आध्यात्म
जानिए कैसे मनाई जाएगी ‘जय गुरूदेव’ आश्रम में गुरू पूर्णिमा
नई दिल्ली। मानव जीवन में गुरू का बड़ा महत्व होता है। भारतीय लिखित परंपरा में तो गुरू को ईश्वर से भी बढ़कर माना गया है। इसलिए भारतीय संस्कृति में एक दिन गुरू को समर्पित है, इस दिन को हम ‘गुरू पूर्णिमा’ के नाम से जानते हैं। आषाढ़ मास में गुरु पूर्णिमा पड़ती है। इस दिन को शास्त्रों में बेहद खास माना गया है, क्योंकि इस दिन गुरू की पूजा की जाती है। इस बार गुरु पूर्णिमा 27 जुलाई 2018 (शुक्रवार) को पड़ रही है। गुरु पूर्णिमा के दिन अगर कोई भी व्यक्ति सही तरीके से गुरू पूजा विधी का पालन करे, तो उसके जीवन में किसी भी तरह का दुख नहीं होगा। देश के कई आश्रमों में गुरू पूर्णिमा की तैयारियां ज़ोरों-शोरों से चल रही हैं। इन्हीं आश्रमों में से एक विश्व विख्यात आश्रम है ‘जय गुरू देव’ का। हम आपको बताते हैं कि ‘जय गुरू देव’ आश्रम में गुरू पूर्णिमा की तैयारियां कैसी चल रही हैं और इस बार यहां गुरू पूर्णिमा कैसे मनाई जाएगी।
राष्ट्रीय राजमार्ग-19 यानी आगरा-दिल्ली बाई पास रोड पर स्थित जयगुरुदेव मन्दिर पर लगने वाला परम्परागत मेला, जिसे लोग “जयगुरुदेव गुरुपूर्णिमा महापर्व एवं सत्संग-मेला” के नाम से जानते हैं, आगामी 25 जुलाई से शुरु होकर 29 जुलाई तक चलेगा। गुरु पूर्णिमा का मुख्य पूजन कार्यक्रम 26 जुलाई 2018 को रात में शुरु होगा। संस्था के अध्यक्ष पंकज महाराज का आध्यात्मिक सत्संग 27 जुलाई 2018 को सुबह 6 बजे से शुरू होगा। उपदेशक के सत्संग रोज़ सुबह 5:30 बजे और शाम 5 बजे से होंगे।
यह जानकारी देते हुए मेला प्रभारी चौधरी चरन सिंह ने बताया कि पिछले वर्षों की तरह इस साल भी आषाढ़ मास की पूर्णिमा पर गुरुपूर्णिमा का सत्संग मेला 25 से 29 जुलाई तक जयगुरुदेव मन्दिर परिसर एवं जयगुरुदेव आश्रम में आयोजित होगा। इस पांच दिवसीय महापर्व में भाग लेने के लिये देश के कोने-कोने से भारी संख्या में श्रद्धालु एवं आम जनता आएगी। आगन्तुकों की सुविधा के लिए टेंट रावटियों का अस्थाई ‘जयगुरुदेवनगर’ बसाया जा रहा है। पेयजल, प्रकाश, शौचालय, सुरक्षा, सफाई, भण्डारा, चिकित्सा आदि की जनसुविधाएं स्थापित की जा रही हैं।
उन्होंने बताया कि, “यह संस्था का पारम्परिक आयोजन है। जो जयगुरुदेव धर्म प्रचारक संस्था एवं जयगुरुदेव धर्म प्रचारक ट्रस्ट, मथुरा के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित किया जाता है। मेले में भाग लेने वाले श्रद्धालुओं के आने का क्रम शुरु हो गया है। मेले की तैयारियाँ महीने भर से चल रही हैं जो अन्तिम चरण में पहुंच चुकी हैं। इस अवसर पर प्रार्थना, ध्यान, भजन, सुमिरन, सत्संग, पूजन, दर्शन, सत्संग गोष्ठियों के अलावा दहेज रहित विवाह आदि के कार्यक्रम होते हैं। संस्था ने सभी धर्म, वर्ग, मजहब, जाति व स्तर के लोगों से मेले में भाग लेकर सत्संग का लाभ उठाने की अपील की है।”
आध्यात्म
आज पूरा देश मना रहा रामनवमी, जानिए इसके पीछे की पूरी पौराणिक कहानी
नई दिल्ली। आज पूरे देश में रामनवमी का त्यौहार बड़ी धूम धाम से मनाया जा रहा है। पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक इस दिन भगवान राम का जन्म हुआ था। जो विष्णु का सातवां अवतार थे। रामनवमी का त्यौहार चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी को मनाया जाता है। आइये जानते हैं इसके पीछे की पौराणिक कहानी।
पौराणिक कथाओं के मुताबिक भगवान राम ने भी मां दुर्गा की पूजा की थी, जिससे कि उन्हें युद्ध के समय विजय मिली थी। साथ ही माना जाता है इस दिन गोस्वामी तुलसीदास जी ने रामचरित मानस की रचना का आरंभ किया। राम नवमी का व्रत जो भी करता है वह व्यक्ति पापों से मुक्त होता है और साथ ही उसे शुभ फल प्रदान होता है
रामनवमी का इतिहास-
महाकाव्य रामायण के अनुसार अयोध्या के राजा दशरथ की तीन पत्नियां थी। कौशल्या, सुमित्रा और कैकयी। शादी को काफी समय बीत जाने के बाद भी राजा दशरथ के घर किसी बालक की किलकारी नहीं गूंजी थी। इसके उपचार के लिए ऋषि वशिष्ट ने राजा दशरथ से पुत्र प्राप्ति के लिए कमेश्टी यज्ञ कराने के लिए कहा। जिसे सुनकर दशरथ खुश हो गए और उन्होंने महर्षि रुशया शरुंगा से यज्ञ करने की विन्नती की। महर्षि ने दशरथ की विन्नती स्वीकार कर ली। यज्ञ के दौरान महर्षि ने तीनों रानियों को प्रसाद के रूप में खाने के लिए खीर दी। इसके कुछ दिनों बाद ही तीनों रानियां गर्भवती हो गईं।
नौ माह बाद चैत्र मास में राजा दशरथ की बड़ी रानी कौशल्या ने भगवान राम को जन्म दिया, कैकयी ने भरत को और सुमित्रा ने दो जुड़वा बच्चे लक्ष्मण और शत्रुघन को जन्म दिया। भगवान विष्णु ने श्री राम के रूप में धरती पर जन्म इसलिए लिया ताकि वे दुष्ट प्राणियों का नरसंहार कर सके।
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