आध्यात्म
कल है काल भैरव अष्टमी तिथि, इस तरह करें पूजा-अर्चना
नई दिल्ली। मार्गशीर्ष मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को भगवान शिव के अवतार काल भैरव (kaal bhairav Ashtami) का अवतरण हुआ था। इस बार यह शुभ तिथि 16 नवंबर दिन बुधवार को है। मान्यता है कि इस दिन व्रत और पूजा-अर्चना करने से भगवान शिव जल्द प्रसन्न होते हैं और अपने भक्तों की इच्छाओं को पूरा करते हैं।
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काल भैरव की पूजा से अमोघ फल की प्राप्ति होती है और नकारात्मक शक्तियां दूर रहती हैं। काल भैरव भगवान शिव का रूद्र रूप है, इनको तंत्र-मंत्र का देवता भी माना गया है। काल भैरवाष्टमी पर इस तरह करें भगवान काल भैरव की पूजा-अर्चना और इस दिन कुछ उपाय भी करेंगे तो जीवन में सुख-समृद्धि भी बनी रहेगी।
काल भैरव की इस तरह करें पूजा-अर्चना
ज्योतिषाचार्यों के अनुसार, भगवान काल भैरव का श्रृंगार सिंदूर और चमेली के तेल से किया जाता है। भगवान शिव की तरह ही काल भैरव की पूजा प्रदोष काल में की जाती है अर्थात सूर्यास्त के बाद ही काल भैरव देव की पूजा होती है।
प्रदोष काल में पूजा से पहले स्नान और स्वच्छ वस्त्र धार करें। इसके बाद भैरव मंदिर में भगवान काल भैरव या शिवलिंग पर बेल पत्र पर लाल या सफेद चंदन से ‘ऊँ’ लिखकर ‘ऊँ कालभैरवाय नम:’ मंत्र का जप करते हुए चढ़ाएं और बेल पत्र चढ़ाते समय अपना मुख उत्तर की तरफ रखें।
इसके बाद काल भैरव का श्रृंगार करें और फिर लाल चंदन, अक्षत, फूल, सुपारी, जनेऊ, नारियल, फूल की माला, दक्षिणा आदि अर्पित करें। इसके बाद गुड़-चने या इमरती आदि का भोग जलाएं। काल भैरव की पूजा में हमेशा ध्यान रखें कि सरसों के तेल का दीपक जलाना चाहिए। इसके बाद काले कुत्ते को मीठी रोटी खिलाएं।
काल भैरव के बाद करें शिव परिवार की पूजा
काल भैरव की पूजा करने के बाद शिव परिवार भगवान शिव, माता पार्वती, भगवान गणेश और कार्तिकेयजी की पूजा करनी चाहिए। सभी का अभिषेक करके बेल पत्र, फूल चढ़ाकर माता को लाल चुनरी अर्पित करें। इसके बाद विधि-विधान के साथ पूजा-अर्चना करें और फिर भोग लगाएं। इसके बाद धूप-दीप जलाकर आरती उतारें।
काल भैरवाष्टमी के दिन करें ये चमत्कारिक पाठ
काल भैरवाष्टमी के दिन सभी तरह की नकारात्मक शक्तियों से मुक्ति के लिए ‘ऊँ कालभैरवाय नम:’ मंत्र का जप करते रहना चाहिए और कालभैरवाष्टकम् का पाठ करना चाहिए। ऐसा करने से सभी तरह की नकारात्मक शक्तियां दूर रहती हैं और सकारात्मक ऊर्जा का संचार बना रहता है, जिससे तरक्की के मार्ग प्रशस्त होते हैं।
काल भैरव को अर्पित करें ये चीज
काल भैरव की कृपा प्राप्त करने के लिए इस दिन काल भैरव मंदिर में गुलाब, चंदन या गुगल की अगरबत्ती जलानी चाहिए। इसके साथ ही 21 नींबू की माला को भगवान काल भैरव को चढ़ानी चाहिए। इसके साथ ही गरीब व जरूरतमंद व्यक्तियों की मदद करना चाहिए, उनको आप गर्म कपड़े दे सकते हैं।
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आज पूरा देश मना रहा रामनवमी, जानिए इसके पीछे की पूरी पौराणिक कहानी
नई दिल्ली। आज पूरे देश में रामनवमी का त्यौहार बड़ी धूम धाम से मनाया जा रहा है। पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक इस दिन भगवान राम का जन्म हुआ था। जो विष्णु का सातवां अवतार थे। रामनवमी का त्यौहार चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी को मनाया जाता है। आइये जानते हैं इसके पीछे की पौराणिक कहानी।
पौराणिक कथाओं के मुताबिक भगवान राम ने भी मां दुर्गा की पूजा की थी, जिससे कि उन्हें युद्ध के समय विजय मिली थी। साथ ही माना जाता है इस दिन गोस्वामी तुलसीदास जी ने रामचरित मानस की रचना का आरंभ किया। राम नवमी का व्रत जो भी करता है वह व्यक्ति पापों से मुक्त होता है और साथ ही उसे शुभ फल प्रदान होता है
रामनवमी का इतिहास-
महाकाव्य रामायण के अनुसार अयोध्या के राजा दशरथ की तीन पत्नियां थी। कौशल्या, सुमित्रा और कैकयी। शादी को काफी समय बीत जाने के बाद भी राजा दशरथ के घर किसी बालक की किलकारी नहीं गूंजी थी। इसके उपचार के लिए ऋषि वशिष्ट ने राजा दशरथ से पुत्र प्राप्ति के लिए कमेश्टी यज्ञ कराने के लिए कहा। जिसे सुनकर दशरथ खुश हो गए और उन्होंने महर्षि रुशया शरुंगा से यज्ञ करने की विन्नती की। महर्षि ने दशरथ की विन्नती स्वीकार कर ली। यज्ञ के दौरान महर्षि ने तीनों रानियों को प्रसाद के रूप में खाने के लिए खीर दी। इसके कुछ दिनों बाद ही तीनों रानियां गर्भवती हो गईं।
नौ माह बाद चैत्र मास में राजा दशरथ की बड़ी रानी कौशल्या ने भगवान राम को जन्म दिया, कैकयी ने भरत को और सुमित्रा ने दो जुड़वा बच्चे लक्ष्मण और शत्रुघन को जन्म दिया। भगवान विष्णु ने श्री राम के रूप में धरती पर जन्म इसलिए लिया ताकि वे दुष्ट प्राणियों का नरसंहार कर सके।
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