जुर्म
अहमदाबाद सीरियल ब्लास्ट केस में आया फैसला, 38 को हुई मौत की सज़ा
2008 में अहमदाबाद में हुए धमाकों के 49 दोषियों में से 38 को मौत की सजा सुनाई गई है। एक विशेष अदालत ने इस फैसले के साथ साथ बाकी 11 दोषियों को मृत्यु तक कारावास की सजा सुनाई है। 26 जुलाई, 2008 को अहमदाबाद में कई स्थानों पर करीब 70 मिनटों के अंदर कुल 22 बम धमाके हुए थे जिनमें 56 लोग मारे गए थे और करीब 200 लोग घायल हो गए थे। 78 लोगों पर इन धमाकों में शामिल होने का आरोप लगा था।
इसी साल आठ फरवरी को इस मामले में सुनवाई को जल्दी पूरी करने के लिए नियुक्त की कई विशेष अदालत ने 78 में से 49 को दोषी पाया था। विशेष जज एआर पटेल ने इन 49 में से 48 दोषियों के ऊपर प्रति व्यक्ति 2 लाख 85 हज़ार रुपयों का जुर्माना भी लगाया। इसके अलावा उन्होंने गंभीर रूप से घायल लोगों को 50,000 रुपए और कम गंभीर रूप से घायल लोगों को 25,000 रुपए हर्जाना दिए जाने का भी आदेश दिया। इन बम धमाकों में अहमदाबाद के कुछ अस्पतालों, बसों और दूसरे सार्वजनिक स्थानों को निशाना बनाया गया था। पार्क की हुई साइकिलों और गाड़ियों में बम छुपाए गए थे जो 70 मिनटों के अंदर अंदर एक के बाद एक फट पड़े।
धमाकों के बाद कई मीडिया संगठनों ने दावा किया कि उन्हें इंडियन मुजाहिद्दीन नाम के एक संगठन से ईमेल मिली थी जिसमें उसने धमाकों की जिम्मेदारी ली थी। संगठन ने दावा किया था कि ये धमाके 2002 के गुजरात दंगों और 1992 में अयोध्या में बाबरी मस्जिद को गिरा दिए जाने के बदले में किए गए थे।
पुलिस ने कुल 35 मामले दर्ज किए, जिनमें से 20 अहमदाबाद में और 15 सूरत में दर्ज किए गए। सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में मौत की सजा के संबंध में एक महत्वपूर्ण फैसले के तहत कहा कि जुर्म कितना भी खौफनाक क्यों ना हो, दोषी की मौत की सजा को कम किए जाने के कारणों पर जजों को विचार करना चाहिए। अदालत ने कहा तहत कि मौत की सजा अपराधियों को डराने का और कई मामलों में कड़ी कार्रवाई की समाज की मांग की प्रतिक्रिया के रूप में जरूर काम करती है, लेकिन अब स्थिति बदल गई है। सजा देने के सिद्धांतों का अब और विस्तार हो गया है और अब मानव जीवन के संरक्षण के सिद्धांत को भी अहमियत दी जाती है।
उत्तर प्रदेश
मेरी पत्नी से शिक्षक का था अफेयर, इसलिए मार डाला; वकील के कबूलनामे से आया नया ट्विस्ट
कानपुर। उप्र के कानपुर के पनकी के पतरसा में शिक्षक दयाराम सोनकर की हत्या के आरोप में गिरफ्तार वकील संजीव कुमार के बयान ने पेंच फंसा दिया है। वकील ने जो बयान दिया, उसके मुताबिक शिक्षक के उसकी पत्नी से अवैध संबंध थे। चूंकि शिक्षक वर्तमान में कानपुर देहात में ही रह रहा था।
इसके चलते पत्नी भी कानपुर देहात स्थित मायके में ही थी। इसलिए उसने रविवार को दयाराम को बुलाकर अकेले ही बंद कमरे में जिंदा जलाकर मार डाला। वहीं, मृतक के भाई का कहना है कि भाभी के संबंध ढाबा संचालक से थे। विरोध करने पर भाभी ने प्रेमी और वकील के साथ मिलकर भाई की हत्या कर दी।
मृतक दयाराम के छोटे भाई अनुज ने पुलिस को दी तहरीर में बताया कि भाई दयाराम ने अपने मोबाइल फोन से उन्हें कॉल करके बताया था कि संजीव, पवन और संगीता ने उन्हें कमरे में बंद करके आग लगा दी है और भाग गए हैं। तहरीर के आधार पर पुलिस ने जब वकील संजीव को उठाकर पूछताछ शुरू की तो कहानी में नया मोड़ आ गया।
पुलिस सूत्रों के मुताबिक संजीव ने बताया कि दयाराम जिस कॉलेज में पढ़ाता था, उसी में संजीव का साला शिक्षक है। दोनों में गहरी दोस्ती थी। दयाराम का संजीव के साले के घर में भी आना-जाना था। संजीव को दयाराम और उसकी पत्नी के बीच अवैध संबंध का शक था।
संजीव के अनुसार, पत्नी को कई बार घर लाने की कोशिश की, लेकिन वो राजी नहीं हुई। पत्नी से संबंधों को लेकर बातचीत के लिए दयाराम को घर बुलाया। इसके बाद पेट्रोल डालकर आग लगा दी। हालांकि, पुलिस को अन्य हत्यारोपियों की घटनास्थल के आसपास लोकेशन भी नहीं मिली है। दोनों कहानियों की तह तक जाने के लिए पुलिस अब सक्ष्यों की मदद ले रही है।
संजीव कई बार बुला चुका था दयाराम को
अनुज ने बताया कि संजीव कई बार दयाराम को फोन करके उसकी पत्नी से समझौता कराने की बात कहकर बुला चुका था। परिवार वालों की राय के बाद वे समझौते के लिए गए थे, वहां सभी ने मिलकर उनके भाई की हत्या कर दी।
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