आध्यात्म
इस साल कब है पौष पुत्रदा एकादशी? जानें शुभ मुहूर्त महत्व और पूजाविधि
नई दिल्ली। हिंदी मास पौष के शुक्ल पक्ष की एकादशी को पौष पुत्रदा एकादशी कहते हैं। इस साल यह एकादशी 21 जनवरी रविवार को है। इस व्रत को करने से आपको योग्य संतान की प्राप्ति होती है और भगवान विष्णु आपके घर को खुशियों से भर देते हैं। इस व्रत में विधि विधान से भगवान विष्णु की पूजा करने से आपकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं और सभी कष्टों से निजात मिलती है।
पौष पुत्रदा एकादशी का शुभ मुहूर्त
पौष पुत्रदा एकादशी का आरंभ 20 जनवरी को शाम को 6 बजकर 26 मिनट पर होगा। इसका समापन 21 जनवरी को रात में 7 बजकर 26 मिनट पर होगा। इसलिए पंचांग के अनुसार इसका व्रत 21 जनवरी को रखा जाएगा। इसका पारण 22 जनवरी को सुबह 7 बजकर 14 मिनट से 9 बजकर 21 मिनट पर होगा।
पौष पुत्रदा एकादशी पर बने ये खास योग
इस बार पौष मास की पुत्रदा एकादशी बहुत ही शुभ योग में होगी। इस दिन पूरे दिन ब्रह्म योग का शुभ संयोग रहेगा। इस शुभ योग में दान करने का विशेष महत्व शास्त्रों में बताया गया है। इस शुभ योग में व्रत करने पर सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
पौष पुत्रदा एकादशी का महत्व
पुत्रदा एकादशी जैसा कि नाम से समझ में आता है कि पुत्र प्रदान करने वाली एकादशी है। साल में पुत्रदा एकादशी दो बार आती है। पहली श्रावण मास में आती है और दूसरी पुत्रदा एकादशी पौष मास में आती है। इस एकादशी का व्रत इन दंपतियों के लिए खास माना गया है जो अभी तक संतान सुख से वंचित हैं। इस एकादशी का व्रत करने से उनकी खाली झोलियां भर जाती हैं।
डिस्क्लेमर: उक्त आलेख में दी गई जानकारियों के पूर्णतया सत्य व सटीक होने का हमारा दावा नहीं है।
आध्यात्म
आज पूरा देश मना रहा रामनवमी, जानिए इसके पीछे की पूरी पौराणिक कहानी
नई दिल्ली। आज पूरे देश में रामनवमी का त्यौहार बड़ी धूम धाम से मनाया जा रहा है। पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक इस दिन भगवान राम का जन्म हुआ था। जो विष्णु का सातवां अवतार थे। रामनवमी का त्यौहार चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी को मनाया जाता है। आइये जानते हैं इसके पीछे की पौराणिक कहानी।
पौराणिक कथाओं के मुताबिक भगवान राम ने भी मां दुर्गा की पूजा की थी, जिससे कि उन्हें युद्ध के समय विजय मिली थी। साथ ही माना जाता है इस दिन गोस्वामी तुलसीदास जी ने रामचरित मानस की रचना का आरंभ किया। राम नवमी का व्रत जो भी करता है वह व्यक्ति पापों से मुक्त होता है और साथ ही उसे शुभ फल प्रदान होता है
रामनवमी का इतिहास-
महाकाव्य रामायण के अनुसार अयोध्या के राजा दशरथ की तीन पत्नियां थी। कौशल्या, सुमित्रा और कैकयी। शादी को काफी समय बीत जाने के बाद भी राजा दशरथ के घर किसी बालक की किलकारी नहीं गूंजी थी। इसके उपचार के लिए ऋषि वशिष्ट ने राजा दशरथ से पुत्र प्राप्ति के लिए कमेश्टी यज्ञ कराने के लिए कहा। जिसे सुनकर दशरथ खुश हो गए और उन्होंने महर्षि रुशया शरुंगा से यज्ञ करने की विन्नती की। महर्षि ने दशरथ की विन्नती स्वीकार कर ली। यज्ञ के दौरान महर्षि ने तीनों रानियों को प्रसाद के रूप में खाने के लिए खीर दी। इसके कुछ दिनों बाद ही तीनों रानियां गर्भवती हो गईं।
नौ माह बाद चैत्र मास में राजा दशरथ की बड़ी रानी कौशल्या ने भगवान राम को जन्म दिया, कैकयी ने भरत को और सुमित्रा ने दो जुड़वा बच्चे लक्ष्मण और शत्रुघन को जन्म दिया। भगवान विष्णु ने श्री राम के रूप में धरती पर जन्म इसलिए लिया ताकि वे दुष्ट प्राणियों का नरसंहार कर सके।
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