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आध्यात्म

12 अगस्त को है रक्षाबंधन का शुभ समय, अभिजित मुहूर्त में बहने बांधें राखी

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नई दिल्ली। सावन मास की पूर्णिमा तिथि को रक्षाबंधन का त्यौहार मनाया जाता है इस बार पूर्णिमा 12 अगस्त दिन शुक्रवार को है। इस रक्षाबंधन पर कई नक्षत्रों का शुभ मिलन हो रहा है। सौभाग्य योग, धाता योग, अभिजीत योग और खासकर पंचक महायोग में इस बार राखी का त्योहार मनेगा।

ज्योतिषाचार्यों के अनुसार इस बार दो दिन पूर्णिमा का मान रहने से लोगों में असमंजस की स्थिति बनी हुई है। रक्षाबंधन का त्योहार श्रावण पूर्णिमा को मनाया जाता है परंतु, भद्रा का त्याग करके ही। पूर्णिमा को दो भागों में बांटा गया है। पहला व्रताय पूर्णिया और दूसरा स्नान दान पूर्णिमा। अगर सूर्योदय चतुर्दशी तिथि में हुआ हो। सूर्योदय के बाद पूर्णिमा का मान आरंभ हुआ हो और पूर्णिमा पूरे दिन एवं रात्रि तक रहता है तो वह व्रताय पूर्णिमा कहलाती है।

श्रीहनुमान पंचांग, हृषिकेष पंचांग, महावीर पंचांग और अन्नपूर्णा पंचांग के अनुसार 11 अगस्त को सूर्योदय प्रात: 5 बजकर 30 मिनट में हो रहा है। इस दिन पूर्णिमा का मान दिन में 9 बजकर 35 मिनट पर है। परंतु, उसी समय यानि 9.35 दिन में पूर्णिमा के साथ भद्रा का भी प्रारंभ हो रहा है। भद्रा का साया रात्रि 8.25 तक है। व्रत पर्वोत्सव के अनुसार भद्रा में श्रावणी और फाल्गुनी पूर्णिमा वर्जित माना गया है।

12 अगस्त को प्रात: सूर्योदय 5 बजकर 31 मिनट पर होगा और पूर्णिमा का मान प्रात: 7 बजकर 17 मिनट तक है। धर्म सिंधु के अनुसार जिस तिथि में सूर्योदय होता है, वही अस्त कहलाता है। अत: पूर्णिमा उदयव्यापिनी 12 अगस्त को मनाना श्रेष्ठकर माना गया है। शास्त्रों के अनसुार भद्रा में भूलकर भी रक्षा सूत्र नहीं बांधना चाहिए। भद्रा शनि की बहन हैं।

रक्षा बांधने का शुभ समय
प्रात:काल मुहूर्त 5.31 से 7.17 तक
अभिजित मुहूर्त 11.24 से 12.36 तक

आध्यात्म

आज पूरा देश मना रहा रामनवमी, जानिए इसके पीछे की पूरी पौराणिक कहानी

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नई दिल्ली। आज पूरे देश में रामनवमी का त्यौहार बड़ी धूम धाम से मनाया जा रहा है। पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक इस दिन भगवान राम का जन्म हुआ था। जो विष्णु का सातवां अवतार थे। रामनवमी का त्यौहार चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी को मनाया जाता है। आइये जानते हैं इसके पीछे की पौराणिक कहानी।

पौराणिक कथाओं के मुताबिक भगवान राम ने भी मां दुर्गा की पूजा की थी, जिससे कि उन्हें युद्ध के समय विजय मिली थी। साथ ही माना जाता है इस दिन गोस्वामी तुलसीदास जी ने रामचरित मानस की रचना का आरंभ किया। राम नवमी का व्रत जो भी करता है वह व्यक्ति पापों से मुक्त होता है और साथ ही उसे शुभ फल प्रदान होता है

रामनवमी का इतिहास-

महाकाव्य रामायण के अनुसार अयोध्या के राजा दशरथ की तीन पत्नियां थी। कौशल्या, सुमित्रा और कैकयी। शादी को काफी समय बीत जाने के बाद भी राजा दशरथ के घर किसी बालक की किलकारी नहीं गूंजी थी। इसके उपचार के लिए ऋषि वशिष्ट ने राजा दशरथ से पुत्र प्राप्ति के लिए कमेश्टी यज्ञ कराने के लिए कहा। जिसे सुनकर दशरथ खुश हो गए और उन्होंने महर्षि रुशया शरुंगा से यज्ञ करने की विन्नती की। महर्षि ने दशरथ की विन्नती स्वीकार कर ली। यज्ञ के दौरान महर्षि ने तीनों रानियों को प्रसाद के रूप में खाने के लिए खीर दी। इसके कुछ दिनों बाद ही तीनों रानियां गर्भवती हो गईं।

नौ माह बाद चैत्र मास में राजा दशरथ की बड़ी रानी कौशल्या ने भगवान राम को जन्म दिया, कैकयी ने भरत को और सुमित्रा ने दो जुड़वा बच्चे लक्ष्मण और शत्रुघन को जन्म दिया। भगवान विष्णु ने श्री राम के रूप में धरती पर जन्म इसलिए लिया ताकि वे दुष्ट प्राणियों का नरसंहार कर सके।

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