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SBI ग्राहक तुरंत पहुंचे बैंक, इस तारीख से बंद हो रहा ये एटीएम कार्ड, रुक जाएंगे सारे काम
नई दिल्ली। देश की सबसे बड़ी बैंक स्टेट बैंक ऑफ इंडिया के ग्राहकों के लिए एक बुरी खबर है। अब बैंक की ओर से जारी किए गए पुराने मैजिस्ट्रिप (मैग्नेटिक) डेबिट कार्ड बंद कर दिए जाएंगे। इसकी जगह पर ग्राहकों को ईएमवी चिप वाला डेबिट कार्ड जारी किया जाएगा। ग्राहकों को 31 दिसंबर 2018 तक की महौलत दी गई है। अगर आप लापरवाही दिखाएंगे और अपने पुराने एटीएम कार्ड को नहीं बदलाएंगे तो आपका पुराना कार्ड कोई काम नहीं करेगा क्योंकि एटीएम मशीनें आपका पुराना कार्ड स्वीकार नहीं करेंगी।
घबराएं नहीं, ये करें:
बैंक ने अपने ऑफिशियल ट्विट हैंडल से ट्वीट कर जानकारी दी कि पुराने ATM कार्ड बदलकर उनकी जगह EVM चिप वाला डेबिट कार्ड जारी किया जा रहा है। नए कार्ड के लिए आप ऑनलाइन बैंकिंग से अप्लाई कर सकते हैं। इसके अलावा बैंक की ब्रांच में जाकर अप्लाई करना होगा। बैंक ने फरवरी 2017 में पुराने कार्ड बंद कर दिए थे और अब 31 दिसंबर 2018 से ये इन कार्डस को पूरी तरह से बंद कर दिया जाएगा।
Dear Customers, it’s time to make a shift. As per the RBI guidelines, you are required to change your Magstripe Debit Cards to EMV Chip Debit Cards by the end of 2018. The conversion process is absolutely safe and comes with no charges. Know more: https://t.co/hgDrKXlInp pic.twitter.com/QoLZZSQuEj
— State Bank of India (@TheOfficialSBI) August 10, 2018
बैंक ने अपनी ऑफिशियल वेबसाइट पर भी इसकी जानकारी दी है– https://bank.sbi/portal/web/personal-banking/magstripe-debit-cardholders
सुरक्षित नहीं हैं मैग्नेटिक स्ट्राइप कार्ड:
रिजर्व बैंक ने भी ये माना है कि मैग्नेटिक स्ट्राइप कार्ड टेक्नोलॉजी अब पुरानी हो चुकी है। ऐसे कार्ड बनना अब बंद भी हो गए हैं, क्योंकि ये कार्ड पूरी तरह से सुरक्षित नहीं थे। अब इनकी जगह EMV चिप कार्ड को तैयार किया गया है। सभी पुराने कार्ड को नए चिप कार्ड से बदल दिया जाएगा।
कैसे सुरक्षित हैं नए EVM चिप वाले कार्ड:
EVM चिप वाले डेबिट या क्रेडिट कार्ड पर एक छोटी चिप लगी होती है। इस चिप में आपके खाते की पूरी जानकारी होती है। यह जानकारी इनक्रिप्टेड होती है जिससे कोई आपका डाटा चोरी नहीं कर सकता। EMV चिप कार्ड में ट्रांजैक्शन के दौरान यूजर को सत्यापित करने के लिए एक यूनिक ट्रांजेक्शन कोड जनरेट होता है, जो वेरिफिकेशन को सर्पोट करता है जबकि मैग्नेटिक स्ट्राइप कार्ड में ऐसा नहीं होता है।
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लोकसभा के शोले और रहीम चाचा की खामोशी
सच्चिदा नन्द द्विवेदी एडिटर-इन-चीफ
हिन्दी सिनेमा की कालजई फिल्म शोले के रहीम चाचा का किरदार आपको जरूर याद होगा। उनका एक डायलॉग था जिसमें वो कहते है “इतना सन्नाटा क्यूँ है भाई” उस वक्त पूरे रामगढ़ में किसी के पास इसका जवाब नहीं था, कमोवेश ठीक वैसे ही हालात इस वक्त लोकसभा चुनाव में नजर आ रहे हैं। लोकसभा के चुनाव के दो चरण पूरे हो चुके हैं पर पूरे देश में कहीं भी ऐसा नजर नहीं आता कि हम अगले पाँच साल के लिए अपने नुमाइंदे चुनने जा रहे हैं। एक अजीब खामोशी नुमायाँ है। गांव, कस्बों और शहरों तक में होर्डिंग और पोस्टर नजर नहीं आ रहे हैं और न ही कानफोडू लाऊडस्पीकर पर वोट मांगने वालों का शोर सुनाई दे रहा है, चाय की टपरी और पान के खोखों पर जमा होने वाली भीड़ अपने होंठों को सिले हुए है।
एक वक्त था जब हम लोग चाय की टपरी, पान की दुकान और रास्तों के ढाबों से देश का मूड भांप लेते थे। मतदाताओं के मन में क्या चल रहा है इसका अंदाज लगाना आसान था। लेकिन आज स्थिति उलट है इन जगहों पर खड़ा आम आदमी आपसे ही उल्टा पूछ लेता है ‘और क्या चल रहा है’ इंसान-इंसान के बीच अविश्वास की खाई इतनी गहरी हो गई है कि वो पब्लिक प्लेस पर अब राजनीतिक बात करने से गुरेज करने लगा है। वोटर अपने मन की बात जुबान पर नहीं लाना चाहता हैं क्यूंकी अब वो रेडियो पर ‘मोदी जी’ के मन की बात सुन रहा है और अपने मन की बात अपने मन में रखे हुए है। उसे डर है और ये डर मिश्रित चुप्पी स्वस्थ लोकतंत्र के लिए अच्छा लक्षण नहीं है।
लोकसभा चुनाव के पहले चरण की तरह दूसरे चरण में भी वोटिंग 2019 के मुकाबले कम हुई है। पहले चरण में 21 राज्यों की 102 लोकसभा सीटों पर 64 प्रतिशत वोटिंग हुई थी। जबकि पिछले लोकसभा चुनाव में उन सीटों पर भी 70 प्रतिशत से ज्यादा मतदान हुआ था। ऐसे ही इस बार दूसरे चरण में 13 राज्यों की 88 लोकसभा सीटों पर करीब 63 फीसदी वोट पड़े। यह 2019 के लोकसभा चुनाव में 70.09% मतदान के मुकाबले काफी कम था। यूपी, बिहार, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश और राजस्थान जैसे बड़े राज्यों में वोटिंग उम्मीद से काफी कम रही। यूपी में 54.85%, बिहार में 55.08% , महाराष्ट्र में 57.83% , एमपी में 57.88 % वोटिंग हुई। सबसे अधिक वोट त्रिपुरा, मणिपुर, छत्तीसगढ़ और पश्चिम बंगाल में पड़े। लोकसभा चुनाव के तीसरे चरण में सात मई को वोटिंग है। इसमें 12 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों की 95 सीट पर मतदान होगा, जिसके लिए 1351 उम्मीदवार चुनाव मैदान में हैं।
जब 7 मई, 13 मई, 20 मई, 25 मई और 1 जून को तीसरे, चौथे, पांचवे, छठे और सातवें चरण का मतदान होगा तो इस दौरान देश के अधिकतर हिस्सों में गर्मी के साथ लू का असर दिखाई देगा। भारतीय मौसम विज्ञान विभाग के आंकड़ों से पता चलता है कि लोकसभा चुनाव के लिए प्रचार के दौरान लगभग 72% निर्वाचन क्षेत्रों में अधिकतम तापमान 35°C या इससे अधिक हो सकता है। विशेष रूप से, 59 सीटों पर 40-42 डिग्री सेल्सियस के बीच तापमान का सामना करना पड़ सकता है। जबकि 194 सीटों पर 37.5-से 40 डिग्री सेल्सियस के बीच तापमान देखा जा सकता है। लेकिन इस गर्मी के बीच क्षेत्रीय दलों के नेता काफी तेजी से अपने इलाके के मतदाताओं पर पकड़ बना रहे हैं और उन सवालों को उठा रहे हैं जिनसे देश का किसान, मजदूर और नौजवान चिंतित है। इसलिए उनके प्रति आम जनता की अपेक्षाएं बढ़ी हैं इसलिए विपक्षी गठबंधन के नेताओं की रैलियों में भारी भीड़ आ रही है। जबकि भाजपा की रैलियों का रंग उसके मुकाबले फीका नजर या रहा है।
हालांकि रैली में आने वाली भीड़ जीत का पैमाना नहीं होती इसलिए कुछ कहा नहीं जा सकता। हर दल का अपना एक समर्पित काडर होता है। जबकि आज काडर के नाम पर ज्यादातर दलों के पास सत्ता के छत्ते से चिपकी रहने वाली मधुमक्खी ही ज्यादा नजर या रहीं है ये वो लोग हैं जिन्हें सत्ता की दलाली करने के अवसरों की तलाश होती है। राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ जिसके पास काडर है कार्यकर्ता हैं वो भी खामोश नजर आ रहा है। बहरहाल लगातार कम होते मतदान ने नेताओं की धुकधुकी बढ़ा रखी है। सत्ता पक्ष मतदान प्रतिशत बढ़ाने के लिए परेशान है तो विपक्ष कम प्रतिशत को अपने पक्ष में मानकर मुंगेरीलाल के सपने बुनने में मगन है।
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