सभी पार्टियां अपनी-अपनी सुविधा से इसकी व्याख्या कर रही हैं। इसमें क्षेत्रीय दल भी कूद चुके हैं। खासतौर पर इस बयान ने भाजपा विरोधी पार्टियों को हमले का एक मौका दिया है, लेकिन विपक्षी पार्टियां आडवाणी के पूरे बयान को पढ़ती तो शायद उनकी खुशी इस तरह सामने नहीं आती। आडवाणी ने साफतौर पर आपातकाल के बाद बनी सभी सरकारों की चर्चा की है। उनके बयान के इस अंश पर खास ध्यान देना होगा। उन्होंने कहा, ‘मैं नहीं समझता कि आपातकाल के बाद ऐसा कुछ किया गया जो आश्वस्त करता हो कि नागरिक स्वतंत्रता का फिर हनन नहीं होगा।’ जाहिर है कि इसमें 1977 से लेकर आज तक की सभी सरकारें शामिल हैं। मोरारजी देसाई, चरण सिंह, इंदिरा गांधी, राजीव गांधी, वीपी सिंह, चंद्रशेखर, पीवी नरसिंह राव, एचडी देवगौड़ा, इंद्रकुमार गुजराल, अटल बिहारी वाजपेयी, मनमोहन सिंह और अब नरेंद्र मोदी, सभी की सरकारें इस बयान के दायरे में हैं। अटल सरकार में अडवाणी नंबर दो की स्थिति में थे। उस सरकार के पूरे कार्यकाल में गृह मंत्रालय उनके पास था। जाहिर है, उन्होंने अपने को भी बरी नहीं किया है। बयान की पहली बात यह कि इसमें विपक्ष के लिए खुश होने की कोई बात नहीं है।
जिस अवधि की चर्चा उन्होंने की है, उसमें सर्वाधिक समय तक कांग्रेस की सरकार ही रही है। इसमें भी राजीव गांधी और पीवी नरसिंह राव को पूरे एक-एक और मनमोहन सिंह को लगातार दो कार्यकाल तक सरकार चलाने का अवसर मिला था। इसमें 1980 में बनी इंदिरा गांधी की सरकार को जोड़ लें, तो पता चलेगा कि इस अवधि में चौबीस वर्ष कांग्रेस के नेतृत्व वाली सरकार रही है। दूसरी तरफ, भाजपा की बात करें तो छह वर्ष अटल बिहारी प्रधानमंत्री रहे, नरेंद्र मोदी को अभी इस पद पर एक वर्ष हुआ है। इस तरह यह अवधि सात वर्ष की हुई। जनता पार्टी सरकार में अटल विदेश मंत्री और आडवाणी सूचना एवं प्रसारण मंत्री थे। तब आडवाणी ने विपक्षी पार्टियों को आकाशवाणी से चुनाव प्रचार का मौका दिया था। आडवाणी के ताजा बयान को लेकर कांग्रेस वर्तमान केंद्र सरकार पर निशान कैसे लगा सकती है। नरेंद्र मोदी की सरकार ने तो अभी एक वर्ष ही पूरा किया है। आडवाणी करीब चार दशक की बात कर रहे हैं। विपक्ष ने आडवाणी के पूरे बयान को पढ़ने की जहमत ही नहीं उठाई। इसीलिए उन्होंने जल्दीबाजी में बयान से सहमति जता दी। विपक्ष ने सतही तौर पर बयान को देखा और मान लिया कि इसमें वर्तमान सरकार की आलोचना की गई है। कहा गया कि आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी अपनी उपेक्षा से आहत हैं, जबकि आडवाणी इसी बयान में कहते हैं, ‘मैं आज यह नहीं कहता कि राजनीतिक नेतृत्व परिपक्व नहीं है, लेकिन यह विश्वास नहीं है कि आपातकाल फिर नहीं हो सकता।’ लेकिन जिस बयान में करीब चार दशकों के क्रियाकलाप को समेटा गया, विपक्ष ने उसमें से अपनी प्रतिक्रिया के लिए केवल वर्ष को अलग निकाल लिया। कांग्रेस प्रवक्ता ने कहा- वह मोदी के शासन के दौरान आपातकाल जैसी स्थिति की ओर इशारा कर रहे हैं।
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने इस बयान का अपने ढंग से अर्थ निकाला। उन्होंने कहा कि आडवाणी जी के बयान को खारिज नहीं किया जा सकता, दिल्ली में इसका पहला प्रयोग हो रहा है। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को भी इस बयान के बाद लगा कि वह हर दिन आपातकाल जैसी स्थिति का सामना कर रहे हैं। कांग्रेस से अपना राजनीतिक जीवन शुरू करने वाले आज के सपा नेता नरेश अग्रवाल भी पीछे कहां रहते, उन्होंेने कहा कि देश में अभी जो व्यवस्था चल रही है, कहीं न कहीं इससे तानाशाही व्यवहार झलक रहा है। कम्युनिस्ट पार्टियां भी मोदी सरकार के एक वर्ष को ध्यान में रखकर टिप्पणी कर रही है। पश्चिम बंगाल के अपने तीस वर्षीय शासन पर इन्होंने विचार नहीं किया, जब इनके कैडर विरोधियों के साथ अक्सर हिंसक रूप में पेश आते हैं। जाहिर है कि आडवाणी के बयान की अलग-अलग व्याख्या हो रही है। यह ठीक है कि उन्होंने आपातकाल की संभावना को समाप्त करने की दिशा में हुए प्रयासों को पर्याप्त व प्रभावी नहीं माना। उन्होंने किसी एक सरकार को इसके लिए दोषी नहीं माना। फिर भी आडवाणी जैसे वरिष्ठ व अनुभवी नेता को कहीं अधिक स्पष्ट बयान देना चाहिए था।
संविधान संशोधन के जरिए आपातकल लगाने की व्यवस्था को पहले के मुकाबले कठिन बनाया गया है। वर्ष 1977 के चुनाव परिणाम भी नजीर की तरह है। यानी व्यावहारिक और सैद्धांतिक, दोनों दृष्टि से आपातकाल लगाना कठिन है। कोई भी सरकार इसका जोखिम उठाने से बचेगी। ऐसे में अडवाणी को यह अवश्य बताना चाहिए था कि वह संविधान में इसके मद्देनजर किस तरह का और बदलाव चाहते हैं। वह स्वयं लोकसभा के सदस्य हैं। संविधान संशोधन प्रस्ताव लाने का उन्हें पूरा अधिकार है। वैसे यह मानना पड़ेगा कि अनेक प्रदेशों में राजनीतिक असहिष्णुता बढ़ी है। सत्ता के विरोध में उठने वाली आवाज को दबाने का प्रयास होता है। इस प्रवृत्ति को दूर करना होगा। जहां तक केंद्र की मोदी सरकार का प्रश्न है, उसने केंद्रीय कार्यालयों में मंत्री से लेकर संतरी तक, सभी को समय से आने के लिए प्रेरित किया है, भाई-भतीजावाद पर अंकुश लगाया है, सत्ता के गलियारे से दलालों को हटाया है, भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाया है। ये फैसले पिछले समय को देखते हुए कठोर लग सकते हैं, लेकिन इनसे एक न्यायोचित, वैधानिक लोक कल्याणकारी व भ्रष्टाचार मुक्त कार्यसंस्कृति विकसित होगी। यदि इस आदर्श कार्य संस्कृति में किसी को आपातकाल दिखता हो, तो उसे सबसे पहले आत्मचिंतन करना चाहिए।
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15 दिन की पैरोल मिलने के बाद जेल से बाहर आए पूर्व बाहुबली विधायक अनंत सिंह, समर्थकों ने किया स्वागत
पटना। पूर्व बाहुबली विधायक अनंत सिंह रविवार को पटना की बेऊर जेल से बाहर निकल गये हैं। गृह विभाग से हरी झंडी मिलने के बाद अनंत सिंह को जेल से 15 दिनों की पैरोल मिली है। वह सुबह लगभग 4:00 बजे जेल से बाहर निकले।आनंद सिंह के जेल से बाहर निकलने की सूचना के साथ ही उनके समर्थकों में काफी उत्साह का माहौल है। अनंत सिंह लगभग 5 वर्षों से जेल में बंद है। अनंत सिंह पर एके 47 रखने का आरोप है, जिसके तहत कोर्ट ने उन्हें 10 वर्ष की सजा सुनाई थी। तब से मोकामा के पूर्व विधायक अनंत सिंह पटना के बेउर जेल में सजायाफ्ता बंदी के रूप में सजा काट रहे हैं।
जानकारी के मुताबिक़ आपसी पारिवारिक बंटवारे को लेकर अनंत सिंह ने न्यायालय में कोर्ट से पैरोल पर इसके लिए आदेश मांगा था। पेरोल पर आदेश मिलने के बाद आनंद सिंह को लेकर गृह विभाग ने यह आदेश जारी किया था। रविवार की अहले सुबह जब अनंत सिंह को 15 दिनों के पैरोल पर बेउर जेल से बाहर निकाला जा रहा था, उस समय जेल के बाहरी एवं भीतरी सुरक्षा को चुस्त दुरुस्त कर दिया गया था।
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