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लख़नऊ में मिले सियासी हाथ, कृष्णजन्मभूमि में कौतूहल

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राज्यसभा चुनाव, राष्ट्रीय लोक दल के कांग्रेस, समाजवादी प्रत्याशियों

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राज्यसभा चुनाव, राष्ट्रीय लोक दल के कांग्रेस, समाजवादी प्रत्याशियोंद्वारकेश बर्मन

मथुरा। हाल ही में संपन्‍न हुए राज्यसभा चुनाव में राष्ट्रीय लोकदल के कांग्रेस और समाजवादी प्रत्याशियों को समर्थन ने एक नए गठबंधन की उम्मीदों को जगा दिया है। मिशन 2017 के लिए किये जा रहे प्रयास यदि वास्‍तविक धरातल पर उतरे तो मथुरा में भारतीय जनता पार्टी की राह में भारी अड़चन आने की सम्भावना को नकारा नही जा सकता। सूबे की राजधानी लखनऊ में की जा रही इस राजनैतिक दोस्ती से मथुरा में कौतूहल बढ़ गया है। एक और जहां रालोद और कांग्रेस के नेताओं के उत्साह में वृद्धि हुई हैं, वही समाजवादी टोपी पहने साइकल सवार सहमे हुए हैं।

उत्तर प्रदेश में हुए राज्यसभा चुनावों में तीन बड़े दलों के बीच हुए आपसी गठजोड़ की सफलता के बाद गठबंधन के आगे तक जाने की संभावनाएं प्रबल होती नजर आ रही हैं। आगामी विधामसभा चुनाव में राष्‍ट्रीय लोकदल के दो विधायकों द्वारा कांग्रेस प्रत्याशी कपिल सिब्बल को वोट देने की बात कही जा रही है, पर कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता की मानें तो यह एक रणनीतिक समझौता मात्र था, जिसमें लोकदल ने अपने कोटे के आठ एमएलए में समाजवादी और कांग्रेस को चार-चार वोट देने के निर्देश दिए थे।

रास चुनाव में रालोद-कांग्रेस व सपा के गठबंधन ने बढ़ाई सियासी हलचल

दरअसल पहले बहुजन समाज पार्टी ने राष्ट्रीय लोकदल को कोई महत्व नहीं दिया था। बाद में जनता दल से लोकदल का गठजोड़ बनते बनते बिगड़ गया और लोकदल बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व से वार्ता में जुट गई। भारतीय जनता पार्टी में जाट नेताओं द्वारा विरोध में घिरने के बाद लोक दल का बोरिया बिस्तर यहां से भी सिमट गया तो अब रालोद ने सपा के साथ उम्मीद की अलख जला ली। इस सब के चलते रालोद कांग्रेस के भी शीर्ष नेतृत्व के संपर्क में है। कांग्रेस के विश्वसनीय सूत्रों की मानें तो रालोद यूपीए सरकार में कांग्रेस का घटक दल था और यह गठबंधन अभी भी बरकरार है।

राजनैतिक समीक्षकों की माने तो लोकदल, समाजवादी और कांग्रेस में गठजोड़ अगर हुआ तो रालोद को स्थानीय स्तर पर जनपद की पांच विधानसभा सीटों में से चार सीटों पर चुनाव लड़वाया जा सकता है। यह सभी वह सीटें हैं जिन पर सामुदायिक आंकड़े और पुराने चुनावों के जनादेश को रालोद अपने पक्ष में बताती आई है। वहीं मथुरा-वृंदावन सीट कांग्रेस के हिस्से में दी जानी तो हमेशा की भांति निश्चित है, क्योंकि इस सीट से मौजूदा विधायक और उत्तर प्रदेश कांग्रेस विधान मंडल दल के नेता प्रदीप माथुर को हरा पाना व उनकी कुर्सी को हथिया पाना अच्छे अच्छों के लिए आसान नही होगा।

गौरतलब है की सूबे की मौजूदा सरकार अब तक जनपद में तीन विधानसभा सीटों के लिए प्रत्याशी घोषित कर चुकी है बस उन्हें टिकट देकर औपाचरिक घोषणा ही शेष रह गई है।यदि गठजोड़ साकार रूप लेता है तो प्रत्याशियों की फेहरिस्त में बड़ा फेरबदल होना भी संभव होगा। बहरहाल जो भी हो इस गठबंधन की आहट से कांग्रेसी अत्यधिक उत्साहित नजर आ रहे हैं,तो वहीं समाजवादियों के चहरे पर शिकन की लकीरें और माथे पर पसीना भी स्पष्ट देखा जा सकता है।

राजनेतिक सरगर्मियों की सुगबुगाहट तेज होते ही जनपद में हूटर व् साइकल के झंडे लगीं कारें अब सूबे की राजधानी का रुख कर चुकी है। तो वहीँ दूसरी तरफ पंजे के समर्थकों की गाड़िया कभी नवाबों के शहर तो कभी दस जनपद का रुख करती नजर आ रहों है।इस सब के बीच हेण्डपम्प भी अपनी जमीं तराशने को चहुंओर कटिया दाल बोरवेल की खुदाई में जुत गया है।

कांग्रेस के जिलाअध्यक्ष ठाकुर सोहन सिंह सिसोदिया के अनुसार अभी आइना स्पष्ट नही है, लेकिन वह इस गठजोड़ को सूबे की राजनीति में जनपद मथुरा की दृष्टि से तीनों दलों के लिए ही फायदेमंद करार दे रहे है।जनपद में समाजवादी पार्टी के दत्तक पुत्र कहे जाने वाले डा अशोक अग्रवाल ने इस पुरे मामले पर चुप्पी साध रखी है। रालोद इसलिए सामने आकर कुछ बोलने को तैयार नही क्योंकि यह पार्टी दूध की जली है और छाछ भी फूंक फूंक कर पी रही है। लोकदल सूत्रों के मुताबिक़ पार्टी नही चाहती की अब अंत में उनका आखरी पत्ता चलते चलते रह जाए।

ये सियासी खेल है जनाब आगे क्या होगा ऊंट किस करवट बैठेगा कुछ भी स्पष्ट तौर पर कह पाना मुश्किल होगा। हाँ इतना तय है की अभी बहुत से फेरबदल हो सकते है जिनको लेकर नेताओं के माथे पर पसीना साफ़ झलक रहा है,बाकी दांव पेच तो आने वाले समय में ही स्पष्ट हो सकेंगे।यानी बस यही कहा जा सकता है की आगामी दिनों में बड़ी फेरबदल संभावित है जो की अभी भविष्य के गर्भ में है।

नेशनल

लोकसभा के शोले और रहीम चाचा की खामोशी

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सच्चिदा नन्द द्विवेदी एडिटर-इन-चीफ

हिन्दी सिनेमा की कालजई फिल्म शोले के रहीम चाचा का किरदार आपको जरूर याद होगा। उनका एक डायलॉग था जिसमें वो कहते है “इतना सन्नाटा क्यूँ है भाई” उस वक्त पूरे रामगढ़ में किसी के पास इसका जवाब नहीं था, कमोवेश ठीक वैसे ही हालात इस वक्त लोकसभा चुनाव में नजर आ रहे हैं। लोकसभा के चुनाव के दो चरण पूरे हो चुके हैं पर पूरे देश में कहीं भी ऐसा नजर नहीं आता कि हम अगले पाँच साल के लिए अपने नुमाइंदे चुनने जा रहे हैं। एक अजीब खामोशी नुमायाँ है। गांव, कस्बों और शहरों तक में होर्डिंग और पोस्टर नजर नहीं आ रहे हैं और न ही कानफोडू लाऊडस्पीकर पर वोट मांगने वालों का शोर सुनाई दे रहा है, चाय की टपरी और पान के खोखों पर जमा होने वाली भीड़ अपने होंठों को सिले हुए है।

एक वक्त था जब हम लोग चाय की टपरी, पान की दुकान और रास्तों के ढाबों से देश का मूड भांप लेते थे। मतदाताओं के मन में क्या चल रहा है इसका अंदाज लगाना आसान था। लेकिन आज स्थिति उलट है इन जगहों पर खड़ा आम आदमी आपसे ही उल्टा पूछ लेता है ‘और क्या चल रहा है’ इंसान-इंसान के बीच अविश्वास की खाई इतनी गहरी हो गई है कि वो पब्लिक प्लेस पर अब राजनीतिक बात करने से गुरेज करने लगा है। वोटर अपने मन की बात जुबान पर नहीं लाना चाहता हैं क्यूंकी अब वो रेडियो पर ‘मोदी जी’ के मन की बात सुन रहा है और अपने मन की बात अपने मन में रखे हुए है। उसे डर है और ये डर मिश्रित चुप्पी स्वस्थ लोकतंत्र के लिए अच्छा लक्षण नहीं है।

लोकसभा चुनाव के पहले चरण की तरह दूसरे चरण में भी वोटिंग 2019 के मुकाबले कम हुई है। पहले चरण में 21 राज्यों की 102 लोकसभा सीटों पर 64 प्रतिशत वोटिंग हुई थी। जबकि पिछले लोकसभा चुनाव में उन सीटों पर भी 70 प्रतिशत से ज्यादा मतदान हुआ था। ऐसे ही इस बार दूसरे चरण में 13 राज्यों की 88 लोकसभा सीटों पर करीब 63 फीसदी वोट पड़े। यह 2019 के लोकसभा चुनाव में 70.09% मतदान के मुकाबले काफी कम था। यूपी, बिहार, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश और राजस्थान जैसे बड़े राज्यों में वोटिंग उम्मीद से काफी कम रही। यूपी में 54.85%, बिहार में 55.08% , महाराष्ट्र में 57.83% , एमपी में 57.88 % वोटिंग हुई। सबसे अधिक वोट त्रिपुरा, मणिपुर, छत्तीसगढ़ और पश्चिम बंगाल में पड़े। लोकसभा चुनाव के तीसरे चरण में सात मई को वोटिंग है। इसमें 12 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों की 95 सीट पर मतदान होगा, जिसके लिए 1351 उम्मीदवार चुनाव मैदान में हैं।

जब 7 मई, 13 मई, 20 मई, 25 मई और 1 जून को तीसरे, चौथे, पांचवे, छठे और सातवें चरण का मतदान होगा तो इस दौरान देश के अधिकतर हिस्सों में गर्मी के साथ लू का असर दिखाई देगा। भारतीय मौसम विज्ञान विभाग के आंकड़ों से पता चलता है कि लोकसभा चुनाव के लिए प्रचार के दौरान लगभग 72% निर्वाचन क्षेत्रों में अधिकतम तापमान 35°C या इससे अधिक हो सकता है। विशेष रूप से, 59 सीटों पर 40-42 डिग्री सेल्सियस के बीच तापमान का सामना करना पड़ सकता है। जबकि 194 सीटों पर 37.5-से 40 डिग्री सेल्सियस के बीच तापमान देखा जा सकता है। लेकिन इस गर्मी के बीच क्षेत्रीय दलों के नेता काफी तेजी से अपने इलाके के मतदाताओं पर पकड़ बना रहे हैं और उन सवालों को उठा रहे हैं जिनसे देश का किसान, मजदूर और नौजवान चिंतित है। इसलिए उनके प्रति आम जनता की अपेक्षाएं बढ़ी हैं इसलिए विपक्षी गठबंधन के नेताओं की रैलियों में भारी भीड़ आ रही है। जबकि भाजपा की रैलियों का रंग उसके मुकाबले फीका नजर या रहा है।

हालांकि रैली में आने वाली भीड़ जीत का पैमाना नहीं होती इसलिए कुछ कहा नहीं जा सकता। हर दल का अपना एक समर्पित काडर होता है। जबकि आज काडर के नाम पर ज्यादातर दलों के पास सत्ता के छत्ते से चिपकी रहने वाली मधुमक्खी ही ज्यादा नजर या रहीं है ये वो लोग हैं जिन्हें सत्ता की दलाली करने के अवसरों की तलाश होती है। राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ जिसके पास काडर है कार्यकर्ता हैं वो भी खामोश नजर आ रहा है। बहरहाल लगातार कम होते मतदान ने नेताओं की धुकधुकी बढ़ा रखी है। सत्ता पक्ष मतदान प्रतिशत बढ़ाने के लिए परेशान है तो विपक्ष कम प्रतिशत को अपने पक्ष में मानकर मुंगेरीलाल के सपने बुनने में मगन है।

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